लगभग आधे दर्जन से अधिक समाचार पत्र-पत्रिकाओ में काम करने के बाद एक बात जरुर समझ में आई की आज पत्रकार अपने संपादक के आगे मजबूर है और संपादक अपने मालिक के आगे. कसूर उसका भी नहीं है क्योंकि मालिक या तो बाजारवाद में फंसा हुआ है या फिर उसके ऊपर सरकार या यह कहे की सरकारी आदमी का डंडा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. इस में भी कोई दो राय नहीं की आज पत्रकारिता पूंजी व् सत्ता का उपकर्म बन कर रह गई है इसलिए आज मिडिया आम आदमी से दूर होने लगी है. यही कारण है की आज कुछ समाचार या तो छपते नहीं या फिर उन्हें छापा नहीं जाता. होता यही है की बाद में ऐसे ही कुछ समाचार जनता के लिए गुफ्तगू का विषय बन जाते है.
गुफ्तगू के बारे में
क्यों शुरू की गुफ्तगू
आज मिडिया इतना तेज हो गया है की सुबह से लेकर शाम तक लगभग सभी समाचार किसी ना किसी जरिये से हम तक पहुँच ही जाते है. लेकिन आज ऐसे बहुत से समाचार है जो हम तक तो नहीं पहुँचते लेकिन अक्सर वो जनता के लिए गुफ्तगू का विषय बन जाते है. गुफ्तगू इसी दिशा में एक सार्थक पहल है की यह समाचार भी आप तक पहुंचे. कुछ इन्ही गुफ्तगुओ से निकले हुए समाचार आपके आगे पेश है. समाचार भी ऐसे की जो आपको समाचारों के दुसरे पहलु से भी अवगत करवाएंगे. अब जरुरत है तो बस आपकी गुफ्तगू की.
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1 आपकी गुफ्तगू:
हम भी चुनाओ के बारे में बात करना चाहते है.
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