टिकट के लिए नेताओ की कब्बडी शुरू


हरियाणा में अभी तक विधानसभा चुनावो की कोई औपचारिक घोषणा तो नही हुई है लेकिन लोकसभा चुनावो में कसरत कर चुके प्रदेश के प्रत्येक नेता अब एक बार फ़िर से लाइन में है। ये वो नेता है जिन्होंने या तो अपने नेता को जिताने के लिए कसरत की थी या फिर लोकसभा चुनाव की टिकट पाने के लिए। अब आप सोच रहे होंगे की ये लाइन में क्यो है तो सीधी सी बात है की कसरत की थी तो अब इनको भी कुछ न कुछ चाहिए। इसलिए जिसे देखो वो विधानसभा चुनाव की टिकट मांग रहा है। कोई भाजपा से तो कोई कांग्रेस से। यहाँ तक की हजंका व् इनलो में भी टिकट मांगने वालो की लम्बी लाइन लगी है। फिलहाल हरियाणा में कांग्रेस की सरकार है तो लाजमी है की सबसे लम्बी लाइन उसके नेताओ की ही होगी टिकट मांगने वालो में। अगर यहाँ हिसार की बात की जाए तो यहाँ के सभी 9 हलको में जितने कांग्रेस कार्यकर्ता है उन सभी के नाम टिकट मांगने वालो की सूची में शामिल है। भले ही वो ब्लाक प्रधान हो या फ़िर चाहे कार्यकर्ता मात्र हो। भाजपा, इनलो व् हजंका जैसी पार्टिया भी इसी उधेड़बुन में है की किस सीट से किसको टिकट दी जाए। मजेदार बात तो यह है की कोई नेता टिकट मेरी है बोल कर जनसंपर्क अभियान शुरू किए हुए है तो कोई जनसभा कर कह रहा है की बस अब आपके आर्शीवाद की जरुरत है टिकट तो मेरी पक्की है। कोई भी पार्टी टिकट किसी को भी दे वो उसके ऊपर निर्भर है लेकिन यहाँ मेरी इस गुफ्तगू का पहलु यह है की आख़िर नेताओ ने टिकट के लिए यह कब्बडी क्यो शुरू कर रखी है। इससे वो जनता को क्या संदेश देना चाहते है और क्या दिखाना चाहते है। अगर ये नेता ऐसा कर यह संदेश देना चाहते है की उनको टिकट मिलने से उनकी पार्टी जीत गई तो हार के बाद वो क्या करेंगे। इसके अतिरिक्त अगर कोई नेता अन्य नेता को पछाड़ टिकट ले भी आए तो क्या वो यह दिखाएगा की उसकी पार्टी में कितनी फूट है।
जितने नेता उतनी पार्टिया
दिल्ली पास होने के कारण हरियाणा का राजनितिक माहौल कोई आज से ख़राब नही है। जिसे देखो वो दिल्ली दरबार में हाजरी लगाने की बात करता है। चाहे वो कांग्रेस नेता हो या भाजपा नेता। इसीलिए कांग्रेस प्रभारी पृथ्वी राज चौहान ने हाल ही में कांग्रेस नेताओ को आगाह किया था की टिकट की चाह रखने वाले नेता दिल्ली न जाए। क्योंकि अबकी बार टिकट दिल्ली दरबार से नही अपितु जिला स्तर पर दी जाएँगी। साथ ही साथ हरियाणा में कांग्रेस का हाल तो उससे भी बुरा है। इसका मुख्य कारण है की यहाँ कांग्रेसी नेता नही नेता कांग्रेस है। कहने का अर्थ यह है की हरियाणा में यहाँ जितने नेता उतनी कांग्रेस है। यही कारण है की यहाँ टिकट मांगने वालो की लाइन हर बार अन्य प्रदेशो से अधिक होती जा रही है। यहाँ कोई मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा का करीबी दोस्त टिकट मांग रहा है तो कही प्रदेश के वित्तमंत्री वीरेंद्र सिंह का नजदीकी। केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा का रिश्तेदारी में भाई भी कांग्रेस की टिकट मांगने वालो की लाइन में है तो नलवा विधानसभा सीट से सांसद नवीन जिंदल अपने मित्र को टिकट दिलवाने के लिए दिन-रात एक किए हुए है।
ये तो राजनीति में बने रहने का मूल मन्त्र है
ऐसा नही है की अभी तक ये नेता सिर्फ़ टिकट पाने के लिए लाइन में ही लगे है। कुछ नेताओ ने तो टिकट पाने और चुनाव में जीत हासिल करने के लिए राजनीति के मूल मन्त्र को अपनाना भी शुरू कर दिया है। भले ही प्रदेश में चुनाव की घोषणा नही हुई हो उनको कोई फर्क नही पड़ता। लेकिन राजनीति में बने रहना है तो उसके मूल मन्त्र को तो आजमाना ही होगा। कुछ ऐसा ही सोच कर ये नेता दिन रात दौड़ धुप किए हुए है। जो जैसा नेता वैसे ही मन्त्र अपना रहा है। कोई जनसंपर्क अभियान के तहत दौरे कर रहा है तो कोई सभा कर जनता से आर्शीवाद मांग रहा है। अगर किसी ऐसे नेता की बात की जाए जो अपनी पार्टी में या फ़िर पैसे का दम रखता है तो वो बड़ी जनसभा कर जनता को अपने नेता की दुहाई दे रहा है की उसके नेता आपके लिए ये किया वो किया। अगर बात इससे ऊपर कि की जाए तो बात आती है पत्रकारों की। हिसार में कई ऐसे नेता है जो चाहे किसी पार्टी से जुडा हो या निर्दलीय चुनाव लड़ने की इच्छा रखता हो सभी को पत्रकारों का समर्थन तो चाहिए ही। कुछ ऐसा ही सोच कर आज कल ये नेता पत्रकारों को भोज देने में जुटे है। साथ ही इनको पता है की यह भी आज कल राजनीति का मूल मन्त्र है।

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1 आपकी गुफ्तगू:

kumarsudhir said...

यही तो राजनीतिक दांवपेंच है। जनता सूखे की मार झेल रही है और ऐसा न हो कि इसकी चपेट में कांग्रेसनीत सरकार आ जाये। लोगों के आक्रोश की चपेट में वर्तमान सरकार न आ जाये इसलिए हुड्डा ने सात महीने पहले ही विधानसभा चुनाव कराने के लिए विधानसभा भंग कर दी। क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि जो पैसा चुनाव पर खर्च होने थे उसे सूखे से प्रभावित क्षेत्रों और लोगों पर खर्च किया। हुड्डा सरकार वास्तव में जवाबदेही से बचने के लिए ऐसा कर रही है। दरअसल वह चुनाव कराकर जनता का ध्यान मुख्य म़ुद्दों से हटाना चाह रही है।

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