एक समय था जब कोई स्कूल खोलता था तो उसकी बड़ी वाह-वाह की जाती थी. कहा जाता था की यह स्कूल जनता की भलाई के लिए खोला गया है. बच्चे इसमें पढ़-लिख कर बड़े होंगे और अपना भविष्य सवारेंगे. धीरे-धीरे यह प्रचलन ही बन गया और जहा देखो वहा स्कूल खुलने लगे. फर्क मात्र इतना है की कहीं आज भी स्कूल यह कह कर खोले जाते है की इन स्कूलों में गरीब बच्चे पढ़ सकेंगे. तो कहीं हाई-प्रोफाइल स्कूल खोल कर यह दिखाने का प्रयास किया जाता है की इस स्कूल में बच्चो को सभी सुख-सुविधाए मुहैया करवाई जाएगी. माता-पिता भी आज यही चाहते है की उनके बच्चो को स्कूल में कोई परेशानी ना हो. लेकिन उस समय कोई यह नहीं देखता की आखिर यह स्कूल किस उद्देश्य को लेकर खोला गया था. आज स्कूल संचालको के लिए सभी मापदंड समाप्त हो गए है. अब उनका एक ही मकसद है की स्कूल के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा पैसा कैसे कमाया जा सकता है. यही कारण है की आज शिक्षा भी व्यापार की तरह बिकने लगी है. क्योंकि जिस तरह व्यापार में जो चीज दिखावे पर बिकती है उसी तरह आज स्कूल भी वही चलता है तो दिखता है. रही बात सस्ती शिक्षा की तो वो सिर्फ सरकारी स्कूलों के नाम ही रह गई है. अब सरकारी स्कूलों में बच्चे रह ही कितने गए है.
आज शहर हो या गाँव. गली-गली में स्कूलों और कोचिंग सैंटरो की भरमार हो गई है. जो सुख-सुविधाए एक कार्यालय में होती है आज वो स्कूल के क्लास रूम में मिलने लगी है. ऐसी क्लासों में प्रवेश पाने के लिए जहा अभिभावकों को अपनी जेबे ढीली करनी पड़ती है वही बच्चे भी स्कूल का नाम, डिग्री और भविष्य को ध्यान में रख कर ऐसे स्थानों पर प्रवेश पाने की जिद करते है. लेकिन ऐसे शिक्षण संस्थानों का क्या हश्र होता है वो आप सभी समय-समय पर पढ़ते और सुनते रहते होगे. ऐसा नहीं है की यहाँ मै सभी संस्थानों के बारे में यही कहना चाहता हूँ लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे होते है जिनके बारे में सुन कर दुःख भी होता है और हँसी भी आती है की आज हम कहा जा रहे है. इससे पहले भी मैंने एक कोचिंग सेंटर के लिए गुफ्तगू की थी की किस तरह उसने बच्चो के भविष्य से खिलवाड़ किया. उसने ना सिर्फ बच्चो की मोटी रकम हड़प ली बल्कि कोचिंग के बाद नौकरी दिलवाने का जो झांसा दिया दिया था उसे भी पूरा नहीं किया. पोस्ट पढ़े:- बच्चो के भविष्य से खिलवाड़ करते कोचिंग सेंटर. आज जो गुफ्तगू मै आपके लिए लाया हूँ उसमे भी ऐसा ही कुछ है.
कमाई और शिक्षा में पिसता बच्चो का भविष्य
लेबल: गुरु घंटाल, युवा, सभी, सामाजिक गुफ्तगू, हिसार की गुफ्तगू
तड़का मार के

तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...

चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.

आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.

भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
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यह गलत बात है

पूरे दिन में हम बहुत कुछ देखते है, सुनते है और समझते भी है. लेकिन मौके पर अक्सर चुप रह जाते है. लेकिन दिल को एक बात कचोटती रहती है की जो कुछ मैंने देखा वो गलत हो रहा था. इसी पर आधारित मेरा यह कॉलम...
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आज लडकियां ना होने की चाहत या फिर फैशन के चलते अक्सर लडकियां आँखों की किरकिरी नजर आती है. जरुरत है बदलाव की, फैसला आपको करना है की बदलेगा कौन...
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1 आपकी गुफ्तगू:
यही तो विडम्बना है इस प्रगतिशील समाज की!
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