रणनीति में भविष्य या भविष्य की रणनीति


हर वर्ष की भांति साल 2011 भी गुजर गया. जिस तरह हम सभी ने इस वर्ष के आने की ख़ुशी मनाई थी उसी तरह इसके जाने की भी उतनी ही ख़ुशी मनाई. मेरे ऐसा कहने के कारण बहुत से रहे लेकिन मुख्य कारण रहा की पूरा वर्ष जहाँ एक के बाद एक भ्रष्टाचार की परते खुलती रही वहीँ पूरा साल हमने भ्रष्टाचार से लड़ने में गुजार दिया. इतना जरुर है की 2011 में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जनता एक मत होकर सड़को पर अवश्य उतरी. इसी कारण रहा की कभी हमने बाबा रामदेव के काले धन को वापसी लाने की आवाज को बुलंद किया तो कभी स्वामी अग्निवेश की भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम में हम शामिल हुए. जबकि लोकपाल बिल के समर्थन में समाजसेवी अन्ना हजारे के अनशन को देश के राजनीतिज्ञ और जनता अभी तक भूले नहीं है.
देश से भ्रष्टाचार को ख़त्म करने व् लोकपाल बिल को लागू करवाने के लिए कुछ जाने-माने लोगों ने एक रणनीति के तहत काम किया. यह इस रणनीति का ही कमाल ही था की जनता को अपना भविष्य उज्जवल दिखाई देने लगा. फिर भले ही वो अनशन का मौका हो या फिर कैंडल मार्च या हो बाजार बंद का आयोजन. लोकपाल बिल के समर्थन में पूरे देश ने अपनी आहुति डाली. एक बारगी तो आम जनता ने भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम की रणनीति से भविष्य के सपने संजोने आरम्भ कर दिए थे. ऐसा लगने लगा था की या तो अब देश में भ्रष्टाचार कुछ ही दिनों का महमान है या फिर यह भ्रष्ट सरकारे. हर एक आयोजन से जहाँ सरकार की खूब किरकिरी हुई वहीँ राजनीति में भी उहापोह की स्थिति बनी रही.
आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला आरम्भ हुआ तो राजनीति और भ्रष्टाचार के गढ़े मुर्दे भी उखड़ने लगे. कभी बाबा रामदेव पर राजनीतिक प्रहार हुए तो कभी अरविन्द केजरीवाल व् किरण बेदी पर सरकारी खजाने को नुक्सान पहुँचाने के आरोप. कभी प्रशांत भूषण पर हमला तो कभी अनशन को लेकर हंगामा हुआ. राजनीतिक दल बाहर तो एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे लेकिन भ्रष्टाचार व् लोकपाल बिल पर संसद में सभी भाई-बहन की तरह बैठे दिखाई दिए. हर किसी ने भ्रष्टाचार के विरोध में हर एक मुहीम की काट की जुगत बैठानी आरम्भ कर दी थी. इसी का नतीजा था की भ्रष्टाचार व् लोकपाल बिल पर काम कम और बात ज्यादा होने लगी. रणनीति एक मुद्दा बन गई और लोग इस से उबने लगे.
चुनावों के दौरान कांग्रेस की खिलाफत करने की रणनीति हो या मुंबई में अनशन. जनता अन्ना हजारे से किनारा करने लगी. संसद की कार्यवाही के दौरान जनता समझने लगी थी की जिस रणनीति में वो अपना भविष्य संजो रही है वो कामयाब होने वाली नहीं है. नेता चाहते ही नहीं की उनके ऊपर कोई लोकपाल व् कानून बने. जब करना ही इन नेताओं को है तो समय खराब करने से क्या फायेदा. ऐसा नहीं है की जनता चाहती नहीं की देश में लोकपाल बिल आये लेकिन वो आज एक बार फिर टीम अन्ना की ओर एक आशा भरी नजरों से देखने लगी है. भले ही संसद के इस सत्र में लोकपाल बिल पास ना हुआ हो लेकिन मजबूत लोकपाल बिल लाने के लिए आज जरुरत है तो भविष्य की रणनीति बनाने की.

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