सबको दे दो आरक्षण


हरियाणा: आज एक बार फिर हरियाणा आरक्षण की आग में जलने को तैयार है. जाट समुदाय के लोग पिछले आन्दोलन के दौरान बनाये गए मुक़दमे वापिस लेने के साथ-साथ आरक्षण की मांग को लेकर धरने पर है. ऐसे में जहाँ उन्होंने कई जगह रेलवे ट्रैक व् सड़क मार्ग जाम कर दिए है वहीँ प्रशासन भी किसी अनहोनी के अंदेशे के मद्देनजर मुस्तैद नजर आ रहा है. इसलिए जहाँ अब हिसार से दिल्ली दूर नजर आने लगा है वहीँ कई ऐसे सड़क मार्ग है जो अब दोगुनी समय सीमा में तय हो रहे है. बावजूद इसके जाट समुदाय का कहना है की एक ओर जब तक उनके ऊपर बनाये गए मुक़दमे वापिस नहीं लिए जाते वहीँ दूसरी ओर आरक्षण नहीं मिलने तक अब वो मानने वाले नहीं है.
यही कारण है की आज गुफ्तगू हो रही है की आरक्षण का शोर तो आज हर ओर सुनाई दे रहा है. जबकि मांगने वाले को पता ही नहीं की वो आरक्षण मांग ही क्यों रहा है. बस एक नेता की आवाज पर हो लिए उसके पीछे-पीछे. अब उनसे कोई पूछने वाला हो की क्या आरक्षण मांगने से पहले उनके घर में चूल्हा नहीं जल रहा था या उनको कोई परेशानी आ रही थी अपने बच्चो के लालन-पालन में. लेकिन नहीं इसका उनके पास कोई जवाब नहीं है. तो क्या इसका मतलब यह है की क्या हम लकीर पीट रहे है या भेड़चाल की माफिक चल रहे है.
अब देखो ना पहले तो सिर्फ अनुसूचित जातिया - जनजातियाँ ही आरक्षण की मांग किया करती थी लेकिन यह शायद मेरे देश का या यह कहें की संविधान का दुर्भाग्य ही है की आज जिसे देखो आरक्षण की मांग पर मांग किये जा रहा है. दुःख इस बात का नहीं की आरक्षण की मांग क्यों हो रही है दुःख तो इस बात का है की भारत की एकता के लिए जो " हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई, हम सभी है भाई-भाई" का नारा दिया जाता था उसके तो आज मायेने ही बदल गए है. आज धर्म की बात तो कोई करता ही नहीं है.

जो हिन्दू धर्म कभी 36 बिरादरियो की एकता का दम भरता था उसमे आज जात की बात होने लगी है. इससे ज्यादा दुःख की बात और क्या होगी की हिन्दुस्तान में आज कोई हिन्दू होने की बात नहीं करता. आज बात होती है तो सिर्फ मै बाल्मीकि, मै धानक, मै जाट, मै गुर्जर व् मै चमार की. गुफ्तगू का पहलु यह है की आज हर कोई आरक्षण के लिए झंडा उठाये हुए है. जबकि देश की किसी को कोई खबर नहीं है. आज आरक्षण से सिर्फ बचे है तो पंजाबी, ब्रह्मण व् अग्रवाल समुदाय.

लगता यह है की आज आरक्षण जनता की नहीं अपितु राजनीति की जरुरत बन कर रह गया है. आरक्षण मुद्दे पर सरकार कभी अपने को पाक-साफ़ दिखाना चाहती है तो कभी गेंद केंद्र के पाले में डाल देती है. जबकि विपक्ष अपनी अलग ही दाल गलाता नजर आता है. संविधान निर्माण के समय सिर्फ 10 साल के लिए किये आरक्षण पर आज किसी की भूमिका सकारात्मक नहीं है. कोई नहीं चाहता की देश से आरक्षण ख़त्म हो जाये और ना ही आज तक किसी ने प्रयास किया की इसका कोई हल निकला जाये.
पिसना तो आम आदमी को है
जाट समुदाय को आरक्षण मांगते महीनो हो गए. कभी वो तोड़-फोड़ करते है तो कभी सड़क मार्ग जाम कर देते है. आज हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के रेलवे ट्रैक सुने पड़े है. सरकार से लेकर उच्च व् सर्वोच्च न्यायालय तक की सभी अपील अब तक कोई रंग नहीं दिखा पाई. घर व् काम-धंधे छोड़ कर रेल पटरी पर बैठे लोगो के कानों पर कोई जूं तक नहीं रेंग रही. अब तो यहीं लगता है की इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि पिसना तो आम आदमी को ही है.
तो फिर सबको दे दो आरक्षण
अगर अब जाट समुदाय को भी आरक्षण दे दिया गया तो बचा कौन. सिर्फ अग्रवाल, पंजाबी व् ब्रह्मण. जबकि अब हरियाणा में ये तीनो समुदाय भी आरक्षण के लिए एकजुट होकर बैठके आयोजित कर रहे है. अगर जाट समुदाय का मामला शांत होने के पश्चात फिर से इन तीनो समुदाय के लिए आरक्षण की मांग उठी और ऐसे ही धरना-प्रदर्शन होना है तो आज ही क्यों नहीं सभी को आरक्षण दे दिया जाएँ.

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