किसी कारणवश एक दिन हमारे ऑफिस की छुट्टी जल्दी कर दी गई। ऑफिस से निकलते वक्त मुझे याद आया कि आज अस्पताल से दादी माँ की दवाई लानी है। समय होने के कारण मैं अस्पताल चली गई। वहां जाकर मैंने पर्ची कटवाई और डॉक्टर के कमरे के बाहर खड़ी गेटकीपर के हाथ में पर्ची थमाते हुए मैंने उससे पूछा कि मेरे से पहले कितनी पर्चियाँ और हैं। उसने कहा- बीस। फिर मैंने छत की तरफ निगाहें घुमाई और पंखे को देखते हुए ठीक उसी के नीचे वाली कुर्सी पर जाकर बैठ गई। मेरे पीछे वाली कुर्सियों पर दो महिलाएं भी आकर बैठ गई। शायद वो एक-दूसरे को जानती थीं। उन्होंने धीरे-धीरे बात करना शुरु किया। मुझे उनकी बातें साफ सुनाई दे रही थीं। उनमें से एक महिला ने दूसरी महिला से पूछा- कैसी हो बहन, घर-परिवार में सब कैसे हैं? दूसरी महिला ने जबाव दिया सब ठीक है बस मेरी बहु की तबीयत कुछ खराब चल रही है। क्यों, क्या हुआ उसे? पहली महिला ने पूछा। मेरी बहु पाँच महिने से गर्भवती थी लेकिन एक सप्ताह पहले उसका गर्भपात हो गया, बड़े ही दुख भरे शब्दों में दूसरी महिला ने बताया। उसके मर्म भरे शब्दों को सुनकर मुझे भी दु:ख हुआ। लेकिन पहली महिला ने झट से कहा- उसके तो पहले भी तीन बेटियां है ना? दूसरी महिला ने सिर हिलाते हुए कहा- हाँ तीन बेटियां तो हैं पहले, किंतु अच्छी चीज कहाँ रहती है बहन। पहली महिला ने कहा सो तो है। लेकिन मैं ट्टट्टअच्छी चीज** पर उलझ गई और सोचने लगी कि ये किस अच्छी चीज की बात कर रहीं हैं। पहली महिला पुन: बातचीत शुरु करते हुए बोली- हे भगवान, यह तो बुरा हुआ उस बेचारी के साथ, तुमने गर्भ में बेटा भी दिया और उसे जन्म लेने से पहले छीन भी लिया। इस पर हां में हां मिलाते हुए दूसरी औरत ने कहा- अगर गर्भ में लडक़ी होती तो कोई गम न था। मैं कुर्सी से उठी और दूर रखी हुई कुर्सी पर बैठ गई क्योंकि आगे उनकी बातें सुनने की मुझमें हिम्मत न थी।
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