राष्ट्रीय: किसी को क्या पता था की अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश पर जो जूता ईराक में फेंका जा रहा है वो भारतियों के लिए वरदान साबित होगा. पता नहीं क्यों भारत की जनता ने नेताओं पर जूता फेंकने को हाथो हाथ अपनाया. शायद हमारे नेताओं में ही कोई कमी रही होगी की नेताओं पर जूता फेंकने का रिवाज ऐसा चला की केंद्रीय नेताओं से लेकर मुख्यमंत्री हो या फिर मात्र सांसद. जनता ने किसी को नहीं बक्शा. फिर भले ही पूर्व गृह मंत्री पी. चितंबरम हो या हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा या हो कुरुक्षेत्र से सांसद नवीन जिंदल. जूता खाने वाले हर नेता को जनता ने यह बताने का प्रयास किया की उसके राज में कुछ गलत हो रहा है.
भारत में जब जूता फेंकने का दौर शुरू हुआ तो उस समय लोकसभा चुनाव सिर पर थे. यही कारण था की लोगों को और अधिक मौका मिला जूता फेंकने के माध्यम से नेताओं के खिलाफ अपनी भड़ास निकालने का. जनता ने इसका भरपूर फायेदा भी उठाया तो विपक्ष ने भी खूब तालियाँ बजाई. अब फिर एक बार जनता को मौका मिला है अपनी बात कहने का. नए और अनोखे तरीके से मेरे देश के नेता आम आदमी की बात को अब कैसे सुनते है और उस पर क्या कार्यवाही करते है वो तो समय के गर्भ में है लेकिन इतना जरुर है की पहले जो बात जूता फेंकने के बाद कहीं जाती थी वो अब स्याही या कालिख पोतने के बाद कही जाएगी.
अब देश में ऐसा पहली बार हुआ की काले धन को देश में वापिस लाने, भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म करने व् जन लोकपाल बिल पर कांग्रेस सरकार की नींद उड़ाने वाले बाबा रामदेव पर काली स्याही उछाल दी गई. बस फिर क्या था पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नेताओं के खिलाफ जनता को मिल गया एक और रामबाण. अभी बाबा पर स्याही फेंके कुछ ही दिन बीते थे की दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय के बाहर लगे बोर्ड पर छपे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के फोटो पर किसी ने कालिख पोत दी. गुफ्तगू हो रही है की लोकसभा चुनाव के जूता युग के बाद अब विधानसभा चुनावों के दौरान कहीं कालिख युग शुरू ना हो जाएँ.
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