रैली के लिए मंच सजा हुआ और जनता धुप हो या सर्दी या फिर भारी बरसात हो रही हो, पलके बिछाये अपने नेता का इंतजार करती नजर आती है. उनका एक ही मकसद होता है की बस अभी उनके नेता आयेंगे और उनके लिए कोई खास घोषणा करेंगे. बस इसी इंतजार में जनता एक से दो घंटे तक इंतजार करती रहती है. तभी नेता जी मंच पर आते है और भीड़ को देख गदगद होते है और दोनों हाथ जोड़ कर सभी का अभिनन्दन करते है. बहुत कुछ बोलते है और उससे ज्यादा बोलना भी चाहते है लेकिन मारे डर के
चुप हो जाते है की पता नहीं जो बोलेंगे वो पूरा कर पाएंगे भी या नहीं. लेकिन इस बीच वो उन सभी कार्यकर्ताओ और नेताओ की पीठ थपथपाना नहीं भूलते जिसने इतनी भीड़ जुटाने में अपनी दिन-रात एक कर दी. कार्यकर्ता और ब्लाक स्तर के नेता भी अपनी-अपनी हाजरी लगाने के लिए बाकायदा नेता जी को अपने एक-एक समर्थक से मिलवाने का पूरा बंदोबस्त करता है. लेकिन नेता जी कुछ से मिल पाते है और कुछ से नहीं. लेकिन उक्त नेता और कार्यकर्ता यह जरुर बताने और दिखाने की कोशिश करता है की वो कहा-कहा से भीड़ जुटाने में कामयाब हुआ है. इसके लिए वाहनों पर ब्लाक, पंचायत, गाँव और जिले तक के नाम का स्टीकर लगा होता है. भीड़ भी आयोजन के हिसाब से जुटाई जाती है. अगर कार्यक्रम ब्लाक स्तर का हो तो 50 से 100 और यही आयोजन मंडल स्तर का हो तो भीड़ की संख्या 200 से 300 तक पहुँच जाती है. जबकि कार्यक्रम किसी विधायक या जिलास्तरीय हो तो यही संख्या 1000, 2000 से 5000 तक जुटाई जाती है. विधायक और उसके चाहने वालो का एक ही मकसद होता है की किसी तरह आयोजन स्थल को भीड़ से लबालब किया जाये.
अब आते है मुद्दे पर
यह राम कहानी तो थी एक नेता, कार्यकर्ता और रैली की. कैसे एक रैली को कामयाब बनाने के लिए रणनीति तैयार कर काम किया जाता है. तब कही जा कर एक रैली में भीड़ नजर आती है. भीड़ अच्छी हुई तो नेता से लेकर उसके चमचे तक की नाक बच जाती है लेकिन अगर भीड़ नेता के मन मुताबिक नहीं हुई तो लगता है की नेता के साथ-साथ कार्यकर्ताओ का भी विपक्षी पार्टी वाले जनाजा निकाल देंगे. लेकिन अगर वही नेता या यह कहे की तीन माह पूर्व ही विधानसभा चुनाव जीत कर विधायक बने संसदीय सचिव जिलास्तरीय गणतंत्र दिवस समारोह में ध्वजारोहण करने आते है तो आमजन की संख्या शून्य मात्र ही होती है. ऐसा इसलिए होता है की उस समय उस नेता को कोई कुछ कहने वाला नहीं होता. लेकिन अगर गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौको पर भी यही नेता अपने समर्थको और कार्यकर्ताओ के सहयोग से भीड़ जुटानी आरम्भ कर दे तो जहा जिले का नाम रोशन होगा वही उक्त नेता की भी वाहवाही होगी. साथ ही उन सैकड़ो स्कूली बच्चो का हौसला भी बढेगा जो कार्यकर्ताओ की तरह ही दिन-रात एक कर दर्शको के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम तैयार करते है.
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शर्म आनी चाहिए नेता जी को
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तड़का मार के
* महिलायें गायब
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
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1 आपकी गुफ्तगू:
अगर भ्रम टूट गया तो नेतागिरि बेअसर हो जायेगी!
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