कांग्रेस एक बड़ा परिवार है. अक्सर बड़े परिवारों में नोक-झोंक और खींचतान तो चलती रहती है. हरियाणा के कद्दावर कांग्रेसी नेताओं का यह जुमला तो सुना सुनाया लगता है और समझ में भी आता है लेकिन पद, कुर्सी और टिकट के लिए अगर यही कद्दावर नेता अगर एक दूसरे की टांग खींचते नजर आये तो आप क्या कहेंगे. ऐसा होना और नेताओ द्वारा ऐसा करना इसलिए स्वाभाविक नहीं है की हिसार में लोकसभा का उपचुनाव होना है. यह तो हरियाणा कांग्रेस की परम्परा रही है. इतिहास गवाह रहा है की जो केंद्र की कांग्रेस सोनिया गांधी को सिरमौर बना कर राजनीति करती है वहीँ हरियाणा में एक नहीं, दो नहीं अपितु हर कद्दावर नेता की अलग कांग्रेस है.
हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री स्व. भजनलाल की अलग कांग्रेस हुआ करती तो आज मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की अलग कांग्रेस है. जबकि पूर्व वित्त मंत्री व् राज्यसभा सांसद वीरेंद्र सिंह, केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा, विधायक संपत सिंह, पूर्व सांसद जयप्रकाश, पूर्व विधायक छत्रपाल व् चौधरी रंजीत सिंह सहित और ना जाने कितने ही ऐसे कांग्रेसी नेता है जो कांग्रेस को अपनी जेब में रख कर चलते है. इतना जरुर है की यह सभी समय के साथ-साथ कांग्रेस हाईकमान और सोनिया गांधी की बात तो करते है लेकिन आपस में एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते. शायद यहीं कारण है की आज प्रदेश में होने वाला कोई सम्मलेन या रैली कांग्रेस की ना होकर नेता के नाम से जानी जाती है.
देखो ना हिसार लोकसभा उपचुनाव की तारीख की घोषणा अभी तक हुई नहीं लेकिन अब तक पांच से अधिक कांग्रेसी नेता यह कह चुके है वो लोकसभा चुनाव लड़ने को तैयार है. साथ ही साथ अपना बचाव करते हुए वो यह बात कहना नहीं भूलते की अगर हाईकमान का आदेश हुआ तो. आज एक नेता चुनाव लड़ने की बात करता है तो उसे देख कल दूसरा नेता कहता है की मैं चुनाव के लिए सबसे सक्षम हूँ. भाई अगर हाईकमान को ही फैसला करना है तो उसी के ऊपर छोड़ दो, तुम क्यों जल्दी करते हो. अब टिकट तो किसी एक को ही मिलनी है लेकिन यह समझ में नहीं आता की अगर कांग्रेस में यहीं उठापटक रही तो चुनाव के दिनों में क्या अन्य नेता उस नेता का साथ देंगे जिसको टिकट मिली है. वैसे समय गवाह है की हिसार में ऐसा कभी हुआ नहीं है की एक नेता ने दूसरे नेता का साथ दिया हो.
बीते रोज तो उस समय तो हद ही हो गई जब कांग्रेस के हरियाणा प्रभारी बी. के. हरिप्रसाद लोकसभा उपचुनाव की तैयारियों की समीक्षा हेतु बुलाई गई बैठक में कार्यकर्ताओं को संबोधित करने हिसार पहुंचे. इस दौरान कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने नेताओं को टिकट देने की बात कह कर जम कर हंगामा किया. इतना ही नहीं हरियाणा प्रभारी के आगे ही हो-हल्ला किया और कुर्सिया तक उछाली गई. एक समय ऐसा आया जब बी. के. हरिप्रसाद मंच छोड़ कर एक तरफ चले गए. किसी तरह उनको मना कर मंच पर लाया गया. लेकिन कार्यकर्ता भी क्या करे. उनके कांग्रेसी नेता कोई बी. के. हरिप्रसाद थोड़े ही थे उनकी कांग्रेस और नेता तो वो थे जिनके लिए वो इस बैठक में आये थे.
अब गुफ्तगू इस बात को लेकर शुरू हो चुकी है की एक तरफ तो कांग्रेस भ्रष्टाचार, महंगाई और प्रदेश में दिन-प्रतिदिन बिगड़ रही कानून व्यवस्था को साथ लेकर जनता के बीच जाने को विवश है उस पर अगर उसके नेता यह कहेंगे की मैं भी कांग्रेसी-मैं भी कांग्रेसी तो जनता क्या करेगी और किस को वोट देगी. पहलु मात्र इतना है की जागो नेता जागो और जनहित में कुछ कर के दिखाओं और फिर कहना की हां मैं कांग्रेसी हूँ.
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हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री स्व. भजनलाल की अलग कांग्रेस हुआ करती तो आज मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की अलग कांग्रेस है. जबकि पूर्व वित्त मंत्री व् राज्यसभा सांसद वीरेंद्र सिंह, केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा, विधायक संपत सिंह, पूर्व सांसद जयप्रकाश, पूर्व विधायक छत्रपाल व् चौधरी रंजीत सिंह सहित और ना जाने कितने ही ऐसे कांग्रेसी नेता है जो कांग्रेस को अपनी जेब में रख कर चलते है. इतना जरुर है की यह सभी समय के साथ-साथ कांग्रेस हाईकमान और सोनिया गांधी की बात तो करते है लेकिन आपस में एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते. शायद यहीं कारण है की आज प्रदेश में होने वाला कोई सम्मलेन या रैली कांग्रेस की ना होकर नेता के नाम से जानी जाती है.
देखो ना हिसार लोकसभा उपचुनाव की तारीख की घोषणा अभी तक हुई नहीं लेकिन अब तक पांच से अधिक कांग्रेसी नेता यह कह चुके है वो लोकसभा चुनाव लड़ने को तैयार है. साथ ही साथ अपना बचाव करते हुए वो यह बात कहना नहीं भूलते की अगर हाईकमान का आदेश हुआ तो. आज एक नेता चुनाव लड़ने की बात करता है तो उसे देख कल दूसरा नेता कहता है की मैं चुनाव के लिए सबसे सक्षम हूँ. भाई अगर हाईकमान को ही फैसला करना है तो उसी के ऊपर छोड़ दो, तुम क्यों जल्दी करते हो. अब टिकट तो किसी एक को ही मिलनी है लेकिन यह समझ में नहीं आता की अगर कांग्रेस में यहीं उठापटक रही तो चुनाव के दिनों में क्या अन्य नेता उस नेता का साथ देंगे जिसको टिकट मिली है. वैसे समय गवाह है की हिसार में ऐसा कभी हुआ नहीं है की एक नेता ने दूसरे नेता का साथ दिया हो.
बीते रोज तो उस समय तो हद ही हो गई जब कांग्रेस के हरियाणा प्रभारी बी. के. हरिप्रसाद लोकसभा उपचुनाव की तैयारियों की समीक्षा हेतु बुलाई गई बैठक में कार्यकर्ताओं को संबोधित करने हिसार पहुंचे. इस दौरान कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने नेताओं को टिकट देने की बात कह कर जम कर हंगामा किया. इतना ही नहीं हरियाणा प्रभारी के आगे ही हो-हल्ला किया और कुर्सिया तक उछाली गई. एक समय ऐसा आया जब बी. के. हरिप्रसाद मंच छोड़ कर एक तरफ चले गए. किसी तरह उनको मना कर मंच पर लाया गया. लेकिन कार्यकर्ता भी क्या करे. उनके कांग्रेसी नेता कोई बी. के. हरिप्रसाद थोड़े ही थे उनकी कांग्रेस और नेता तो वो थे जिनके लिए वो इस बैठक में आये थे.
अब गुफ्तगू इस बात को लेकर शुरू हो चुकी है की एक तरफ तो कांग्रेस भ्रष्टाचार, महंगाई और प्रदेश में दिन-प्रतिदिन बिगड़ रही कानून व्यवस्था को साथ लेकर जनता के बीच जाने को विवश है उस पर अगर उसके नेता यह कहेंगे की मैं भी कांग्रेसी-मैं भी कांग्रेसी तो जनता क्या करेगी और किस को वोट देगी. पहलु मात्र इतना है की जागो नेता जागो और जनहित में कुछ कर के दिखाओं और फिर कहना की हां मैं कांग्रेसी हूँ.
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