कुछ दिनों से सोच रहा था की देश की आजादी पर कुछ लिखूं. लेकिन क्या! वह जो हम रोज देख-पढ़ रहे है या ऐसा कुछ जिसको पढ़ कर कुछ सोचा जाये. ऐसा ही कुछ मैंने अपनी इन पोस्टो में लिखा भी था.
शर्म आनी चाहिए नेता जी को
इन सबके बाद बहुत सोचने के पश्चात इस पोस्ट में इतना कुछ लिख पाया की हम यह सोच सके की आज हम आजाद है या वो नेता व् अधिकारी जो आज देश व् हमको चला रहे है. तत्पश्चात आज मुझे एक मेल मिली. पढ़ी व् पढ़ कर लगा की हरियाणा के रतिया निवासी चन्द्र शेखर मेहता द्वारा भेजी गई यह मेल आजादी के मायने पेश करने के लिए कुछ ख़ास है. इसलिए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.
15 अगस्त 1947 का दिन! देश के इतिहास का एक नया अध्याय हमारी स्वतंत्रता। अंग्रेजों ने आज के दिन अपने चंगुल से हमारे देश को आजाद कर दिया। परंतु क्या वाकई उन्होंने हमें आजादी दी और क्या वाकई हम आजाद हैं? यह विचार करने का विषय है। केवल उनके द्वारा हमारे देश को छोड़कर चले जाने को हम आजादी का नाम दे सकते है। पिछले 63 सालों से हम बड़ी धूमधाम से हर साल 15 अगस्त को जश्न-ए-आजादी मनाते हैं परंतु आखिर हमारी यह आजादी है क्या? आखिर इन 63 वर्षों में हमने ऐसा क्या पाया है, जो हम गर्व से कह सकते है की हाँ, हम आजाद हैं! देश पर राज करने वाले अंग्रेजों की जगह अब हमारे ही साथी नेताओं ने ले ली है। जो लगातार इतने वर्षों से भ्रष्टाचार की जड़े मजबूत करने में लगे हैं। इतनी मेहनत व इतने प्रयास करने के पश्चात् राजनीति के शिखर पर पहुंचने वाले व्यक्ति का एक ही लक्ष्य होता है खुद का विकास व अपनी आने वाली सभी पीढिय़ों के लिए उम्र भर का जुगाड़।
देश की अधिकतर आबादी का एक हिस्सा है आम आदमी। क्या उसे पूरी आजादी से जीने का अधिकार है? मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालने वाले एक अत्यंत गरीब व्यक्ति को यह भी सुनिश्चित नहीं है की आज उसे रोजगार मिलेगा या नहीं? पढ़े-लिखे युवा रोजगार प्राप्त कर्णवे के प्रयास में ही अपनी आयु बिता रहे हैं। अच्छा रोजगार प्राप्त करने की चाह में डिग्रियों पर डिग्रियां प्राप्त कर लेने पर न तो उन्हें योग्यतानुसार कार्य मिल रहा है और न ही वे अब अन्य छोटा-मोटा कार्य कर सकते हैं। बाल मजदूरी का दंश झेल रहे देश के करोडो बच्चे अपने भी दिन फिरने का लगातार इंतजार कर रहे हैं। आखिर उन्हें कब इन सबसे आजादी मिलेगी। लाखों बहुएं आज भी हमारे देश में दहेज नाम कुप्रथा की बलि चढ़ रही हैं। क्या उन्हें जीने की आजादी मिल पाई है।
एक आम नागरिक को अपना कोई सरकारी कार्य आदि करवाने के लिए न चाहते हुए भी 50 रुपए की सरकारी फीस की जगह 500 रुपए की रिश्वत देनी पड़ती है क्योंकी उसे पता है की अगर वह ऐसा नहीं करता तो इतने ही पैसे उसके कार्यालयों के चक्कर काटने में व्यर्थ हो जाएंगे और यह एक ऐसा सच है, जिसे आप, मैं, अधिकारी और बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ सब जानते हैं परंतु यह शब्द 'देश में भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता कह कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
देश के प्रत्येक नागरिक को मत देने का अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है परंतु जब एक योग्य व्यक्ति चुनाव लड़कर कुछ प्रयास करना चाहता है तो आरक्षण नाम की बीमारी बीच में आ जाती है। जब एक योग्य व्यक्ति आरक्षण की वजह से अपने इलाके का चुनाव नहीं लड़ सकता तो उसके लिए आजादी कैसी? एक मतदाता अपने पसंद का उम्मीदवार नहीं खड़ा कर सकता तो उसके लिए आजादी के क्या मायने? समाचार का पहलू यह है की क्या कोई योग्य राजनीतिज्ञ या अधिकारी अपने प्रयासों से इन समस्याओं को मिटाना चाहते हैं तो उन्हें अपनी इच्छानुसार कार्य करने की आजादी नहीं है। उन्हें भी अपनी सीमाओं में रह कर कार्य करना पड़ता है।
यह सब लिखने के पीछे मकसद यह नहीं है की हमें अपनी आजादी का जश्न नहीं मनाना चाहिए। हमें यह दिन अवश्य मनाना चाहिए परंतु कुछ ऐसा करके, जिससे किसी जरूरतमंद की जरूरत पूरी हो, देश में फैली कुप्रथाओं व भ्रष्टाचार आदि पर लगाम लगाने के लिए प्रयास हो।
तो कैसा हो हमारा अगला स्वतंत्रता दिवस, इसके लिए आपके सुझावों और कोमेंट का इंतजार रहेगा.
Related Articles :
शर्म आनी चाहिए नेता जी को
इन सबके बाद बहुत सोचने के पश्चात इस पोस्ट में इतना कुछ लिख पाया की हम यह सोच सके की आज हम आजाद है या वो नेता व् अधिकारी जो आज देश व् हमको चला रहे है. तत्पश्चात आज मुझे एक मेल मिली. पढ़ी व् पढ़ कर लगा की हरियाणा के रतिया निवासी चन्द्र शेखर मेहता द्वारा भेजी गई यह मेल आजादी के मायने पेश करने के लिए कुछ ख़ास है. इसलिए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.
15 अगस्त 1947 का दिन! देश के इतिहास का एक नया अध्याय हमारी स्वतंत्रता। अंग्रेजों ने आज के दिन अपने चंगुल से हमारे देश को आजाद कर दिया। परंतु क्या वाकई उन्होंने हमें आजादी दी और क्या वाकई हम आजाद हैं? यह विचार करने का विषय है। केवल उनके द्वारा हमारे देश को छोड़कर चले जाने को हम आजादी का नाम दे सकते है। पिछले 63 सालों से हम बड़ी धूमधाम से हर साल 15 अगस्त को जश्न-ए-आजादी मनाते हैं परंतु आखिर हमारी यह आजादी है क्या? आखिर इन 63 वर्षों में हमने ऐसा क्या पाया है, जो हम गर्व से कह सकते है की हाँ, हम आजाद हैं! देश पर राज करने वाले अंग्रेजों की जगह अब हमारे ही साथी नेताओं ने ले ली है। जो लगातार इतने वर्षों से भ्रष्टाचार की जड़े मजबूत करने में लगे हैं। इतनी मेहनत व इतने प्रयास करने के पश्चात् राजनीति के शिखर पर पहुंचने वाले व्यक्ति का एक ही लक्ष्य होता है खुद का विकास व अपनी आने वाली सभी पीढिय़ों के लिए उम्र भर का जुगाड़।
देश की अधिकतर आबादी का एक हिस्सा है आम आदमी। क्या उसे पूरी आजादी से जीने का अधिकार है? मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालने वाले एक अत्यंत गरीब व्यक्ति को यह भी सुनिश्चित नहीं है की आज उसे रोजगार मिलेगा या नहीं? पढ़े-लिखे युवा रोजगार प्राप्त कर्णवे के प्रयास में ही अपनी आयु बिता रहे हैं। अच्छा रोजगार प्राप्त करने की चाह में डिग्रियों पर डिग्रियां प्राप्त कर लेने पर न तो उन्हें योग्यतानुसार कार्य मिल रहा है और न ही वे अब अन्य छोटा-मोटा कार्य कर सकते हैं। बाल मजदूरी का दंश झेल रहे देश के करोडो बच्चे अपने भी दिन फिरने का लगातार इंतजार कर रहे हैं। आखिर उन्हें कब इन सबसे आजादी मिलेगी। लाखों बहुएं आज भी हमारे देश में दहेज नाम कुप्रथा की बलि चढ़ रही हैं। क्या उन्हें जीने की आजादी मिल पाई है।
एक आम नागरिक को अपना कोई सरकारी कार्य आदि करवाने के लिए न चाहते हुए भी 50 रुपए की सरकारी फीस की जगह 500 रुपए की रिश्वत देनी पड़ती है क्योंकी उसे पता है की अगर वह ऐसा नहीं करता तो इतने ही पैसे उसके कार्यालयों के चक्कर काटने में व्यर्थ हो जाएंगे और यह एक ऐसा सच है, जिसे आप, मैं, अधिकारी और बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ सब जानते हैं परंतु यह शब्द 'देश में भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता कह कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
देश के प्रत्येक नागरिक को मत देने का अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है परंतु जब एक योग्य व्यक्ति चुनाव लड़कर कुछ प्रयास करना चाहता है तो आरक्षण नाम की बीमारी बीच में आ जाती है। जब एक योग्य व्यक्ति आरक्षण की वजह से अपने इलाके का चुनाव नहीं लड़ सकता तो उसके लिए आजादी कैसी? एक मतदाता अपने पसंद का उम्मीदवार नहीं खड़ा कर सकता तो उसके लिए आजादी के क्या मायने? समाचार का पहलू यह है की क्या कोई योग्य राजनीतिज्ञ या अधिकारी अपने प्रयासों से इन समस्याओं को मिटाना चाहते हैं तो उन्हें अपनी इच्छानुसार कार्य करने की आजादी नहीं है। उन्हें भी अपनी सीमाओं में रह कर कार्य करना पड़ता है।
यह सब लिखने के पीछे मकसद यह नहीं है की हमें अपनी आजादी का जश्न नहीं मनाना चाहिए। हमें यह दिन अवश्य मनाना चाहिए परंतु कुछ ऐसा करके, जिससे किसी जरूरतमंद की जरूरत पूरी हो, देश में फैली कुप्रथाओं व भ्रष्टाचार आदि पर लगाम लगाने के लिए प्रयास हो।
तो कैसा हो हमारा अगला स्वतंत्रता दिवस, इसके लिए आपके सुझावों और कोमेंट का इंतजार रहेगा.
1 आपकी गुफ्तगू:
सुन्दर प्रस्तुति...
स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं.
Post a Comment