वो बिजली-पानी का खेल


अक्सर देखने में आता है की बिजली और पानी दोनो ऐसी चीजे है जो राजनेताओ सहित राजनीति को भी अपने इर्द-गिर्द चक्कर काटने पर मजबूर रखती है. कहने का अर्थ यह है की आज देश का राजनेता बिजली और पानी की राजनीति में ही उलझ कर रह गया है या यह कहे की वो जनता को उलझाये रखता है. यही कारण है की आज देश का कोई भी प्रदेश हो बिजली और पानी जैसे मुद्दे सिर उठाये खड़े है. ऐसा नहीं है की इन मुद्दों को ख़त्म नहीं किया जा सकता लेकिन मुश्किल तो यह है की इन दोनों ही मुद्दों को राजनेता ख़त्म ही नहीं करना चाहते. कारण वही की करनी है तो सिर्फ राजनीति. फिर अगर इन्ही मुद्दों को सुलझा लिया गया तो उनके पास यह बताने के लिए कुछ मिलेगा ही नहीं की उनकी सरकार ने क्या किया और क्या करना अभी बाकी है. यही कारण है की लगभग दो दशक से सतलुज-यमुना लिंक नहर के पानी की हरियाणा का किसान अभी तक मुंह बाए बाट जोह रहा है. इतना जरुर है की किसान को पानी तो नहीं मिला लेकिन एसवाईएल को लेकर पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारे समय-समय पर अपनी राजनीति चमकाती रही है. मजेदार बात तो यह है की जब पंजाब में प्रकाश सिंह बादल की सरकार थी तो हरियाणा में औमप्रकाश चौटाला की. उल्लेखनीय है की दोनों ही नेता अपने को पगड़ी बदल भाई कहते है. लेकिन ना तो बादल ने पानी देने की हां भरी तो ना चौटाला ने ही कहा की हरियाणा को उसके हिस्से का पानी मिलना चाहिए. उधर कांग्रेस हरियाणा में शोर मचाती रही की चौटाला एसवाईएल मुद्दे पर चुप बैठे है. इस मुद्दे को लेकर अभी दोनों ही प्रदेश की राजनीति अपने चरम पर थी की पंजाब व् हरियाणा में कांग्रेस की सरकारों ने गद्दी संभाल ली. लेकिन तब भी स्थिति जस की तस रही. आज फिर पंजाब में बादल सत्ता में है तो हरियाणा में कांग्रेस. लेकिन पानी है की मुद्दा बन कर ही रह गया है. ऐसा ही कुछ हाल बिजली का है. जहा तक मुझे याद आ रहा है की हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बंसीलाल अपने शासन के अंतिम समय में यही कह गए थे की अब हरियाणा को बिजली के लिए किसी अन्य राज्य पर निर्भर रहना नहीं पड़ेगा. उस समय उन्होंने पानीपत थर्मल प्लांट की नींव रखी थी. उसके बाद गर्मी बीती सर्दी का मौसम आया लेकिन कोई भी सरकार बिजली के मामले में जनता के इरादों पर खरा नहीं उतर सकी. जब भी किसी नेता से बात की गई तो उनका कहना था जनता की बिजली की जरुरत बढ़ गई है इसलिए बिजली की पूर्ति करना बहुत मुश्किल है. जब कभी राजनीति करने की जरुरत पड़ी तो फिर वही राग अलापा जाता की अब खेदड़ प्लांट शुरू होने को है अब हरियाणा में बिजली की कोई कमी नहीं होगी. लेकिन आज हिसार के खेदड़ प्लांट की इकाई भी शुरू हो चुकी है लेकिन बिजली समस्या है की ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही है. अब तो ऐसा लगने लगा है की भले ही जनता बिजली-पानी के लिए त्राहि-त्राहि करती रहे नेताओ को क्या फर्क पड़ता है. उन्हें तो सत्ता और सत्ता सुख से मतलब है.इसी सत्ता सुख के चलते आज बिजली और पानी नेताओं के लिए महज एक खेल बन कर रह गया है.

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