लोक सभा चुनाव सिर पर है । राजनीति चरम है । और शीर्ष पर वो लोग बैठे है जो ऐसे समय में नेताओ की राजनीति चमकाने का काम करते है । बावजूद इसके कुछ ऐसे लोग भी है जो पुरे 5 साल कुछ काम कर अपना व् अपने परिवार का गुजर बसर करते है । लेकिन सदा ऐसे मौके की तैलाश में रहते है की कब चुनाव आयेंगे और कब उनके दिन फिरेंगे । ऐसा नही है की उन्हें कोई गैरकानूनी काम करना होता है लेकिन देश का एक ऐसा तबका है जिनकी रोजी-रोटी चुनावो पर टिकी होती है । और यही लोग चुनावो के दिनों में चाँदी कुटते है । फिर चाहे कोई काम मिल जाए या खाली बैठने का पैसा मिल जाए । बात तो 2 वक़्त पेट भरने की है । इन लोगो में कुछ लोग ऐसे है जो राजनितिक पार्टियों की रैलियों, जनसभाओ और यात्राओ के दौरान पार्टी और नेता के झंडे, बैनर और पोस्टर इत्यादि लगा कर अपने परिवार का पेट पालते है और कुछ ऐसे है जिन्हें चुनाव आते ही यही सामग्री बनाने का भरपूर काम मिल जाता है । बस फिर क्या नेता का हर चमचा इनके चक्कर काटता दिखाई देता है ।
इन लोगो की भीड़ में समाज का एक तबका ऐसा भी होता है जिन्हें कुछ लोग मोटा पैसा कमाने के चक्कर में उपयोग करता है । ये वो लोग होते है जिन्हें कुछ ठेकेदार सिर्फ़ इसलिए उपयोग करते है की आज किसी की रैली में जाना है या आज कही भीड़ इकट्ठी करनी है । जहा यह ठेकेदार नेता से भीड़ इकट्ठी करने के नाम पर मोटा पैसा वसूल करते है वही इन लोगो को प्रतिदिन के हिसाब से 50 से 100 रुपए मिल जाते है । इन लोगो में वो दिहाडीदार भी होते है जो काम कर अपना घर तो पलते है लेकिन कमाई करने का कोई मौका नही छोड़ना चाहते । इन्हे किसी पार्टी विशेष से कोई लेना देना नही होता बस यह संपर्क में होते है तो अपने ठेकेदार के । जिनके कहने पर यह अपना काम छोड़ भीड़ जुटाने के लिए चल पड़ते है ।
इन सबकी भीड़ से अलग ऐसे लोग भी छुपे होते है जिन्हें काम करने या भीड़ जुटाने के लिए नही बस चुनाव के दिन खाली बैठने का पैसा मिलता है । नेताओ और उनके चमचो की तरफ़ से इन लोगो को खास हिदायत होती है की चुनाव के दिन ये घर से नही निकलेंगे । इसी के नाम का इन लोगो को लोकसभा चुनावो में परिवार के प्रति सदस्यके हिसाब से 200 से 500 रुपए मिल जाते है । शायद आप कुछ कुछ समझने लगे । जी हा हम उन लोगो की बात कर रहे है जिन्हें वोट न डालने के नाम का भी पैसा मिलता है । इनकी कीमत वैसे तो परिवार के सदस्य के हिसाबसे मुक़र्रर की जाती है । जिस परिवार में ज्यादा सदस्य होंगे उसका दाम भी ज्यादा होगा । चुनाव नजदीक आते आते नेता के चमचे इसी काम में जुट जाते है की उनके एरिया का कौन सा वोट कितने में बिकने वाला है । राजनीति है भाई सब का हिसाब-किताब रखना पड़ता है ।
चुनाव है कुछ न कुछ तो मिलेगा
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तड़का मार के

तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...

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आओ अब थोडा हँस लें
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यह गलत बात है

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* मौका भी - दस्तूर भी लेकिन...
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