आखिर कौन लेगा ख़बर देने वालों की ख़बर


वैसे तो भारत में मिडिया को चौथे स्तम्भ का दर्जा दिया गया है। लेकिन बीते कुछ समय से मिडिया पर जिस तरह से उंगलिया उठ रही है उसे देख लगता है की या तो मिडिया पर आजकल अनायास ही उंगलिया उठाई जाने लगी है या फिर कुछ तो मिडिया ऐसा ग़लत कर ही रहा है जिसके कारण आज उसे समय-समय पर कटघडे में खड़ा होना पड़ रहा है। मुंबई ब्लास्ट, मुंबई के ताज होटल में आतंकियों द्वारा की गई गोलीबारी, स्वाइन फ्लू, राखी का स्वयंवर व् और न जाने ऐसी कितनी ही कवरेज़ है जिसे मिडिया को बहुत कम एहमियत देनी चाहिए थी। या फ़िर यह कहा जाए की यह सब कुछ दिखाना ही नही चाहिए था तो भी मेरी सोच ग़लत नही होगी। लेकिन आज कल मिडिया द्वारा जो कुछ परोसा जा रहा है वो सिर्फ़ टी. आर. पी. बढ़ने के लिए। ऐसे में आज जनता यह समझ पाने में असक्षम की उन्हें क्या देखना पसंद है और क्या नही। फ़िर भले ही समाचारों में आतंक की खबरे हो या स्वाइन फ्लू की न्यूज़ दिखा कर देश में आतंक फैलाया जा रहा हो। अक्सर यह सवाल उठते है की मिडिया को यह नही दिखाना चाहिए ऐसा नही करना चाहिए लेकिन आज ख़बर देने वालो की ख़बर लेने वाला कोई नही है।
अब हरियाणा सरकार को ही देख लो। न. वन हरियाणा के प्रचार के लिए 144 गाडिया लगाई सो लगाई लेकिन होने वाले विधानसभा चुनावो में मिडिया का मुह बंद रखने के लिए हरियाणा का ऐसा कोई समाचार पत्र नही होगा जिसमे हरियाणा सरकार की वाह-वाह की खबरे नही छप रही हो। दिन की शुरुवात होने के साथ जैसे ही कोई भी समाचार पत्र हाथ में उठाया तो सबसे ऊपर प्रतिदिन हरियाणा सरकार के विज्ञापन के दर्शन जरुर होते है। फ़िर भले ही वह समाचार पत्र कितना ही बड़ा हो या कितना ही छोटा हो हरियाणा में जरुर आना चाहिए। ऐसा कर जहा प्रत्येक समाचार पत्र चांदी कूट रहा है वही हरियाणा सरकार सरकारी खजाने को जम कर खाली करने पर तुली है वही आने वाले विधानसभा चुनावो में समाचार पत्रों का मुंह बंद रखने का यह सबसे अच्छा तरीका है। मुद्दा यह नही की सरकार ऐसा क्यो कर रही है या समाचार पत्र ये विज्ञापन क्यो छाप रहे है लेकिन यहाँ पहलु यह है की क्या हम यह मान ले की इतना सब कुछ होने के बाद भी विधानसभा चुनावो के समय ये समाचार पत्र सरकार की नाकामिया हम तक पहुंचाएंगे। क्या ये पत्र अब ऐसा कोई राज खोलेंगे जिसमे सरकार की भूमिका नकारात्मक रही हो।
मुझे नही लगता की ऐसा कुछ होने वाला है लेकिन इतना अवश्य है की अब हमको ही नींद से जागना होगा और कुछ सोचना होगा की आखिर जिस सरकार ने अपने 5 साल के कार्यकाल के समय इतने विज्ञापन नही दिए तो अब क्या जरुरत पड़ गई। कही सरकार वाकई तो अपनी कोई नाकामिया छुपाने के लिए ऐसा नही कर रही। अगर ऐसा कुछ है तो क्या अब हमको ही ख़बर देने वालो की ख़बर लेनी होगी।
इस विषय पर अभी मेरी गुफ्तगू यही खत्म नही हुई इन ख़बर देने वालो का आगे का हाल अभी देता रहूँगाकुछ और है मेरे पास जो अभी जारी है

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1 आपकी गुफ्तगू:

शरद कोकास said...

कथादेश के मीडिया विषेशांक मे इस बात पर विस्तार से चर्चा की गई है । यह एक ज़रूरी विषय है -शरद कोकास ,दुर्ग,छ.ग.

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