सोमवार को मेरा जन्मदिन था। बड़ी खुशी की बात थी की मैंने 30 सावन देख लिए। अर्तार्थ जो सावन चल रहा है वो मेरे लिए 31 वा है। इसलिए रविवार को मन किया की सोमवार को अपने पाठको को पढने के लिए जो भी दिया जाए वो कुछ ऐसा हो की मैं कुछ यादगार पल अपने जन्मदिन पर जोड़ पाऊ। क्या लिखू, कैसा लिखू, किस विषय पर लिखू यही सोच कर मैंने न जाने कितनी ही साईट छान मारी। लेकिन कोई ऐसा मुद्दा नही मिल सका जिस पर मैं अपने पाठको से गुफ्तगू कर सकू। मन मार कर मैंने आशीष खंडेलवाल जी की हिन्दी ब्लॉग टिप्स ही खोल ली। पढ़ा की वो भी शनिवार को कुछ अपने पाठको के लिए हल्का फुल्का लिखने के लिए सोच रहे थे। उनकी यह लाइन पढ़ कर दिल में कुछ आया की अब तो अपने जन्मदिन पर कुछ तो अवश्य लिखूंगा। सोमवार को सारा दिन माथा-पच्ची करता रहा। लेकिन बात नही बनी। शाम होते-होते मेरे एक पत्रकार दोस्त का फ़ोन आया की सूर्य भाई तुम्हारे कार्यालय के बराबर में एक परचून की दूकान है उस से मेरे लिए उड़द की दाल लेकर रख लेना मैं अपना काम निपटा कर तुम से ले लूँगा। मैंने उससे पूछा की भाई साहब कितने की आएँगी तो उसने कहा की यही कोई 50 - 55 रुपए किलो होगी। जेब में हाथ मारा तो देखा की 100 का नोट रखा पाया। चलो मित्र का काम तो चल ही जायेगा सोच कर कुछ मिनटों में काम से फरीक हो कर मैं परचून की दूकान पर गया और 1 किलो दाल ले ली। मैंने दूकान स्वामी को 100 का नोट दिया तो उसने मुझे 35 रुपए वापिस दिए। मैंने कहा जनाब 35 क्यो 50 या 45 रुपए दोगे। उसने तपाक से जवाब दिया की पत्रकार महोदय सारा दिन फिल्ड में रहते हो आटे-दाल का भावः नही पता क्या। ना में गर्दन हिलाते हुए मैंने कहा नही श्री मान ऐसी तो कोई बात नही है लेकिन बताया गया है की 50 - 55 रुपए किलो आयेगी। तो उन महोदय का कहना था की वो ज़माने लद गए। मेरी उत्सुकता बढ़ी और मैंने कागज-पैन निकल कर विस्तार से जानना चाहा। जब मुझे सारी जानकारी मिली तो सकपका सा गया की यह महंगाई और जेब में एक 100 का नोट। तो आने वाले समय में घर कैसे चलेगा। जब मैंने पूछा की इतनी महंगाई कब से आई है तो बताया गया की 2 से 3 महीनो में। कहने का अर्थ यह की चुनाव से कुछ समय पहले ही। मेरा सर चकराया और दाल हाथ में लेकर कार्यालय तक यही सोचता आया की क्या हल्का फुल्का लिखूंगा यहाँ तो सर ही भारी हो गया है। ये तो शुक्र है की अभी तक 31 सावन देख चुका हूँ लेकिन महंगाई ऐसे ही बढती रही तो..... एक वो जमाना था जब लोग दाल-रोटी खा कर 100 साल तक जी जाते थे लेकिन आज अगर महंगाई ऐसे ही बढती रही तो आने वाले समय में दाल-रोटी को भूलना पड़ेगा। मेरा दिमाग घुमा की अगर आटे-दाल के रेटों में इतनी तेजी आई है तो सरकार मुद्रा स्फीति दर 0 प्रतिशत कैसे दिखा रही है। कही सरकार जनता को उल्लू तो नही बना रही। बस यही सोचते सोचते मैंने अपनी पोस्ट लिख दी और लिखने के बाद ऐसा लगने लगा की दिल कुछ हल्का हो गया हो। आप भी देखिये की 2 महीनो में खाद्ध पदार्थो में कितनी तेजी आई है।
पहले आज के भावः और फिर 2 महीने पहले के भावः
मुंग साबुत - 55 - 45
मुंग धुली - 68 - 50
मसूर - 65 - 50
चना दाल - 35 - 25
उड़द साबुत - 50 - 40
राजमा - 45 - 45
काबली चना - 45 से 60 - 35 से 50
मुंग छिलका - 60 - 50
उड़द धुली - 65 - 50
उड़द छिलका - 58 - 46
मोठ - 52 - 30
इनके अतिरिक्त जिन खाद्ध पदार्थो के भावः आज आसमान छु रहे है वो भी प्रतिदिन हमारी जेब ढीली करवा रहे है। प्रतिदिन पीने जाने वाली चाय जो 2 माह पूर्व तक 120 रुपए किलो हुआ करती थी वो आज 160 से 200 रुपए किलो तक पहुँच गई है। जबकि हल्दी 60 रुपए हुआ करती जिसकी कीमत आज हमको 100 रुपए तक देनी पड़ रही है। मसालों के भावः सुन कर तो मैं ऐसे ही नमकीन हो गया जब मुझे पता चला की मसालों में भी 40 प्रतिशत से अधिक की तेजी आई है। अब आप ही बताये की ऐसे में मैं अपना जन्मदिन याद रखु या दुकानदार की बताई बात की भाई साहब आटे-दाल का भावः पता करो।
जन्मदिन पर पता चला आटे-दाल का भावः
तड़का मार के

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