काश ज़मीं से बंदूके पैदा हो गई होती


मात्र तीन साल का एक छोटा सा बालक अपने पिता के साथ खेतो में सिर्फ इसलिए जाता था की देश गुलाम था. जब उसने पिता को जमीन में बीज बोते देखा तो उसने अपने पिता से कहा की बापू आप यह क्या कर रहे हो. इस पर पिता ने कहा की बेटा जमीन में बीज बो रहा हूँ. कुछ समय बाद यहाँ फसल पैदा होगी जिससे हमको अनाज मिलेगा. वो छोटा सा बालक चुपचाप सुनता रहा और कुछ समय बाद वो खेत के एक कोने में गया और अपने छोटे-छोटे हाथो से जमीन खोदने लगा. बेटे को अकेले कुछ करता देख जब पिता वहा गया तो देखा की उनका तीन साल का बेटा जमीन में खड्डे खोद कर पेड़ की पत्तिया दबा रहा है. लालसा लिए पिता ने पूछा की बेटा क्या कर रहे हो तो बेटे ने कहा की बापू जमीन में पत्तिया दबा रहा हूँ कुछ समय बाद यहाँ बन्दूको का पेड़ लगेगा. उन बन्दूको से मैं अंग्रेजो को मार भगाऊँगा.
आप शायद अब तक समझ ही गए होंगे की कौन था वो भारत की आजादी की दीवाना जिसका मैं यहाँ जिक्र कर रहा हूँ. अगर आप हरियाणा के रहने वाले है और सरकारी कार्यालय में कार्यरत्त है तो शायद अभी तक नहीं याद आया होगा क्योंकि हरियाणा सरकार उस दीवाने को याद करना भूल गई. यही कारण रहा की जहा देश में आजादी के हर उस परवाने को याद किया जाता है जिसने देश को आजाद करवाने में अपना योगदान दिया लेकिन 23 मार्च को जो देश भक्त अपने देश को आजाद करवाने के लिए फांसी पर झूल गया उसको हरियाणा सरकार कैसे भूल गई. सरकारी छुट्टी करना तो दूर उसकी याद में कोई सरकारी कार्यक्रम तक आयोजित नहीं किया गया. क्या हम यह मान ले की ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वो किसी राजनितिक पार्टी विशेष से सम्बंधित नहीं थे.
जिस माता के सपूत ने अपनी जंग के लिए शादी तक नहीं की, जिसने अपना सारा जीवन देश को आजाद करवाने में लगा दिया. यहाँ तक की एस्म्बली में हथगोला फेंकने के बाद जो वीर सपूत मौके से भाग सकता था. लेकिन सिर्फ इसलिए नहीं भागा की अगर वो भाग गया तो देश के नौजवान युवको में हिम्मत नाम की चीज ख़त्म हो जाएगी. इसलिए उन्होंने गिरफ्तार होना ही मुनासिब समझा और हँसी-हँसी फांसी पर झूल गए. जी हां हम बात कर रहे है शहीद भगत सिंह की. जिन्होंने अपने दो साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ मिल कर इस घटना को अंजाम दिया और अंग्रेज पुलिस के हाथो गिरफ्तार होकर 23 मार्च को देश की आजादी के लिए शहीद हो गए. उनकी शहादत पर मैं जाने माने कवि लाजपत राय विकत की कुछ पंक्तिया प्रस्तुत कर रहा हूँ. शायद आपको पसंद आएगी.

यह विजय गाथा है आक्रोश के अंगारे की,
पैदा तूफ़ान के प्रचंड के उस धारे की,
प्रचंड धारे की इन्कलाब नारे की,
सिंहनी के सपूत देश के दुलारे की,
पाया जो कुछ भी था वो पाया सिर्फ खोने को,
हुआ था पैदा वो सिर्फ शैदा होने को,
शमा जलाई थी खुद उसी में जल जाने को,
ऐसे परवाने को आजादी के दीवाने को,
क्या डराती कोई गोली क्या तोप का गोला,
गया था जिसने माँ मेरा रंग दे बसंती चोला.

शहीद भगत सिंह की शहादत को शत-शत नमन !

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2 आपकी गुफ्तगू:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अमरशहीद भगतसिंह को नमन!

123deal said...

ees new ko padhkr koi bhi keh dega
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