होली, दीवाली वो भारतीय त्यौहार है जो त्यौहार के साथ-साथ भारत की परम्परा और संस्कृति के अनेको रंग अपने अन्दर समेटे हुए है. यही कारण है की स्कूल के समय से ही बच्चो को इन त्योहारों और इनसे जुडी भावनाओ के बारे में बताया जाता है. आज से कुछ समय पहले तक इन त्योहारों को कैसे मनाया जाता था यहाँ यह बताने की जरुरत नहीं है लेकिन यह सोचने की आवश्यकता जरुर है की क्या आज ये त्यौहार अपने सही रूप में मनाये जा रहे है या नहीं. तो जवाब में सिर हिलेगा की नहीं.
अभी कुछ दिनों पहले तक खबर छप रही थी की देश में बाघों की कमी है और बहुत जल्द भारत में बचे 1411 बाघ ख़त्म हो जायेंगे. समीर जी ने अपनी पोस्ट में लिखा की बाघ की नहीं देश की सोचो. अगर देश में जंगल ही नहीं बचेंगे तो बाघ का क्या करोगे. सच लिखा है. अब देखो ना स्कूल के दिनों में पढाया जाता था की होली
रंगों का त्यौहार है. पुराने गानों में भी कभी चोली गीली करने तो कभी गाल रंगने की बात होती थी. मनाई जाती होगी ऐसे होली, लेकिन आज यह गुजरे ज़माने की बात हो चुकी है.
आज होली की शान कही जाने वाली लडकिया और भाभी तो दूर लड़के तक होली खेलने से कतराने लगे है. पानी और रंग तो बहुत दूर की बात है गुलाल भी ऐसे आने लगे है की साली भी जीजा से गुलाल नहीं लगवाती. यही कारण है की आज युवा पीढ़ी भारतीय त्योहारों की अनदेखी करने लगी है. आज की युवा पीढ़ी जहा अपने में मस्त है वही वो पाश्चात्य संस्कृति के त्योहारों में ज्यादा रूचि दिखाने लगी है. फिर भले ही वो क्रिसमस हो या वैलेंटाइन डे. उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.
लडको का भी कुछ ऐसा ही हाल है. कुछ मनचले लड़के होली, जन्माष्टमी जैसे त्योहारों का इंतजार करते है तो वही कुछ लड़के इन त्योहारों से स्वयं तो दूर रहते ही है अपने परिवार के सदस्यों को भी किसी अनहोनी के अंदेशे के मद्देनजर दूर ही रखते है. एक समय था जब होली के त्यौहार को भाईचारे और सदभावना का त्यौहार मानते हुए गले मिला जाता था और प्यार से रंग-गुलाल लगाया जाता था. लेकिन आज काहे का भाईचारा और काहे की सदभावना.
सभी त्योहारों के वो सभी सिद्धांत आज बाघ की तरह लुप्त होते जा रहे है जो किसी ज़माने में पढाये और सिखाये जाते थे. आज भारतीय त्योहारों में अगर कुछ बचा है तो वो है अपना मतलब. आज कोई त्यौहार को त्यौहार की तरह नहीं मनाता. बड़े है तो उनका उद्देश्य सिर्फ पारिवारिक परिवेश को जारी रखना होता है और अगर युवा है मौज-मस्ती के साथ-साथ त्यौहार के दिनों में अपनी भड़ास निकालना. चाहे वो अपराधिक गतिविधि ही क्यों ना हो. त्यौहार पर सब जायज लगता है.
अगर दीवाली है तो गलत तरीके पटाके चला कर अपनी खुनस निकाली जाती है और जन्माष्टमी है तो मनचले लड़के बहू-बेटियों से बदतमीजी कर मौज-मस्ती का आन्नद उठाते है. जबकि होली पर जहा लडकियों से छेड़खानी आज आम बात हो गई है वही अपराधिक घटनाओ का चलन भी आज हर होली बढ़ता जा रहा है. ऐसे में आज प्रत्येक त्योहारों का रंग दिन-प्रतिदिन फीका होता जा रहा है. वो दिन दूर नहीं जब बच्चो को यह बताना पड़ेगा की भारत में यह त्यौहार हमारे समय में ऐसे मनाया जाता था.
आज कोई बाघों की चिंता कर रहा है तो कोई होली पर पानी बचाओ अभियान छेड़े हुए है. जबकि दीवाली पर प्रदुषण ना फैले इसलिए भी अनेको अभियान चलाये जाते है. मैं ऐसे अभियान चलाने वालो से यह पूछना चाहता हूँ की अगर ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में इन अभियानों की क्या एहमियत रह जाएगी. इसलिए आज गंभीरता से यह सोचने की जरुरत है की कैसे भारतीय त्यौहार, भारतीय मर्यादा और भारतीय संस्कृति को बचाया जाये. जिससे देश में मनाये जाने वाले त्यौहार भारतीय लगने लगे.
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रंगों का त्यौहार है. पुराने गानों में भी कभी चोली गीली करने तो कभी गाल रंगने की बात होती थी. मनाई जाती होगी ऐसे होली, लेकिन आज यह गुजरे ज़माने की बात हो चुकी है.
आज होली की शान कही जाने वाली लडकिया और भाभी तो दूर लड़के तक होली खेलने से कतराने लगे है. पानी और रंग तो बहुत दूर की बात है गुलाल भी ऐसे आने लगे है की साली भी जीजा से गुलाल नहीं लगवाती. यही कारण है की आज युवा पीढ़ी भारतीय त्योहारों की अनदेखी करने लगी है. आज की युवा पीढ़ी जहा अपने में मस्त है वही वो पाश्चात्य संस्कृति के त्योहारों में ज्यादा रूचि दिखाने लगी है. फिर भले ही वो क्रिसमस हो या वैलेंटाइन डे. उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.
लडको का भी कुछ ऐसा ही हाल है. कुछ मनचले लड़के होली, जन्माष्टमी जैसे त्योहारों का इंतजार करते है तो वही कुछ लड़के इन त्योहारों से स्वयं तो दूर रहते ही है अपने परिवार के सदस्यों को भी किसी अनहोनी के अंदेशे के मद्देनजर दूर ही रखते है. एक समय था जब होली के त्यौहार को भाईचारे और सदभावना का त्यौहार मानते हुए गले मिला जाता था और प्यार से रंग-गुलाल लगाया जाता था. लेकिन आज काहे का भाईचारा और काहे की सदभावना.
सभी त्योहारों के वो सभी सिद्धांत आज बाघ की तरह लुप्त होते जा रहे है जो किसी ज़माने में पढाये और सिखाये जाते थे. आज भारतीय त्योहारों में अगर कुछ बचा है तो वो है अपना मतलब. आज कोई त्यौहार को त्यौहार की तरह नहीं मनाता. बड़े है तो उनका उद्देश्य सिर्फ पारिवारिक परिवेश को जारी रखना होता है और अगर युवा है मौज-मस्ती के साथ-साथ त्यौहार के दिनों में अपनी भड़ास निकालना. चाहे वो अपराधिक गतिविधि ही क्यों ना हो. त्यौहार पर सब जायज लगता है.
अगर दीवाली है तो गलत तरीके पटाके चला कर अपनी खुनस निकाली जाती है और जन्माष्टमी है तो मनचले लड़के बहू-बेटियों से बदतमीजी कर मौज-मस्ती का आन्नद उठाते है. जबकि होली पर जहा लडकियों से छेड़खानी आज आम बात हो गई है वही अपराधिक घटनाओ का चलन भी आज हर होली बढ़ता जा रहा है. ऐसे में आज प्रत्येक त्योहारों का रंग दिन-प्रतिदिन फीका होता जा रहा है. वो दिन दूर नहीं जब बच्चो को यह बताना पड़ेगा की भारत में यह त्यौहार हमारे समय में ऐसे मनाया जाता था.
आज कोई बाघों की चिंता कर रहा है तो कोई होली पर पानी बचाओ अभियान छेड़े हुए है. जबकि दीवाली पर प्रदुषण ना फैले इसलिए भी अनेको अभियान चलाये जाते है. मैं ऐसे अभियान चलाने वालो से यह पूछना चाहता हूँ की अगर ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में इन अभियानों की क्या एहमियत रह जाएगी. इसलिए आज गंभीरता से यह सोचने की जरुरत है की कैसे भारतीय त्यौहार, भारतीय मर्यादा और भारतीय संस्कृति को बचाया जाये. जिससे देश में मनाये जाने वाले त्यौहार भारतीय लगने लगे.
2 आपकी गुफ्तगू:
आ ही गया है वह समय, जब भारतीय त्यौहारों को बचाने की मुहिम चलाना होगी. सार्थक आलेख.
ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
गले लगा लो यार, चलो हम होली खेलें.
ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
गले लगा लो यार, चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
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