लगभग आधे दर्जन से अधिक समाचार पत्र-पत्रिकाओ में काम करने के बाद एक बात जरुर समझ में आई की आज पत्रकार अपने संपादक के आगे मजबूर है और संपादक अपने मालिक के आगे. कसूर उसका भी नहीं है क्योंकि मालिक या तो बाजारवाद में फंसा हुआ है या फिर उसके ऊपर सरकार या यह कहे की सरकारी आदमी का डंडा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. इस में भी कोई दो राय नहीं की आज पत्रकारिता पूंजी व् सत्ता का उपकर्म बन कर रह गई है इसलिए आज मिडिया आम आदमी से दूर होने लगी है. यही कारण है की आज कुछ समाचार या तो छपते नहीं या फिर उन्हें छापा नहीं जाता. होता यही है की बाद में ऐसे ही कुछ समाचार जनता के लिए गुफ्तगू का विषय बन जाते है.
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गुफ्तगू के बारे में
क्यों शुरू की गुफ्तगू
आज मिडिया इतना तेज हो गया है की सुबह से लेकर शाम तक लगभग सभी समाचार किसी ना किसी जरिये से हम तक पहुँच ही जाते है. लेकिन आज ऐसे बहुत से समाचार है जो हम तक तो नहीं पहुँचते लेकिन अक्सर वो जनता के लिए गुफ्तगू का विषय बन जाते है. गुफ्तगू इसी दिशा में एक सार्थक पहल है की यह समाचार भी आप तक पहुंचे. कुछ इन्ही गुफ्तगुओ से निकले हुए समाचार आपके आगे पेश है. समाचार भी ऐसे की जो आपको समाचारों के दुसरे पहलु से भी अवगत करवाएंगे. अब जरुरत है तो बस आपकी गुफ्तगू की.
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लेबल: गुफ्तगू के बारे में
तड़का मार के
* महिलायें गायब
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
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1 आपकी गुफ्तगू:
हम भी चुनाओ के बारे में बात करना चाहते है.
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