योजनाएं तो बनती ही खाने के लिए है



राष्ट्रीय : राजीव गाँधी जी अक्सर अपनी जनसभाओ में एक बात पुरजोर से कहते थे की सरकार द्वारा शुरू की गई किसी भी योजना का 25 प्रतिशत हिस्सा ही जनता तक पहुँच पाता है जबकि बाकी का पैसा तो बीच रास्ते में ही ख़त्म कर दिया जाता है. शायद सही ही कहते थे वो. आज देश के लगभग हर प्रदेश में यही हो रहा है. बात करे केंद्र सरकार की तो वो भी राजीव गाँधी जी के इस कथन से अछूती नहीं है. आज केंद्र सरकार द्वारा भी शुरू की गई किसी भी योजना का पूरा-पूरा लाभ जनता तक नहीं पहुँच पा रहा है.
कामनवेल्थ गेम्स हो या आदर्श सोसाईटी घोटाला या फिर हो 2 जी स्पेक्ट्रम मामला. सभी को पता है की इन सभी योजनाओं का कितना पैसा जनता के हित में खर्च हुआ और कितना ही पैसा बीच रास्ते में ही लुटा दिया गया. नेताओं व् भ्रष्ट  अधिकारियों के लिए यह कोई पहला मौका था की उन्हें योजनाओं के तहत पैसा खाने का अवसर मिला है. लेकिन इतना जरुर है की बीते वर्ष में जितनी तादात में पैसा खाया गया उसे देख अब यह गुफ्तगू आम हो गई है की आज योजनायें बनती ही पैसा खाने के लिए है.
सड़क निर्माण हो या स्ट्रीट लाईट या हो सीवरेज व्यवस्था का रख-रखाव. सरकार या प्रशासन द्वारा चलाई गई हर योजना को शुरू करने से पहले यह हिसाब लगाया जाता है की इस योजना से कितना पैसा खाना है. हरियाणा सरकार की कन्यादान योजना के तहत मिलने वाले 31000 रूपए हो या मकान अनुदान योजना के तहत मिलने वाले 50000 रूपए या हो बुढ़ापा पेंशन वितरण, जनता तक कोई भी रकम भी पूरी नहीं पहुँच रही. कॉमनवेल्थ गेम्स घोटालें की आग में जहाँ दिल्ली की मुख्यमंत्री शिला दीक्षित के हाथ भी जल चुके है वहीँ बिहार के विकास के पुरोधा नितीश कुमार की सरकार भी विवादों के घेरे में आ चुकी है.
प्रदेश की गरीब लड़कियों को साइकिल बांटने की योजना का फैसला तो एक अच्छा कदम था लेकिन भ्रष्ट अधिकारीयों को मौका मिल गया पैसा खाने का. ऐसे  में देश का आगे क्या होगा यह तो समय के गर्भ में है लेकिन इतना जरुर है की सभी को यह अवश्य पता चल गया है की आज सरकारी योजनायें तो बनती ही पैसा खाने के लिए है.

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