जी हाँ, कभी-कभी जिला प्रशासन ऐसी ही परिपाटी तैयार करता है की सिर्फ यही बोलना बाकी रह जाता है - लाईट, कैमरा, एक्शन. और अगर किसी दिन अनहोनी के रचयिता ने यह वाकया बोल दिया तो मानो विनाश संभव है. ऐसा ही कुछ शनिवार को हिसार में हुआ. बार-बार चेताने के बावजूद हिसार जिला प्रशासन की नींद जब इस बर्फ फैक्ट्री के खिलाफ कोई कार्यवाही करने के लिए नहीं खुली तो आखिरकार विनाश के रचयिता ने बोल ही दिया की लाईट, कैमरा, एक्शन. बस फिर क्या था. आसपास के लोग जहाँ इधर से उधर भाग रहे थे वही जिला प्रशासन के होंश फाख्ता थे. जबकि बर्फ फैक्ट्री के साथ लगते तीन स्कूलों में पढने वाले सभी बच्चो का रो-रो कर बुरा हाल था. कहते है मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है लेकिन वो किस्मत पर निर्भर होता है.शायद यह इन नन्हे-मुन्ने बच्चो की किस्मत ही थी की जहाँ वो तो सभी बच ही गए साथ ही साथ उनकी किस्मत ने किसी बड़ी अनहोनी को भी टाल दिया.
लेकिन यहाँ जो समाचार का पहलू है वो यह है की ऐसा होता ही क्यों है की कुछ होने के पश्चात ही शासन और प्रशासन की आँखे खुलती है. आज बर्फ व् कैमिकल फैक्ट्रिया हर जगह चलती है. लेकिन प्रशासन इनके लिए एक निश्चित जगह निर्धारित करता है. अक्सर देखने में आता है की या तो ये फैक्ट्रिया प्रशासन की आँखों में धूल झोंक कर बेधड़क रिहायशी इलाको में चलती है या फिर किसी अनहोनी की इंतजार में शासन व् प्रशासन इनके प्रति अपनी आँखे बंद रखता है. जैसा की इस बर्फ फैक्ट्री के प्रति रहा. यह कोई पहला मौका नहीं था जब चारो और से चीखने-चिल्लाने की आवाजे आ रही थी. कोई अपनी जान बचाने को भाग रहा था तो कोई बच्चो को बचाने के प्रति सजग था. इससे पहले भी इसी बर्फ फैक्ट्री में दो बार ऐसे हादसे हो चुके है. जबकि पूरे नगर की बात करना यहाँ बेमानी होगा. उस समय भी इस बर्फ फैक्ट्री को हटाने की मांग जोर पकड़ी थी. लेकिन ना तो स्कूल प्रशासन ने फैक्ट्री हटवाने में हश्ताक्षेप किया और ना ही जिला प्रशासन ने कोई प्रयास किया.
तो क्या हम यह मान ले की मुद्दत से चल रही इस बर्फ फैक्ट्री को चलाने के लिए अकेले इस फैक्ट्री के स्वामी दोषी है. तो मैं यही कहूँगा की नहीं, क्योंकि आज से पहले हिसार में जीतने भी हादसे हुए उनके प्रति प्रशासन एक बार तो गंभीर होता है लेकिन बाद में स्थिति वही ठाक के तीन पात वाली होती है. कोई अपनी चलती में मामले को रफादफा करवा लेता है तो किसी के प्रति अधिकारी की नरमी बाद में भयानक रूप ले लेती है. इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है. ऊपर से लेकर नीचे तक चलती के कारण शनिवार को सैकड़ो बच्चो की जिन्दगी दांव पर लगी थी. जिसमे स्कूल प्रशासन से लेकर व्यापारी नेता तक शामिल है. यही कारण था की घटना के पश्चात स्थानीय निवासियों का गुस्सा फैक्ट्री मालिक के प्रति फूट पड़ा, और उन्हें तोड़-फोड़ करनी पड़ी. लेकिन प्रशासन द्वारा फैक्ट्री को सील करने के आदेशो के पश्चात मामला कुछ ठंडा पड़ा है. उधर फैक्ट्री स्वामी ने भी इसे स्थानांतरित करने पर अपनी सहमति जाहिर की है.
अगर मैं यह कहूँ की ऐसा सिर्फ हिसार में होता है तो ठीक नहीं होगा. आज पूरे देश का यही हाल है. कहीं कुछ अनजाने में हो रहा है तो कहीं जानबूझ कर. कुल मिला कर सब कुछ शासन और प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है. फर्क सिर्फ इतना है की जहाँ आज प्रशासनिक अधिकारी जाने में संकोच करते है उन्हें बाद में वही जनता के गुस्से का सबब बनने के लिए जाना पड़ता है. कुछ भी हो लेकिन इतना जरुर है की भविष्य में ऐसी किसी भी घटना को रोकने के लिए भले ही जिला प्रशासन कोई ठोस कदम ना उठाता हो लेकिन जनता को जागरूक होते हुए इस तरह की फैक्ट्रियो सहित हलवाई की दुकानों के प्रति शासन और प्रशासन को चेताना होगा. जिससे फिर कभी होने वाली इस तरह की घटना को रोका जा सके. और यह कहने का मौका ना मिले की लाईट, कैमरा, एक्शन. Related Articles :
2 आपकी गुफ्तगू:
Dear Very Good Story , u have covered
सभी जगह का यही हाल है!
Post a Comment