चिठ्ठी पर चिठ्ठी-चिठ्ठी पर चिठ्ठी



शायद यह कांग्रेस के लिए विडम्बना ही है की जब से केंद्र में मनमोहन सिंह और हरियाणा में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने अपनी दूसरी पारी शुरू की है तब से चिठ्ठी-पत्री की अनोखी परम्परा शुरू हो गई है. कभी कोई समाजसेवी मनमोहन सिंह को कांग्रेस में सुधार के लिए चिठ्ठी लिखता है तो कभी कोई कांग्रेसी नेता हाईकमान को कांग्रेसियों की शिकायत के लिए पत्र लिखता है. एक के बाद एक पत्र जाते है लेकिन कार्यवाही जहाँ शून्य मात्र है वहीँ कांग्रेस और कांग्रेसियों की हरकतें दिन-प्रतिदिन बिगडती ही जा रही है. चिठ्ठी के जवाब में जहाँ प्रधानमंत्री ना महंगाई रोक पा रहे है वहीँ अभी तक जन लोकपाल बिल पारित करवाने के प्रति भी उनका रवैया नकारात्मक ही रहा है.
अगर प्रदेश की बात करें तो कांग्रेस हिसार में एक के बाद एक चुनाव हार रही है और हारे हुए कांग्रेसी उम्मीदवारों द्वारा बार-बार पत्र लिखने के बाद भी हाईकमान चुनावों के दौरान कांग्रेस की मुखालफत करने वाले अपने छोटे-बड़े व् वरिष्ठ नेताओं पर नकेल नहीं कस पा रही है. शायद यहीं कारण है की प्रदेश में मैं भी कांग्रेसी-मैं भी कांग्रेसी की कवायद बढ़ रही है. बीते हिसार लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश की जमानत जब्त होना इसी की परिणिति है. अगर यहीं हाल रहा तो इसी माह होने वाले आदमपुर और रतिया विधानसभा उपचुनाव में साख खोती कांग्रेस व् कांग्रेस को हराती कांग्रेस के लिए अपना वर्चस्व बचाना भी मुश्किल हो जायेगा. 
अभी कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश की हार की स्याही सूखी भी नहीं है की यह दोनों उपचुनाव कांग्रेस के लिए सिर दर्द पैदा कर सकते है. लेकिन इतना जरुर है की कोई वरिष्ठ नेता या फिर कोई हारा हुआ प्रत्याशी कांग्रेस हाईकमान को पत्र लिख कर अपना दुखड़ा रोये कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ता. पड़े भी क्यों, क्योंकि एक की सुनी नहीं तो कई नाराज. अगर कांग्रेस को फर्क पड़ना होता या फिर उसको कार्यवाही ही करनी होती तो उस समय ही कोई ठोस कदम उठा लिए जाते जब वरिष्ठ कांग्रेसी नेता रंजीत सिंह ने आदमपुर विधानसभा उपचुनाव में शिकस्त खाई थी. उन्होंने भी उस समय हाईकमान को एक चिठ्ठी लिख उन सभी नेताओं के नाम दिए थे जिन्होंने उनकी मुखालफत की थी. 
अब गुफ्तगू इस बात को लेकर हो रही है की आखिर ऐसी कौन सी वजह है की कांग्रेस अपने ही प्रत्याशियों की हार और उनके साथ हुए भीतरघात के पश्चात भी चुप बैठी है. कांग्रेसियों की मुश्किल यह है की बार-बार नेताओं द्वारा विभिन्न चुनावों के पश्चात हाईकमान को शिकायत देने के वर्षो बाद भी आज तक किसी पर कोई कार्यवाही नहीं की गई. मजेदार बात तो यह है की खुलम-खुल्ला भीतरघात करने वाले नेताओं के खिलाफ अपनी आवाज मुखर करने वाले सभी कांग्रेसी नेता व् प्रत्याशी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के करीबी है और मुख्यमंत्री के कहने के बाद ही उनको टिकट दी गई थी. ऐसे में कोई कार्यवाही नहीं किये जाने पर बड़ा परिवार और अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाली कांग्रेस आज चिठियों के फेर में जरुर उलझी नजर आ रही है.

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