भारत की संस्कृति गलत है मै यह नहीं कहना चाह रहा लेकिन यह मै आपसे पूछना चाह रहा हूँ की कहीं आज के युवा को यह संस्कृति गलत तो नहीं लगने लगी है. मेरे नजरिये में शायद ऐसा ही कुछ है की आज का युवा वर्ग विश्व विख्यात भारत की संस्कृति से मुंह मोड़ कर पाश्चात्य संस्कृति की और रुख करने लगा है. यही कारण है की नवरात्रों के दौरान जिस सोच को लेकर डांडिया खेला जाता था उस सोच को आज युवाओं ने बदल दिया है. आज डांडिया सिर्फ मौज-मस्ती के लिए रह गया है जबकि रामलीला में आज कलाकार किस तरह की कला का प्रदर्शन करते है उसके मैंने कल भी आपको दर्शन करवाए थे और आज भी कुछ फोटो प्रस्तुत कर रहा हूँ. ऐसे में युवाओं के लिए यह कहना गलत नहीं होगा की हम आज गलत संस्कृति में जी रहे है. जबकि सही मायने में आज हम गलत परम्परा का निर्वाह कर रहे है.
डांडिया और रामलीला हिसार में भी प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है. इनमे से कुछ भगवान् राम के चरित्र पर जीवंत होती है तो कुछ में भीड़ जुटाने के लिए भौंडा प्रदर्शन. जबकि डांडिया में आज युवाओं की मानसिकता क्या होती है यह बताने की जरुरत नहीं है. लडको की आवारागर्दी जहा ऐसे कार्यक्रम बिगाड़ने में अहम् भूमिका निभाती है तो लडकियों द्वारा पहनी जाने वाली पोशाक भी मुख्य रोल अदा करती है. इसके अतिरिक्त लड़के-लडकियों को भी डांडिया और रामलीला में मिलने का मौका मिल जाता है वो अलग से. इस बात का खुलासा इससे होता है की देश के एक प्रमुख समाचार चैनल ने दावा किया है की इस तरह के आयोजन युवाओं के लिए मौका मात्र है. ऐसा नहीं है की इस बात का पता माँ-बाप को नहीं होता. लेकिन उस समय युवा यह बात भूल जाते है की माँ-बाप ने उन्हें जन्म दिया है ना की उन्होंने उनको.
You are Here: Home > गलत संस्कृति या गलत परम्परा
गलत संस्कृति या गलत परम्परा
जासूसी ही एक मात्र उपाय
समाचार चैनल का कहना था की ऐसे आयोजनों को लेकर अब अभिभावक भी सतर्क होने लगे है. वो अपने बच्चो को इन कार्यक्रम में जाने से तो नहीं रोकते लेकिन बच्चे किसी गलत राह पर ना जा रहे हो उसे देखने के लिए बच्चो की जासूसी जरुर करवाई जा रही है. ऐसे में एक जासूसी कंपनी के संचालक का कहना था की इन दिनों बच्चो की जासूसी के कारण उन्हें जासूसों की कमी से दो-चार होना पड़ता है. अब आप ही बताये की अगर देश की संस्कृति को चलाये रखने के लिए गलत परम्परा का उपयोग किया जाने लगे तो उसको आप क्या कहोगे. गलत संस्कृति या गलत परम्परा
Related Articles :
लेबल: त्यौहार, धार्मिक गुफ्तगू, पारिवारिक गुफ्तगू, युवा, सभी, हिसार की गुफ्तगू
तड़का मार के

तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...

चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.

आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.

भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
a
1 आपकी गुफ्तगू:
अच्छी पोस्ट , अच्छा विषय
गोयल जी,
मेरा यह मनना है की धर्म ही व्यक्तिओं को संस्कृति से जोड़ता है, हिंदुस्तान के युवाओ में आज कल आस्था, श्रृद्धा और इश्वर के प्रति सम्मान कम होता जा रहा है, और आडम्बर बढता जा रहा है, वे गरबा करने माता की उपासना के लिए नहीं, कन्याओं के लिए जाते है. जिस दिन जे युवा माँ के लिए जायेगे ये "आवारागर्दी" नहीं होगी.
Post a Comment