जाट आरक्षण को लेकर हिसार सहित पूरे प्रदेश में क्या कुछ घटित हुआ वो आप देख भी चुके होगे और सुना भी होगा. रही बात समझ में आने की तो इतना ही जान पाए होगे की आरक्षण के नाम पर एक बार फिर देश में हिंसा हुई और कुछ लोगो को काल का ग्रास बनना पड़ा. हिसार में क्या कुछ घटित हुआ शायद आप मेरी पिछली दो पोस्टो में पढ़ चुके होगे. इसके साथ-साथ इतना जरुर बताना चाहूँगा की पूरी हिंसात्मक कार्यवाही को जिन्होंने अंजाम दिया उनमे से अधिकतर वो थे जिन्हें देश का भविष्य कहा जाता है.
जी हां हम बात कर रहे है बच्चो और छात्रो की. पूरे घटनाक्रम के दौरान जितनी भागीदारी युवाओं की रही उतनी किसी की नहीं थी. हम यहाँ फोटो तो प्रदर्शित नहीं कर रहे है लेकिन इतना जरुर है की जो बच्चे स्कूल जाते तो पढने के लिए है लेकिन असामाजिक तत्वों द्वारा गुमराह होकर यही बच्चे किसी भी हद तक गुजर जाते है. जो फोटो गुफ्तगू को मिली उसमे ऐसा ही कुछ दिखाया गया है. एक स्कूल की वर्दी पहने और कंधो पर स्कूल का बैग उठाये जब ये बच्चे एक पुलिस चौकी को आग लगा रहे हो तो आप क्या कहेंगे.
यह फोटो और बच्चो के भविष्य को लेकर अन्य फोटो पर जल्द ही गुफ्तगू की जाएगी लेकिन वीरवार को एक पत्रकारवार्ता के दौरान जब अखिल भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह से ऐसे आंदोलनों में युवाओं की भागेदारी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा की ऐसे आन्दोलन युवाओं के दम पर ही किये जाते है. चलो जी यह तो इनका मानना हो सकता है लेकिन इतना जरुर है की हिसार जलता रहा और किसी ने इन युवाओं को रोकने की कोशिश नहीं की. रही बात नेताओ की तो वो या तो हिंसा भड़कने से पहले दिखे या फिर हिंसा के बाद सिर्फ पत्रकारवार्ता में.
अब बात नेताओ की
यहाँ लेख की हैड लाइन शुरू की गई थी हिसार जलने से और ख़त्म किये बिना ही नेताओ पर रोक दी गई. इसका मुख्य कारण था की हिसार जलता रहा और नेता सिर्फ बयानबाजी तक सिमित रहे. ना आन्दोलन करने वाले नेताओ को किसी से मतलब था तो ना किसी राजनितिक पार्टी के नेता को. उन्हें मतलब था तो सिर्फ बयानबाजी कर अपनी नेतागिरी चमकाने से. यह बात उस समय साबित हो गई जब एक तरफ हिसार धू-धू कर जल रहा था और कांग्रेसी विधायक संपत सिंह, विधायक रामनिवास घोड़ेला, हिसार जिलाध्यक्ष जयप्रकाश, कान्फेड अध्यक्ष बजरंग दास गर्ग सहित अनेको कांग्रेसी नेता रेस्टहॉउस में पत्रकारों से रु-ब-रु थे लेकिन कही भी मौके पर जाकर आंदोलनकारियो से बात तक करनी उन्होंने उचित नहीं समझी.स्कूल बंद और बच्चे स्कूल में
एक तरफ जहाँ ग्रामीण स्कूली बच्चे हिंसात्मक कार्यवाही को अंजाम दे रहे थे वही कई स्कूलों के बच्चो को स्कूल बंद होने के पश्चात भी स्कूल में बैठ कर दिन काटना पड़ा. उस समय इन नन्हे-मुन्ने बच्चो को देश के भविष्य की नहीं अपितु यह चिंता खाए जा रही थी की इस आन्दोलन का क्या भविष्य होगा. उल्लेखनीय है की नगर के कई नए स्कूलों को शहर से बाहर स्थापित किया गया है. आन्दोलन की चिंगारी जैसे ही भड़की उसी समय ग्रामीणों ने शहर में प्रवेश करने वाले सभी रास्तो को जाम कर दिया. ऐसे में जो स्कूली बच्चे जहा थे वही रह गए. स्कूल प्रशासन ने बच्चो के अभिभावकों से फोन पर संपर्क साध कर उन्हें तसल्ली दी.
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