कहने को तो 13 अक्तूबर को हरियाण में विधानसभा चुनाव है। लेकिन जब सोमवार को रात 8 बजे मेरा फोन खनका तो मेरा सर चकराया सोचा जिस मित्र का फोन है वो भी राजनीती या चुनाव के बारे में जानकारी लेने के लिए ही मेरा दिमाग खायेगा। लेकिन जब उसने चुनाव के दिन दिल्ली चलने की बात कहीं तो मैं भी सोच में पड़ गया। मैंने झट से उसको कहा की भइया कल तो चुनाव है दिल्ली कैसे जा सकते है। तो उसने भी फट से कहा की श्री मान पत्रकार महोदय चुनाव हरियाणा में है न की दिल्ली में। बात मेरी भी समझ में आ गई लेकिन फ़िर मैंने उसको कहा की वोट तो देना ही है तो उसने कहा की अगर अपने 2 वोट नही गिरेंगे तो कोई हार-जीत नही जाएगा। चल कल दिल्ली चलते है कुछ दीपावली की खरीदारी कर आयेंगे। अभी मैंने उसको मना कर के फोन रखा ही था की फ़िर एक मित्र का फोन घनघनाया और उसने जो पूछा वो मुझे यह सोचने पर मजबूर कर गया की आखिर हम जैसे मतदाताओ की यही सोच है तो फ़िर ये नेता किस नाम की राजनीती करते है और क्यो घर घर जाकर चुनाव के दिन वोट डालने की अपील करते है। आप भी सुनिए उस दोस्त ने क्या कहा। उसने कहा की सूर्य कल हरियाणा में चुनाव है इसलिए मैंने लुधियाना से माल लाने का कार्यक्रम बनाया है, गाड़ी लेकर जा रहा हूँ अगर तू भी चले तो सोचता हूँ की एक से दो भले। उसको भी मैंने टालने की सोची तो वो तपाक से बोला की चुनाव की कवरेज़ करने के लिए क्या गले में बिल्ला टांग कर सड़क ही तो नापेगा, चल लुधियाना घुमा कर लाता हूँ सोच लेना की सड़क ही नाप रहा हूँ। अब इस महानुभाव को कौन समझाए की एक तो मतदान के दिन मतदान करना जरुरी उस पर अपना पेशा ऐसा। लेकिन किसी तरह मैंने उसको भी अपनी मज़बूरी समझाई और आखिर में ना कर दी।
लेकिन इन दोनों दोस्तों के फोन ने मुझे जो आप से गुफ्तगू करने का पहलू दिया वो गौर करने लायक है की जिस तरह नेता लोग हमारा वोट हथियाने के लिए हमारा उपयोग करते है क्या उसी तरह हमको भी ऐसे क्षण का उपयोग करना चाहिए की जब हरियाणा बंद है तो दिल्ली या लुधियाना जाकर अपने व्यापार या अपने काम के लिए समय का उपयोग कर ले। अगर ऐसा ही है तो फ़िर क्यों ये नेता राजनीती करते है और क्यों वोट मांगते है लेकिन फ़िर मेरी समझ में आता है की अगर दिल्ली और लुधियाना से माल लाना अगर इनका व्यापार है तो राजनीती कर वोट मांगना इन नेताओ का व्यापार है। आख़िर सभी को अपना स्वार्थ ही तो सिद्द करना है।
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वोट, राजनीती और व्यापार- सभी का अपना अपना स्वार्थ
लेबल: चुनावी गुफ्तगू, सभी
तड़का मार के

तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...

चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.

आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.

भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
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1 आपकी गुफ्तगू:
मेरी समझ में आता है की अगर दिल्ली और लुधियाना से माल लाना अगर इनका व्यापार है तो राजनीती कर वोट मांगना इन नेताओ का व्यापार है। आख़िर सभी को अपना स्वार्थ ही तो सिद्द करना है।
आज हरियाणा के शेयर मार्केट पर ताला लग जायेगा।
देखें किस-किस का स्वार्थ सिद्ध होता है।
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