इसलिए जरुरी है एनकाउंटर


अभी हाल ही में मैंने गुफ्तगू की थी की हांसी में बदमाशो की बादशाहत किस कदर हावी है. ऐसा नहीं है की यह कोई पहला मौका था जिसमे प्रसिद्ध व्यापारी देवराज लोहिया की गोली मार कर हत्या कर दी गई. इससे पहले भी ऐसी बहुत सी घटनाए हो चुकी है जिसमे व्यापारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. मैं समय-समय पर गुफ्तगू के माध्यम से हांसी का हाल ब्यान कर चुका हूँ. लेकिन इस बार स्थिति ऐसी थी की मुझे यह लिखना पड़ा की अब पुलिस के पास एनकाउंटर के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है, जिससे इन बदमाशो पर अंकुश लगाया जा सके. अब सवाल उठता है की ऐसा ही क्यों कहा मैंने. तो अब आप ही देख लो.
हांसी में ज्वैलरी का काम करने वाला एक व्यापारी अपनी दुकान पर ग्राहकों के साथ व्यस्त था की दो-तीन महिलाए वहा आ गई. कुछ ही देर में उन्होंने 35000 रूपए कीमत का एक हार, 10 से 15 हजार कीमत की अंगुठिया और कुछ अन्य सामान पसंद कर लिया. बातो ही बातो में उन्होंने दुकानदार को कुछ ऐसा बताया की दुकानदार हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और कहने लगा की बहन जी, मुझ पर थोड़ी सी कृपा करो. मैं इतना बड़ा व्यापारी नहीं हूँ की आपको सब कुछ एक साथ बिना पैसे के दे दूँ. आप कुछ ऐसा करो की आपका भी काम चल जाए और मुझे भी नुक्सान ना हो. दुकानदार की यह प्रार्थना सुन कर महिलाए पड़ोस की दुकान में चली गई और कुछ सामान वहा से ले लिया. आप भी समझ गए होंगे की यह महिलाय कौन हो सकती है. जी हां, देवराज लोहिया की हत्या के पश्चात सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हांसी के मुख्य व्यापारी कुछ ऐसी ही जिन्दगी बीता रहे है. ऐसा वो इस लिए कर रहे है की उन्हें अपनी जान प्यारी है और बदमाश है की उनके हौसले दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे है.
मुख्य लोग कर चुके है हांसी से पलायन
एक तो जान का जोखिम और दूसरा ऐसे घुट-घुट कर जीने से तो अच्छा है की कहीं और बसेरा डाल लिया जाये. कुछ ऐसी ही सोच लिए अब तक हांसी से लगभग आधा दर्जन लोग पलायन कर चुके है. ऐसे ही एक गोली काण्ड में जख्मी हुए डा. एम. एल. कालड़ा ने सबसे पहले हांसी से पलायन करते हुए दिल्ली में डेरा डाला था. इसके पश्चात भी दिनो-दिन बढती लूटपाट, गोलीकांड और हत्याओ से सकपकाए लोग हांसी छोड़ चुके है. जिनमे व्यापारी, डाक्टर व् होटल स्वामी मुख्य है. यहाँ तक की कुछ लोग तो अपने व्यापार व् परिवार सहित हांसी से रुखसत हो चुके है.
किस-किस ने क्या-क्या किया
ऐसा नहीं है की हांसी ( जिसको की जिला बनाने के लिए सरकार विचार कर रही है ) में इतना सब कुछ हो जाये और जनता, पुलिस प्रशासन और राजनीति ठंडी रही हो. फर्क सिर्फ इतना है की व्यापारियों ने जहा इन बदमाशो के खिलाफ कोई कार्यवाही के लिए पुलिस का साथ नहीं दिया वही पुलिस ने भी किसी अपराधी को पकड़ने में कोई खास भूमिका या तत्परता नहीं दिखाई. इसी का नतीजा रहा की जहा समय-समय पर विपक्षी नेताओ ने सरकार व् स्थानीय कांग्रेसी नेताओ पर अपराधियों से मिलीभगत के आरोप तो लगाये लेकिन कांग्रेसी नेताओ और विधायक ने इन घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन व् पुलिस पर सख्त कदम उठाने के लिए कभी दबाव नहीं बनाया. तो अब आप सोच रहे होंगे की आखिर किसी ने भी किया तो क्या किया. तो मैं यह बता दूँ की जनता ने धरना-प्रदर्शन सहित बैठके कर बहुत प्रयास किया की प्रशासन कुम्भकर्णी नींद से जागे और अपराधियों को पकड़ने का प्रयास करे, लेकिन उल्टा पुलिस ने अपराधियों को ना पकड़ कर धरना-प्रदर्शन करने वाले लोगो पर ही केस दर्ज कर दिया. उधर जब जनता ने पुलिस-पब्लिक सम्मलेन किया तो हांसी के विधायक और कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस जिलाध्यक्ष छत्रपाल बैठक में ही नहीं पहुंचे. ऐसे मैं किसी को क्या पड़ी है की कोई अपने हाथ-पैर हिलाए.
तभी तो झेलना पड़ा जनता का गुस्सा
चुनावों के दौरान जनता से बड़े-बड़े दावे करने वाले कांग्रेसी उम्मीदवार छत्रपाल और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा जहा आज जनता की नजरो से बच रहे है वही हजंका की टिकट पर चुनाव जीत कर कांग्रेस में शामिल हुए विधायक विनोद भ्याना भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे अपराधिक ग्राफ के कारण लोगो के बीच आने से कतरा रहे है. जबकि विधायक के कांग्रेस में शामिल होने के पश्चात छत्रपाल और हुड्डा ने जनता से दावा किया था की अब आपकी ताकत दोगुनी हो गई है क्योंकि एक तो भ्याना कांग्रेस में शामिल हो चुके है दूसरा छत्रपाल स्वयं कांग्रेसी है. लेकिन इस दोगुनी ताकत का एहसास जनता को उस समय हुआ जब जनता द्वारा आयोजित पुलिस पब्लिक सम्मलेन में ना तो विधायक विनोद भ्याना पहुंचे और ना ही छत्रपाल. आज जब व्यापारी देवराज लोहिया की दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गई तो पक्ष-विपक्ष के नेताओ सहित यह दोनों नेता भी जनता को ढाढस बंधाने के लिए पहुँच गए. शायद इन्हें यह ज्ञात नहीं था की जनता का गुस्सा उफान पर है. यही कारण था की जनता ने अगली-पिछली सारी कसर निकालते हुए दोनों नेताओ को खूब खरी-खोटी सुनाई.

ऐसा ही कुछ इनका भी है
 जनता व् व्यापारी इतना सब कुछ होने के बाद भी किसी को अपना मान रहे थे. वो कहावत है ना की चोर-चोर भाई-भाई. ऐसा ही कुछ हाल व्यापारियों का भी था. वो अभी भी व्यापारी नेता और कान्फेड अध्यक्ष बजरंग दास गर्ग को अपना मान रहे थे. वही बजरंग दास गर्ग जो किसी भी व्यापारी के साथ कैसी भी घटना होने के पश्चात तुरंत हरियाणा सरकार मुर्दाबाद करने के लिए मौके पर पहुँच जाते थे. लेकिन आजकल ऐसा नहीं हो रहा. क्योंकि आज कल कान्फेड अध्यक्ष की कुर्सी मिलने से वो व्यापारी नहीं अपितु सरकारी हो चुके है. इसलिए उन्हें यह सभी हत्याकांड विपक्षी लगने लगे है. इसलिए वो सिर्फ सांत्वना देने के लिए तो जाते है लेकिन सरकार या सरकारी मशीनरी पर उनका वो व्यापारी नेता वाला दबाव नहीं है जो की पिछली सरकारों में हुआ करता. यही कारण था की इस हत्याकांड के बाद जब वो मौके पर पहुंचे तो जनता ने उन्हें वहा से खदेड़ दिया.
अब क्या करे
अब आप ही बताओ की देश-प्रदेश में शांति बनाये रखने के लिए क्या किया जाये. जहा जनता बेबस हो, मंत्री-संतरी सो रहे हो और सरकारी मशीनरी को किसी की परवाह नहीं हो तो आपके पास कोई समाधान है क्या. मेरा दिल तो पुलिस से एक ही पुकार करता है की बिना किसी वैर-द्वेष के बदमाशो का चुन-चुन कर एनकाउंटर कर दिया जाये. जैसा की दो साल पहले किया गया था. क्योंकि जनता कुछ समय हो-हल्ला कर चुप हो जाती है, नेता लोग फिर से राजनीति में व्यस्त हो जायेंगे और अधिकारियों का तो प्रदेश में भगवान् ही मालिक है.

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