ऐसा ही क्यों होता है


जितनी देरी से मैं यह गुफ्तगू कर रहा हूँ उतना ही मेरा यह प्रयास रहेगा की मेरी यह गुफ्तगू स्टिक बैठे की आपको समाचार का दूसरा पहलू समझ में आ सके. सभी भली-भांति जानते है की 5 जुलाई को भारत बंद का आयोजन किया गया था. क्यों किया गया था, किसने किया था यहाँ अब शायद यह बताने की जरुरत शेष नहीं रह जाती है. देश की विपक्षी पार्टियों द्वारा किये गए भारत बंद के दिन जो कुछ भी हुआ वो सभी ने बहुत ही इत्मिनाम से टीवी पर देखा और सुना होगा. लेकिन इतना जरुर है की ऐसा कुछ होने से पहले ही मेरे मोबाईल पर प्रतिदिन की तरह ही सुबह एसएमएस आने लगे थे. कुछ दोस्त हर रोज की तरह सुप्रभात की शुभकामनाये दे रहे थे तो कुछ बंद को लेकर एसएमएस कर रहे थे. उसमे से एक एसएमएस, जो मुझे बहुत पसंद भी आया और बहुत कुछ सोचने को मजबूर भी कर रहा था. वो एसएमएस कुछ इस तरह था.
वो तालो का लटकना,
वो रैली की बहार,
वो बस को आग लगाना,
वो मार-पीट का समाचार,
रेल को रोकना,
वो आम लोगो पर प्रहार,
मुबारक हो आपको भारत बंद का त्यौहार.
यह उस सुबह आये कुछ एसएमएस में से एक था जिसको पढने के बाद मैं यही सोच रहा था की वाकई आज के बंद से आम आदमी को कुछ नहीं मिलने वाला है. क्योंकि केंद्र सरकार पहले ही तेल प्रदार्थो की मूल्यवृद्धि वापिस लेने से मना कर गई थी. शाम होते-होते रही सही कसर सरकार के मंत्रियो ने यह कह कर पूरी कर दी थी की विपक्ष का यह भारत बंद किसी भी तरीके से औपचारिक नहीं है. फिर क्यों जगह-जगह बसों और ट्रेनों को रोका गया. क्यों बसों को आग लगाईं जाती है. सरकारी संपत्ति को नुक्सान सहित क्यों बंद की एवज मैं व्यापारियों को धमकाया जाता है.
5 जुलाई को विपक्ष द्वारा किया गया भारत बंद पूर्णतया सफल था. यह कहने में कोई संकोच नहीं लेकिन जिस तरह इस बंद को सफल किया गया या यह कहे की किस तरीके से इस बंद को सफल किया गया क्या इसकी पूर्णतया सच्चाई जनता के सामने लाई गई. तो जवाब मिलेगा नहीं, हमको क्या पता. मैं यह पूछना चाहता हूँ की कितने की व्यापारियों ने अपनी मर्जी से अपने प्रतिष्ठान बंद रखे. कौन कर्मचारी मूल्यवृद्धि के विरोध में उस दिन अपने कार्यालय नहीं गया. शायद ना के बराबर. फिर राजनैतिक दल किस बात पर अपनी पीठ थपथपा रहे है की भारत बंद सफल हुआ.
जनता परिणाम चाहती है, जबकि उस दिन के बंद से ऐसा कोई परिणाम नहीं निकला की जनता किसी भी दल की वाह-वाही करे. परिणाम देखने को मिला तो सिर्फ इतना की विपक्षी पार्टिया या तो अपने कार्यकर्ताओ में जोश भरने में सफल रही या फिर यह कहती हुई सुनी गई की उन्होंने जनता की आवाज को बुलंद किया है. फिर भले ही वो दिल्ली की विपक्षी भाजपा हो या राजस्थान की भाजपा. या फिर पंजाब में राज कर रही अकाली दल या हरियाणा की विपक्षी इनलो हो. सब ने मतलब साधा तो सिर्फ अपना. जबकि उत्तरप्रदेश में राज कर रही बसपा के कार्यकर्ताओ ने तो उस दिन जिस तरीके से तांडव किया, उससे सबकी आँखे फटी की फटी रह गई.
तो क्या यहाँ हम यह मान ले की आज जो राजनितिक दल धरना-प्रदर्शन, या फिर बंद का आयोजन करते है वो सिर्फ अपने लिए ही करते है, जनता के लिए नहीं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमको जागने की जरुरत है और अब नेताओ से यह पूछना होगा की ऐसा ही क्यों होता है.
पाबला जी का धन्यवाद
8 जुलाई को मेरी शादी की तीसरी वर्षगाठ थी. हर बार की तरह ही इस बार भी मेरे पारिवारिक सदस्यों और दोस्तों ने सुबह से मुझे बधाई देना आरम्भ कर दिया था. दोपहर तक कुछ और फोन आने के बाद मैं निश्चिन्त हो गया की अब और कोई नहीं रह गया है जो मुझे बधाई देगा. बहन की शादी के कारण कुछ व्यस्त हूँ इसलिए कंप्यूटर पर भी नहीं बैठ पा रहा हूँ. लगभग 5 बजे एक ब्लागर साथी का बधाई भरा फोन आया और उसने बताया की पाबला जी ने जब आपके लिए पोस्ट लिखी तो पता चला की आज आपकी शादी की सालगिरह है. मैंने भी बिना देरी किये कंप्यूटर चालू किया और पाबला जी की पोस्ट पढ़ी. पढ़ कर बड़ा सुकून मिला की पारिवारिक सदस्यों के साथ-साथ कुछ और साथी सदस्य भी मेरी जिंदगी में शामिल हो चुके थे. जब तक मैंने यह पोस्ट पढ़ी तब तक 5 लोगो ने मुझे बधाई दी. 5 साथी सदस्य देख मैंने भी सोचा की क्यों ना 5 जुलाई पर ही कुछ लिखा जाये. पाबला जी सहित सभी साथियों का मेरी जिंदगी से जुड़ने के लिए दिल से धन्यवाद.

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2 आपकी गुफ्तगू:

Udan Tashtari said...

वैवाहिक वर्षगाँठ पर बधाई व शुभकामनाएँ (देर से ही सही)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बधाई तो हमने वहाँ भी दी थी!
एक बार पुनः बधाई!

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