कौन बदलेगा! सरकार, समाज, प्रशासन या हम


हरियाणा के रुचिका प्रकरण को लेकर जो कुछ चल रहा है वो आप सभी टीवी व् समाचार पत्रों में पढ़ रहे है लेकिन जो नहीं चल रहा वो सिर्फ प्रबुद्ध नागरिको के लिए गुफ्तगू का विषय बना हुआ है. अभी तक यही समझ में नहीं आ रहा है की इस मामले में क्या हुआ है और अभी क्या होना बाकी है. अगर यह कहा जाये की दोषी अभी भी अपनी सजा को लेकर निश्चिन्त है तो गलत नहीं होगा. क्योंकि अभी तक जो समाचार पत्रों में पढ़ा है और टीवी पर देखा है वो ह्रदय को झकझोर कर
रख देने वाला है. लेकिन इस प्रकरण ने माता-पिता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है की क्या वाकई बेटिया उन पर बोझ होती है. आखिर माँ-बाप अपनी बेटियों के मान-सम्मान को जीवित रखने के लिए किस पर भरोसा करे. ऐसा नहीं है की यह देश के इतिहास में कोई पहला मामला है. इससे पहले भी अनेक मामले ऐसे आये जो की बेटियों के बारे में चिंताजनक थे. लेकिन हर मामला यही दर्शाता है की सरकार ना तो इन मामलो के खिलाफ कुछ कर पा रही है और ना ही कन्या भ्रूण हत्या के प्रति सजग है. यही कारण है की अब जनता यही सोचने लगी है की अगर देश में इस तरह के मामले ऐसे ही बढ़ते रहे तो एक दिन कन्या भ्रूण हत्या को पुनः बढ़ावा मिलने लगेगा. अगर ऐसे प्रकरणों पर रोक नहीं लगी या फिर दोषियों को सख्त सजा नहीं मिलेगी तो वो दिन दूर नहीं जब लडकियों को माँ-बाप बोझ समझने लगेगे.

हिसार तक फैली आग
ऐसा नहीं है की रुचिका प्रकरण की आग हरियाणा से होते हुए देश में फ़ैल गई हो और हिसार इस से अछुता रह गया हो. यह आग हिसार तक आई और इसका कारण था उस समय की मौजूदा औमप्रकाश चौटाला सरकार. और सरकार में गृह मंत्री रहे मौजूदा कांग्रेस विधायक संपत सिंह. लेकिन उन्होंने मामला उठने से पहले ही अपना पल्ला झाड़ लिया. लेकिन नगर के प्रबुद्ध नागरिको ने मौन कैंडल मार्च निकाल कर दोषियों को सख्त सजा देने की मांग की. इस मौके पर प्रख्यात शिक्षाविद शमीम शर्मा का कहना था की रुचिका प्रकरण आग का बवाल है तथा जब तक जन-जन एक नहीं होगा यह आग फैलती चली जाएगी. उनका कहना था की ऐसे मामलो में किसी रुतबे को नहीं देखना चाहिए क्योंकि इससे कन्या भ्रूण हत्या को और अधिक बढ़ावा मिलेगा.
हर विभाग में तैनात है भेडिये
ऐसा नहीं है की ऐसे मामले उजागर होने पर ही किसी विभाग को कोसा जाये. जबकि असलियत यह है की हवस के मारे भेडिये हर विभाग में तैनात है. जो मौका मिलते ही किसी को भी अपनी हवस का शिकार बनाने से गुरेज नहीं करते. यह बात अलग है की अभी तक के मामलो में सबसे ज्यादा उंगली पुलिस विभाग पर उठी है जबकि सच्चाई यह है की ट्यूशन पढने जाओ तो शिक्षक की नजरे, खेलो में जाओ तो प्रशिक्षक की नजरे, नृत्य, संगीत सिखने जाओ तो उससे जुड़े प्रशिक्षक की नजरे और अगर बाजार में जाओ तो युवाओ की नजरे व् कभी मौके से किसी लड़की को अपनी प्रतिभा को उजागर करने का मौका मिले तो वरिष्ठ लोग उसकी अस्मत से खिलवाड़ करने के लिए लालायित नजर आते है. इस मामले में हिसार के एक अन्य शिक्षाविद डा. एम्.एम् जुनेजा की बात सही है की आज देश के प्रत्येक विभाग में ऐसे लोग शामिल है लेकिन अगर समय रहते पढ़े-लिखे लोग नहीं जागे तो यह प्रशासन नहीं जागेगा.
यह तो बात हो गई उनकी जो मेरे साथ गुफ्तगू करते है लेकिन मेरा पहलु यह है की आखिर अब कौन बदलेगा! समाज या हम. क्योंकि सामाजिक ताने-बाने को कलुषित करने वाले अपराध, कन्या भ्रूण हत्या को रोकने व् समाज में लड़का-लड़की के अनुपात को संतुलित करने के लिए सबसे जरुरी है की उन हालातो को बदला जाये जिनके कारण माता-पिता कन्या को भार समझने के लिए विवश हो जाते है.

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