मेरे शहर हिसार सहित देश-प्रदेश में हर और आरक्षण का शोर कभी भी और कहीं भी सुन सकते है. आज हर कोई आरक्षण की अंधी दौड़ में भागा चला जा रहा है. आरक्षण की मांग करने वालो से आम जनता को कोई सरोकार नहीं होता बावजूद इसके उनकी आत्मा हर समय यही दुआ करती है की कोई अनहोनी ना हो जाये. हिसार सहित जहां पूरा हरियाणा जात आरक्षण की आग में झुलसा वहीँ राजस्थान में भी गुर्जर आन्दोलन का धुँआ शांत नहीं हुआ है. हरियाणा में जाट आरक्षण व् राजस्थान में गुर्जर आन्दोलन के कारण पूरा शहर रुका सा नजर आ रहा था.
अब लोकसभा में महिला आरक्षण को ही देख लो. लम्बे अरसे से हर सरकार पर एक ही दबाव था की महिला आरक्षण बिल पारित किया जाये. शुक्र है भगवान् का की बिल तो पारित हो गया लेकिन इतना जरुर है की यह बिल पारित होने से एकाएक राजनीति जरुर गरमा गई थी. ठीक भी है भाई, नेता है तो राजनीति चमकाने के लिए शोरगुल तो करेंगे ही. उन्हें इस बात से क्या लेना देना की जिन महिलाओ को पुरुषो के बराबर का दर्जा दिलाने की वो बात कर रहे है वही महिलाये आज कन्या भ्रूण हत्या जैसी फैली बीमारी के कारण पेट में ही मारी जा रही है.
शोरगुल करने वाला नेता इस महामारी पर लगाम लगाने में जहाँ नाकाम है वही सरकारे भी लचीला कानून होने के कारण कुछ कर पाने में असमर्थ है. बावजूद इसके आज पैसे के लालच में एक डाक्टर इतना अँधा हो चुका है की वो इस धंधे को बंद ही नहीं करना चाहता. और सिर्फ डाक्टरों को ही क्यों दोष दिया जाये. भले ही हिन्दू, मुस्लिम, सिख हो या चाहे इसाई, हर वर्ग और जाति के लोगो के घरो में कन्या भ्रूण हत्या होती रहती है. खुद गर्भवती महिलाये भी नहीं चाहती की उसके घर में पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा हो तो कुछ घरो में वंश बढ़ाने के लिए लड़का जरुरी है कह कर गर्भपात करवा दिया जाता है.
फिर महिला आरक्षण बिल पारित होने पर हिसार सहित पूरे देश की महिलाओ को जो ख़ुशी है कहीं वो ख़ुशी सिर्फ राजनितिक तो नहीं है. अगर ऐसा नहीं है तो बुढ़ापे की लाठी सोच कर जिन पुत्रो को जनने के लिए आज हमारा समाज बेताब क्यों हो रहा है उनके स्थान पर अगर बेटियों को पैदा करने के लिए सरकार आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा प्रदान करे तो शायद देश में बेटिया बचाई जा सकती है. और इसके लिए महिलाओ को आरक्षण नहीं बराबर का दर्जा देना होगा.
वरना आने वाले समय में बेटिया यही कहेंगी की पहले मुझे बचाते फिर आरक्षण पाते.
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अब लोकसभा में महिला आरक्षण को ही देख लो. लम्बे अरसे से हर सरकार पर एक ही दबाव था की महिला आरक्षण बिल पारित किया जाये. शुक्र है भगवान् का की बिल तो पारित हो गया लेकिन इतना जरुर है की यह बिल पारित होने से एकाएक राजनीति जरुर गरमा गई थी. ठीक भी है भाई, नेता है तो राजनीति चमकाने के लिए शोरगुल तो करेंगे ही. उन्हें इस बात से क्या लेना देना की जिन महिलाओ को पुरुषो के बराबर का दर्जा दिलाने की वो बात कर रहे है वही महिलाये आज कन्या भ्रूण हत्या जैसी फैली बीमारी के कारण पेट में ही मारी जा रही है.
शोरगुल करने वाला नेता इस महामारी पर लगाम लगाने में जहाँ नाकाम है वही सरकारे भी लचीला कानून होने के कारण कुछ कर पाने में असमर्थ है. बावजूद इसके आज पैसे के लालच में एक डाक्टर इतना अँधा हो चुका है की वो इस धंधे को बंद ही नहीं करना चाहता. और सिर्फ डाक्टरों को ही क्यों दोष दिया जाये. भले ही हिन्दू, मुस्लिम, सिख हो या चाहे इसाई, हर वर्ग और जाति के लोगो के घरो में कन्या भ्रूण हत्या होती रहती है. खुद गर्भवती महिलाये भी नहीं चाहती की उसके घर में पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा हो तो कुछ घरो में वंश बढ़ाने के लिए लड़का जरुरी है कह कर गर्भपात करवा दिया जाता है.
फिर महिला आरक्षण बिल पारित होने पर हिसार सहित पूरे देश की महिलाओ को जो ख़ुशी है कहीं वो ख़ुशी सिर्फ राजनितिक तो नहीं है. अगर ऐसा नहीं है तो बुढ़ापे की लाठी सोच कर जिन पुत्रो को जनने के लिए आज हमारा समाज बेताब क्यों हो रहा है उनके स्थान पर अगर बेटियों को पैदा करने के लिए सरकार आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा प्रदान करे तो शायद देश में बेटिया बचाई जा सकती है. और इसके लिए महिलाओ को आरक्षण नहीं बराबर का दर्जा देना होगा.
वरना आने वाले समय में बेटिया यही कहेंगी की पहले मुझे बचाते फिर आरक्षण पाते.
4 आपकी गुफ्तगू:
बिल्कुल सही कहा....कन्याएँ पहले जन्म लेने का अधिकार तो पाएँ...
बिल्कुल सही कहा.... बेटिया जरूरी है
बसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)
आप अच्छा काम कर रहे हैं। आपकी खबरों मे सच्चाई झलकती है इस आग को बुझने मत देना। क्योंकि आप जैसे लोगों की न केवल मीडिया को बल्कि देश व समाज को भी जरूरत है। मेरी तरफ से शुभकामनाएं। ध्यान रहे कलम न झुके, न अटके, न भटके, न बिके।
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