Wednesday, April 02, 2025

गलत संस्कृति या गलत परम्परा


भारत की संस्कृति गलत है मै यह नहीं कहना चाह रहा लेकिन यह मै आपसे पूछना चाह रहा हूँ की कहीं आज के युवा को यह संस्कृति गलत तो नहीं लगने लगी है. मेरे नजरिये में शायद ऐसा ही कुछ है की आज का युवा वर्ग विश्व विख्यात भारत की संस्कृति से मुंह मोड़ कर पाश्चात्य संस्कृति की और रुख करने लगा है. यही कारण है की नवरात्रों के दौरान जिस सोच को लेकर डांडिया खेला जाता था उस सोच को आज युवाओं ने बदल दिया है. आज डांडिया सिर्फ मौज-मस्ती के लिए रह गया है जबकि रामलीला में आज कलाकार किस तरह की कला का प्रदर्शन करते है उसके मैंने कल भी आपको दर्शन करवाए थे और आज भी कुछ फोटो प्रस्तुत कर रहा हूँ. ऐसे में युवाओं के लिए यह कहना गलत नहीं होगा की हम आज गलत संस्कृति में जी रहे है. जबकि सही मायने में आज हम गलत परम्परा का निर्वाह कर रहे है.
डांडिया और रामलीला हिसार में भी प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है. इनमे से कुछ भगवान् राम के चरित्र पर जीवंत होती है तो कुछ में भीड़ जुटाने के लिए भौंडा प्रदर्शन. जबकि डांडिया में आज युवाओं की मानसिकता क्या होती है यह बताने की जरुरत नहीं है. लडको की आवारागर्दी जहा ऐसे कार्यक्रम बिगाड़ने में अहम् भूमिका निभाती है तो लडकियों द्वारा पहनी जाने वाली पोशाक भी मुख्य रोल अदा करती है. इसके अतिरिक्त लड़के-लडकियों को भी डांडिया और रामलीला में मिलने का मौका मिल जाता है वो अलग से. इस बात का खुलासा इससे होता है की देश के एक प्रमुख समाचार चैनल ने दावा किया है की इस तरह के आयोजन युवाओं के लिए मौका मात्र है. ऐसा नहीं है की इस बात का पता माँ-बाप को नहीं होता. लेकिन उस समय युवा यह बात भूल जाते है की माँ-बाप ने उन्हें जन्म दिया है ना की उन्होंने उनको.

जासूसी ही एक मात्र उपाय
समाचार चैनल का कहना था की ऐसे आयोजनों को लेकर अब अभिभावक भी सतर्क होने लगे है. वो अपने बच्चो को इन कार्यक्रम में जाने से तो नहीं रोकते लेकिन बच्चे किसी गलत राह पर ना जा रहे हो उसे देखने के लिए बच्चो की जासूसी जरुर करवाई जा रही है. ऐसे में एक जासूसी कंपनी के संचालक का कहना था की इन दिनों बच्चो की जासूसी के कारण उन्हें जासूसों की कमी से दो-चार होना पड़ता है. अब आप ही बताये की अगर देश की संस्कृति को चलाये रखने के लिए गलत परम्परा का उपयोग किया जाने लगे तो उसको आप क्या कहोगे. गलत संस्कृति या गलत परम्परा

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1 आपकी गुफ्तगू:

Amit Soni said...

अच्छी पोस्ट , अच्छा विषय
गोयल जी,
मेरा यह मनना है की धर्म ही व्यक्तिओं को संस्कृति से जोड़ता है, हिंदुस्तान के युवाओ में आज कल आस्था, श्रृद्धा और इश्वर के प्रति सम्मान कम होता जा रहा है, और आडम्बर बढता जा रहा है, वे गरबा करने माता की उपासना के लिए नहीं, कन्याओं के लिए जाते है. जिस दिन जे युवा माँ के लिए जायेगे ये "आवारागर्दी" नहीं होगी.

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