बीता वर्ष 2010 आपके लिए कैसा रहा यह मै नहीं जानता. लेकिन आशा ही कर सकता हूँ की अच्छा ही रहा होगा. इसके साथ भगवान् से दुआ करता हूँ की वर्ष 2011 में आपके वो सब काम पूरे हो जो या तो पूरे नहीं हो सके या पूरे हो नहीं सकते थे. मेरा भी एक सपना था जो 2010 में पूरा नहीं हो सका. बहुत से सगे-संबंधी, यार-दोस्त और परिवार वालो को उम्मीद थी की शायद यह साल जाते-जाते मुझे पुत्र प्रदान कर जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि भगवान् को शायद मेरे घर एक और नन्ही परी जो भेजनी थी. मै भी खुश था और मेरे परिवार के लोग भी. लेकिन यह शायद सभी की सांत्वना ही थी की एक लड़की के बाद अगर लड़का हो जाता तो परिवार पूरा हो जाता.
लेकिन सब कहते है की उसके आगे किसका वश चल सका है. वो तो अपने हिसाब से ही काम करता है. जब उसको ही करना है तो दुःख और सांत्वना किस बात की. अब देखो ना मेरी पहली बेटी टिया जिसका जन्म 31 अगस्त 2008 को हुआ था. लगभग ढाई साल की उम्र में ही वो दो महीने से प्रतिदिन रात को मेरा मोबाइल पर कुछ देर अपने आप बात कर के सोती थी. जब उससे पूछते तो कहती की अपनी सहेली से बात कर रही हूँ. सुनकर अच्छा भी लगता था और उसकी बात पर हँसी भी आती थी. लेकिन 17 दिसंबर 2010 को जब मेरी साली को लड़की हुई तो उसके बाद उसने फोन पर बात करना बंद कर दिया था. सभी को लगा की शायद टिया इसी से बात करती होगी.
कहते है की अक्सर बच्चो की जुबान से भगवान् बोलता है. यहीं कारण था की उसकी मम्मी (मेरी पत्नी) जब भी उससे पूछा करती थी की बेटा कौन आएगा तो वो कहती की काकी आएगी. वो नाराज होकर मुहं बनाती तो टिया अपनी मम्मी के पेट से लिपट कर कहती की मम्मी काकी. उसके प्यार के आगे वो भी पिंघल जाती और कहती की बेटा काका आएगा. लेकिन जब साली के लड़की हुई तो लगा की शायद अब मुझे लड़का ही होगा. लेकिन अब लगता है की वाकई बच्चे तो भगवान् होते है. लड़की होने का हमको कोई दुःख नहीं क्योंकि बाप को तो लड़कियां जान से भी प्यारी होती है. आज बेटे कौन से अपने माँ-बाप की उम्मीदों पर खरा उतर रहे है.
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मेरे घर आई एक नन्ही परी
उसकी दादी की जुबानी
मेरी मम्मी को लड़की होने का कोई दुःख नहीं है. सिर्फ उनका इतना ही कहना है की अगर लड़का हो जाता तो परिवार पूरा हो जाता. जबकि साथ ही वो कहती है की आज माँ-बाप को लडको से लडकियां ज्यादा प्यारी लगती है. क्योंकि उनको अगला घर बसना होता है जबकि आज लड़के अपना घर ही उजाड़ने पर तुले हुए है.लडकियां क्या लडको से ज्यादा खाती है
इन सब बातो के विपरीत मेरी सोच कुछ अलग है. यह बात ठीक है की मै टिया से अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता हूँ. लेकिन मै आप लोगो से यह पूछना चाहता हूँ की आखिर हमको लड़कियों से इतना परहेज क्यों. क्या वो लडको से ज्यादा खाती है. क्या वो लडको से ज्यादा मांगती है.बस एक डर सा है
अंत में इतना ही कहना चाहूँगा की आज मन में एक डर सा है. डर लड़के और लड़की के कारण नहीं, बल्कि यह की जिस कदर आज मंगाई बढ़ रही है उस हिसाब से आज तीन-तीन बच्चो को पालना मुश्किल ही नहीं आने वाले दौर में नामुमकिन सा लगता है. इसके साथ-साथ एक बात और विचार करने वाली है की जिस कदर अपराध बढ़ रहे है उस लिहाज से आने वाले समय में लडकियां क्या बुरी नजर से सुरक्षित रह पाएंगी.
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तड़का मार के
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तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
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चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
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आओ अब थोडा हँस लें
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2 आपकी गुफ्तगू:
कोई फर्क नहीं है बेटी और बेटे में, बस अपनी सोच सोच का फर्क है. बेटी अधिक स्नेहिल होती हैं और माता पिता से अधिक लगाव रखती हैं , बेटों की सोच शायद कुछ बदल जाती है या फिर उनकी संसार लड़कियों से ज्यादा बड़ा होता है. फिर भी जो मिले वह ईश्वर की कृपा है. कितने ऐसे हैं जो की एक बेटी के लिए भी तरसते हैं. जिनके संतान ही नहीं है.
अपनी सोच सोच का फर्क है
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