जाट आरक्षण मुद्दा- खोया ही खोया - मिला क्या


कहते है की कुछ मुद्दे तो मुद्दे होते है. ऐसे मुद्दों से किसी को कुछ नहीं मिलता. ऐसा ही एक मुद्दा आजकल हिसार में चल रहा है. मुद्दा भी ऐसा की किसी को कुछ मिलना तो दूर इस मुद्दे को उठाने वाले कुछ गवा कर ही वापिस लौटे है. जैसा की पिछले लेख में गुफ्तगू की गई थी की नेताओ ने जाट आरक्षण मुद्दे पर सिर्फ नेतागिरी ही की है बिलकुल सही कहा है. पुरानी कहावत है की राजनीति में तो कुछ हासिल किया जा सकता है लेकिन नेतागिरी करोगे तो कुछ खोना ही पड़ेगा. अब देखो ना दो नेता हरियाणा में आये, जाट आरक्षण को हवा दी और दोनों ही नेताओ को अपनी गाडिया आग के हवाले करवानी पड़ी. हरियाणा के जाट नेता जहा चुपचाप आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे थे वही उत्तरप्रदेश से आये इन दोनों नेताओ ने ऐसा खेल खेला की खेल-खेल में आरक्षण के लिए बिफरे जाटों ने इन दोनों नेताओ द्वारा आरक्षण मुद्दे पर प्रदेश सरकार से समझौता करने से नाराज होकर इनकी गाडियों को आग लगा दी. भाग कर जान बचानी पड़ी वो अलग.
ऐसा नहीं है की हरियाणा में जाट आरक्षण की मांग अभी उठी थी लेकिन प्रदेश के जाट नेता इसको सरकारी स्तर पर काफी समय से उठाये हुए थे. लेकिन उत्तरप्रदेश से हरियाणा में आकर सतपाल चौधरी और यशपाल मालिक ने जिस तरह से मामले को एक दम से हवा दी उसका किसी को ज्ञान नहीं था. रही सही कसर उस समय पूरी हो गई जब पुलिस फायरिंग में छात्र सुनील की मृत्यु हो गई. मामला जंगल की आग की तरह भड़क गया और लोग हिंसा पर उतारू हो गए.
हिंसा के पश्चात इन दोनों नेताओ ने प्रदेश से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी और हिंसा समाप्त होने से पहले ही प्रदेश सरकार से हाथ मिला लिया. मजेदार बात तो यह रही की दोनों ही नेता पत्रकारवार्ता के दौरान केंद्र सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे थे जबकि लोगो का गुस्सा इस बात को लेकर था की जब यह दोनों नेता केंद्र सरकार से मांग कर रहे थे तो प्रदेश सरकार से कैसा समझौता कर वापिस लौट रहे है. जबकि केंद्र के किसी प्रतिनिधि से बात तक नहीं की गई.
इनलो पर कैसे बरसे संपत सिंह
अब इन नेता जी को ही देख लो. राजनीति तो करनी ही है. इसलिए जो मन में आया बोल दिया. आरक्षण मुद्दे पर कुछ और हाथ नहीं लगा तो विपक्षी पार्टी को ही आड़े हाथो ले लिया. पार्टी भी कौन सी. जिससे राजनीति करनी शुरू की और वो मुकाम हासिल किया जिसको पाने के लिए एक नेता अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है. मैंने ऊपर भी कहा था की राजनीति में तो कुछ हासिल किया जा सकता है. बस जरुरी है तो इसके लिए अपने आकाओं को खुश करना. यही कारण रहा की जिस इनलो में मौजूदा कांग्रेसी विधायक संपत सिंह ने अपनी आधी जिंदगी गुजार दी आज उन्हें वो ही पार्टी हिंसा में विश्वास करने वाली लगने लगी. जबकि पत्रकारवार्ता के समय वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जयप्रकाश ने ऐसी कोई बयानबाजी नहीं की. अब उनके इस ब्यान से सरकार में उनको क्या मिलेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इतना जरुर है की उम्मीद पर तो दुनिया कायम है.
उधमियों ने दी चेतावनी
हिंसात्मक कार्यवाही के दौरान अक्सर निजी संपत्ति को मोटे नुक्सान से गुजरना पड़ता है. हिसार में भी ऐसा ही कुछ हुआ. दंगइयो ने दो फैक्ट्री सहित अनेको पैट्रोल पम्पो को आग के हवाले कर दिया. हिसार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन का दावा है की आगजनी व् लूटपाट से जिले के उद्योगों को 50 करोड़ से अधिक का नुक्सान है जबकि उत्पादित माल की आवाजाही नहीं होने से सैकड़ो करोड़ से अधिक का नुक्सान है. एसोसिएशन का कहना है की उद्योग शांतिपूर्ण वातावरण में ही सुचारू रूप से कार्य कर सकते है. सरकार अगर ऐसे में उद्योगों को सुरक्षा नहीं दे सकती तो विवशतावश उन्हें प्रदेश से पलायन करना पड़ेगा.

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1 आपकी गुफ्तगू:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

समीक्षात्मक लेख बहुत बढ़िया रहा!

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