एक अधिकारी को दादागिरी इतनी महंगी पड़ सकती है यह शायद हिसार के जिला उपायुक्त के सहयोगी व् आदमपुर के तहसीलदार दिलबाग गोदारा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. यही कारण रहा की उक्त अधिकारी ने जहाँ एक कर्मचारी के साथ गाली-गलौच की वही इस घटनाक्रम की कवरेज कर रहे पत्रकारों पर मौके पर रखा गमला उठा कर दे मारा. आखिरकार मामला उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक तक पहुंचा और अधिकारी पर मामला दर्ज कर लिया गया. लेकिन ढिलमुल विभागीय कार्यवाही के चलते पत्रकारों ने लघु सचिवालय में धरना दिया जहा आरोपी तहसीलदार को माफ़ी मांग कर अपना पीछा छुडवाना पड़ा.
हुआ कुछ यूँ की प्रदेश के तहसीलदारों और नायाब तहसीलदारों की एक बैठक पंचायत भवन में आयोजित की गई थी. इस बैठक में पत्रकारों को भी न्यौता दिया गया था. पत्रकार अभी पहुंचे ही थे की तहसीलदार दिलबाग गोदारा की पंचायत भवन में तैनात केयर टेकर महावीर सिंह के साथ कमरा खोलने को लेकर विवाद हो गया. बात-बात में विवाद इतना बढ़ गया की कमरा खोलने को लेकर दिलबाग गोदारा ने महावीर सिंह को यहाँ तक कह दिया की डी सी के मेरा ..... पड़ेगा, तुम कमरा खोलो. उक्त शब्दों को सुन जब पत्रकारों ने अपने कैमरे खोले तो तहसीलदार साहब भड़क उठे और पत्रकारों के पीछे भाग पड़े. इस दौरान उन्होंने वहा रखा एक गमला एक पत्रकार पर दे मारा.
घटनाक्रम की कवरेज जब पत्रकारों ने हिसार के जिला उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक को दिखाई तो आरोपी तहसीलदार के खिलाफ मामला तो दर्ज कर लिया गया लेकिन पत्रकारों की मांग के अनुसार उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया. जिसके विरोध स्वरूप पत्रकारों ने लघुसचिवालय में धरना देना पड़ा. मामले को भापते हुए तहसीलदार अपने कुछ साथियो सहित धरना स्थल पर आये और यह कहते हुए हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी की भविष्य में वो किसी के साथ भी गाली-गलौच नहीं करेंगे.
अधिकारी की दादागिरी
लेबल: अपराधिक गुफ्तगू, कानून, पत्रकार, प्रशासन, सभी, हिसार की गुफ्तगू
तड़का मार के

तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...

चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.

आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.

भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
a
यह गलत बात है

पूरे दिन में हम बहुत कुछ देखते है, सुनते है और समझते भी है. लेकिन मौके पर अक्सर चुप रह जाते है. लेकिन दिल को एक बात कचोटती रहती है की जो कुछ मैंने देखा वो गलत हो रहा था. इसी पर आधारित मेरा यह कॉलम...
* मौका भी - दस्तूर भी लेकिन...
* व्हीकल पर नाबालिग, नाबालिग की...
लडकियां, फैशन और संस्कृति

आज लडकियां ना होने की चाहत या फिर फैशन के चलते अक्सर लडकियां आँखों की किरकिरी नजर आती है. जरुरत है बदलाव की, फैसला आपको करना है की बदलेगा कौन...
* आरक्षण जरुरी की बेटियाँ
* मेरे घर आई नन्ही परी
* आखिर अब कौन बदलेगा
* फैशन में खो गई भारतीय संस्कृति
1 आपकी गुफ्तगू:
सरकारी नौकरी का कमाल तो यही है!
Post a Comment