एक के तीन, छः के बारह


क्या, आप भी यहाँ यहीं सोच कर आये है की यहाँ आईपीएल के मैच पर सट्टा लगाया जा रहा है, या किसी फिल्म की टिकट ब्लैक में बिक रही है. अगर यह भी नहीं तो यह जरुर सोचा होगा की कोई चीज एक रूपए में तीन और छः रूपए में बारह मिल रही है. तो जनाब आप गलत आ गए. यहाँ ऐसा कुछ नहीं हो रहा. यहाँ तो गुफ्तगू हो रही है की आजकल देश में कानून के नाम पर क्या कुछ हो रहा है. वो बात अलग है की आज हर काम एक जुआ और सट्टा ही हो गया है. अब जुआ खेलने वाले का भी क्या कसूर जब मेरे देश का कानून ही ऐसा हो की जनता को मजबूर होना पड़ता है. क्योंकि देश में कानून तो बना दिए जाते रहे है और अमल किसी पर भी नहीं हो रहा. अगर कभी-कभी अधिकारी नींद से जाग भी जाते है तो जनता है की हो-हल्ला मचा देती है. जिसका सारा लाभ कमा जाते है तो वो है सटोरिएं.
अब देखो ना हाल ही में एक कानून बनाया गया की देश में पाउच बंद गुटका नहीं बिकेगा. इसकी बिक्री पर रोक लगाने के उद्देश्य से पहले भी तरह-तरह के हथकंडे अपनाये गए लेकिन ना गुटके के निर्माता ही बाज आये और ना जनता ही मानी. अब कानून बनाया गया की देश में पालीथिन बैग और गुटको की पाउच पैकिंग नहीं बिकेगी. यह एक साहसी और सहरानीय फैसला था. लेकिन क्या किसी ने यह सोचा की इसको लागू करने के लिए किस तरह के ठोस कदम उठाने होगे. तो सोच-समझ कर आप इसी निष्कर्ष पर पहुंचेगे की नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं सोचा गया. अगर ऐसा सोचा जाता तो पालीथिन और गुटको की कालाबाजारी नहीं होती. कालाबाजारी भी इस कदर की ना अधिकृत विक्रेता तो ना दुकानदार बाज आ रहे है, और तो और जनता भी इस कालाबाजारी में इन दोनों का दिल खोल कर साथ दे रही है.
जनता भी बेचारी क्या करे. पालीथिन बैग के बिना कहाँ जाए और क्या करें. और जब क़ानूनी रूप से कोई कार्यवाही ही नहीं हो रही तो ऐसे में दुकानदार भी क्या करें. इन दोनों के बीच में पिस रही है तो वो है जनता. ऐसे में धडल्ले से पालीथिन भी बिक रहे है तो गुटके के विक्रेता भी कहाँ पीछे रहने वाले थे. फर्क मात्र इतना है की जब कभी अधिकारी नींद से जाग जाते है तो पालीथिन बेचने वालो की दूकान पर छापामार कार्यवाही को अंजाम दे देते है जबकि पाउच बंद गुटको की आज भी कोई पूछ नहीं है. ऐसे में जनता को ही 1 रूपए वाले गुटके के 3 रूपए और 6 वाले के 12 रूपए देने पड़ रहे है. रही बात नई पैकिंग की तो ना उसको दुकानदार खरीद रहा है और ना ही खाने वाला. ऐसे में अगर इस बात पर भी विचार किया जाये की आखिर इस कानून का क्या होगा तो जवाब मिलेगा की कानून की किसको पड़ी है.
जब मियाँ बीवी राजी तो....
किसी ने सही ही कहा है की जब मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी. यह कहावत इन दिनों गुटका बेचने वालो पर सटीक बैठ रही है. रिटेलर को खुलेआम पाउच बंद माल मिल रहा है तो खाने वाला भी यहीं सोच कर एक के तीन दे रहा है की जब तक मिलता है तब तक तो लो, उसके बाद देखेंगे की क्या होता है.
हंगामा है क्यों बरपा
अभी दो दिन पुरानी बात है. हिसार के अधिकारियों की नींद खुली और वो पहुँच गए पालीथीन बैग बेचने वालो पर कार्यवाही करने. उन्होंने नगर के होलसेल बाजार में धड़ाधड छापे मारे और 280 किलोग्राम पालीथीन बैग जब्त कर लिया. अब आप ही बताओ की अगर अधिकारीयों की नींद उस दिन खुली तो उसमे हंगामा किस बात का. बाजार वाले एकत्रित हो गए और लगे हंगामा करने. जब उनकी दाल नहीं गली तो पालीथीन जब्त करने के विरोध में बाजार बंद कर दिया और नारेबाजी करने लगे. अधिकारीयों ने भी किसी ओर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में मशगुल रहे. अब कोई दुकानदारों से पूछने वाला हो की भाई हंगामा किस बात का. तुम को तो खुश होना चाहिए की आखिर शहर के अधिकारी किसी कानून के प्रति जागे तो सही. रही बात गुटका बेचने वालो की तो कुछ ऐसा करो की आम जनता को इस बिमारी से निजात मिल सके.

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1 आपकी गुफ्तगू:

Dinesh pareek said...

अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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