यह बात बताने से कोई फायेदा नही की चुनावी दंगल का बिगुल बज चुका है । इस दंगल में एक दुसरे को मात देने के लिए कोई आमने सामने है तो कोई कुर्सी के लिए आपस में हाथ मिला रहे है । कोई ऐसे है की किसी का हाथ छोड़ किसी और का दामन पकड़ रहे है । कुल मिला कर कुर्सी पाने के लिए सब जनता को बेवकूफ बना रहे है । जनता भी बेचारी क्या करे । आज किसी को कोस रही है तो कल उसी की बातो में आ कर उसी को वोट दे देती है । ये राजनेता भी जनता की इसी कथनी और करनी का फायेदा उठाते है । क्यो न उठाये फायेदा उनका तो धंधा ही यही है । फिर चाहे अपने स्वार्थ के लिए किसी से हाथ मिलाये और किसी का छोड़ दे जानता की किसको पड़ी है । जबकि एक समय होता था जब गठबंधन जनता के हित के लिए किया जाता था । लेकिन आज सब कुर्सी के लिए होने लगा है । यही करण है की आज जनता के हित से जुड़े मुद्दे गौण हो रहे है । फिर चाहे नवीन पटनायक हो या फिर हरियाणा में इनलो-भाजपा । फर्क इतना है की एक ने राज के लिए साथ छोड़ दिया तो एक ने दिल्ली के लिए दिल मिला लिए । राजनीति में यह सब देख अब तो ऐसा लगने लगा है की राजनेताओ का दिल अब दिल नही दिल्ली बन गया है । इसी का परिणाम था की मायावती ने नेताओ को भोज तक दे डाला तो कुलदीप बिश्नोई सीपीएम कार्यालय तक जा आए ।
इन सब बातो से मुझे जो पहलु मिला वो यह की क्या इन्साफ की तरह हमारी आँखों पर भी पट्टी बंधी है । क्या नेता कुर्सी के लिए हमारी खून पसीने की कमाई ऐसे ही उडाते रहेंगे । अब हमको भी अपने दिल को संभालना होगा अब देश में सत्ता परिवर्तन से सुधार नही होगा बल्कि हमको ही जागरूक होना भी पड़ेगा और करना भी पड़ेगा ।
दिल है की दिल्ली हो गया
लेबल: गठबंधन, चुनावी गुफ्तगू, सभी
तड़का मार के

तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...

चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.

आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.

भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
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यह गलत बात है

पूरे दिन में हम बहुत कुछ देखते है, सुनते है और समझते भी है. लेकिन मौके पर अक्सर चुप रह जाते है. लेकिन दिल को एक बात कचोटती रहती है की जो कुछ मैंने देखा वो गलत हो रहा था. इसी पर आधारित मेरा यह कॉलम...
* मौका भी - दस्तूर भी लेकिन...
* व्हीकल पर नाबालिग, नाबालिग की...
लडकियां, फैशन और संस्कृति

आज लडकियां ना होने की चाहत या फिर फैशन के चलते अक्सर लडकियां आँखों की किरकिरी नजर आती है. जरुरत है बदलाव की, फैसला आपको करना है की बदलेगा कौन...
* आरक्षण जरुरी की बेटियाँ
* मेरे घर आई नन्ही परी
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