आज महंगाई चरम सीमा पर है। सब्जी से लेकर दाल तक के रेट आसमान को छू रहे हैं। आटे का रेट भी इस समय 14 रुपए किलोग्राम हो चुका है परंतु इस सब के बाद भी सेवा के बदले में सरकार यदि किसी को मात्र 200 रुपए मासिक दे तो इसे सरकार की किस सोच का नमूना कहा जाए। एक दिन के केवल 6 रुपए 66 पैसे में इस महंगाई के जमाने में कैसे कोई अपनी सेवा दे सकता है।
यह विचार करने वाली बात है, परंतु प्रदेश में इतने ही पैसे में आशा वर्कर अपनी सेवाएं दे रही है। आशा वर्कर पर स्वास्थ्य विभाग की तमाम योजनाएं जमीनी स्तर पर लागू करने की जिम्मेवारी होती है। ग्रामीण स्तर पर आशा वर्कर लोगों के बीच स्वास्थ्य जागृति फैलाने में अहम भूमिका भी निभा रही है। स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य जांच करने से लेकर उन्हें स्वास्थ्य के प्रति जागरुक बनाने का कार्य भी आशा वर्कर करती आ रही है। इतना ही नहीं गर्भवती महिलाओं के पोषण एवं स्वास्थ्य की जांच का कार्य भी आशा वर्कर ग्राम स्तर पर बखूबी कर रही है। इतने सब करने के बाद भी उसे नसीब होता है एक अनपढ़ मजदूर से भी कई गुणा कम वेतन के रुप में एक दिन के 6 रुपए 66 पैसे। इतना मानदेय देना सरकार द्वारा नारी का अपमान नहीं है तो क्या हो सकता है। आज जब महिलाओं को आगे लाने की बातें की जाती और उन्हें हर स्तर पर 33 प्रतिशत तक का आरक्षण देने की बात कही जाती है तो ऐसे में आशा वर्करों के साथ ऐसा अन्याय किया जा रहा है।सरकार द्वारा इस समय मनरेगा के मजदूरों को भी एक दिन में 179 रुपए दिए जाते हैं। इससे साफ हो जाता है कि सरकार आशा वर्करों के कार्य और योग्यता को लेकर कितनी गम्भीर है। सरकार द्वारा अपनाई जा रही इस नीति से क्या कोई आशा वर्कर पूरी ईमानदारी से काम कर पायेगी-ये सवाल शायद ही व्यवस्था बनाने वालो को समझ में आता हो। बहरहाल पूरे प्रदेश में जैसे-जैसे हजारों आशा वर्कर 200 रुपए महीनें में काम कर रही है-यह एक जमीनी हकीकत है।
1 आपकी गुफ्तगू:
आपकी साईट तो कुछ और ही थी न
gooftgu.co.nr
शायद
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