पुलिस सही... या अभिभावक गलत ?


हरियाणा: किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था की एक सुबह जब वो सो कर उठेंगे तो उन्हें एक ऐसा ह्रदय विदारक समाचार सुनने को मिलेगा की ना सिर्फ उनकी आँखे फटी की फटी रह जाएगी बल्कि हरियाणा सरकार की नींद भी खुल जाएगी. फिर भले ही वो अम्बाला में हुए सड़क हादसे में मारे गए स्कूली बच्चों का मामला हो या हिसार में एक ऑटो के पलटने से स्कूली बच्चे की मौत की घटना हो. इसके साथ ही कभी बड़े वाहन की चपेट में आने से किसी साइकिल सवार छात्र-छात्रा की मौत सुनने में आती है तो कभी तेज रफ़्तार से दुपहिया वाहन चलाने वाले स्कूली बच्चे की सड़क दुर्घटना का समाचार.
जबकि हाल ही में अम्बाला और हिसार में हुए सड़क हादसों में हुई स्कूली बच्चों की मौत ने सभी को हिला कर रख दिया. दोनों ही मामले इतने दर्दनाक थे की शासन के साथ-साथ प्रशासन ने भी सख्ती दिखाई और योजनाबद्ध तरीके से एक के बाद एक कई नियम बना दिए. प्रशासन का डंडा कभी ऑटो चालको पर पड़ा तो कभी वह स्कूली वाहन पर भारी पड़ता दिखाई दिया. स्कूल संचालक भी प्रशासन के इस डंडे से नहीं बच पाए. स्कूली वाहनों को दुरुस्त करने के लिए जहाँ प्रशासन ने कमर कस ली वहीँ नए साल का आगाज होते ही प्रशासन ने सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाने का भी मन बनाया.
एक दौर शुरू हुआ प्रशासन के आदेशों का. दुर्घटनाओं से निपटने के लिए ऑटो में 6 सवारियों से अधिक नहीं बैठाने को लेकर ऑटो चालकों और प्रशासन के बीच लम्बी लड़ाई चली तो कभी अधिकारियों ने फूल देकर स्कूली ऑटो को समझाने का प्रयास किया. कभी स्कूलों से स्वयं का वाहन खरीदने का आह्वान किया गया तो कभी भेड़ बकरियों की तरह बच्चों को ठूसे स्कूली वैन के चालान किये गए. यहाँ तक की प्रशासन ने स्कूल संचालको की बैठके आयोजित कर निर्देश दिए गए की स्कूली बच्चों को लाने-ले जाने के लिए एक योजना तैयार करे जिससे बच्चों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके.
प्रदेश भर के हर जिले में स्कूली बच्चों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं से निपटने के लिए प्रशासन द्वारा देरी से उठाया गया यह कदम नए साल के आगाज के लिए तो अच्छा है लेकिन इसके परिणाम आने अभी बाकी है. क्योंकि आज भी प्रतिदिन किसी न किसी स्कूली वाहन का चालान किया जा रहा है तो कभी ऑटो स्कूली बच्चों से खचाखच भरे दिखाई देते है. बावजूद इसके आज पुलिस प्रशासन द्वारा की जा रही यह कार्यवाही तो सभी को रास आ रही है लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही की जब पुलिस इतना कर रही है तो आखिर अभिभावक अभी तक क्या कर रहे है.
स्कूल भेजने की आपाधापी में जहाँ आज भी अभिभावक अपने लाडलों को खचाखच भरे ऑटो से स्कूल भेजने में नहीं हिचकिचा रहे वहीँ भेड़ बकरियों की तरह ठूस-ठूस कर भरी गई स्कूल वैन में अपने बच्चों को भेजने से उनको कोई परहेज नहीं है. इसके साथ ही किसी दुर्घटना की परवाह किये बिना कभी स्कूल तो कभी ट्युसन के नाम पर कम उम्र के बच्चों को दुपहिया वाहन थमा दिया जाता है. अभिभावकों के इस कदम से और पुलिस प्रशासन की इस कार्यवाही से यह गुफ्तगू अब आम हो गई है की आज जो हो रहा है उसमे पुलिस सही है या अभिभावक गलत है ? सोचना आपको है और करना भी आपको.

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2 आपकी गुफ्तगू:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उनको शत शत नमन!

Vikas Goel said...

एक तरफ जहाँ पुलिस ऑटो चालकों की यूनियन के आगे बेबस होगी ( शायद) ओर दुसरी तरफ अभिभावक अधिक पैसे नहीं देने में समर्थ हैं तो यह दोनों पुलिस ओर अभिभावक की मजबूरी ही हैं , एक तरफ अभिभावक बच्चे को घर से दूर किसी बेहतर विद्यालय में भेजना चाहता हैं, दूसरी तरफ पुलिस संसाधन नहीं होने के कारन सिर्फ चलन ही काट सकती हैं न तो वो गाडिया रोक सकती हैं और न ही बच्चों को स्कूल या घर के रस्ते में रोक कर गाडी जब्त कर सकती हैं, सरकार को चाहिए की हर स्कूल का अच्छे सुविधा देने के लिए दबाव बनाये ओर सहायता दें आखिर आप कृषि में भी तो सब्सिडी देते हैं पर वो तो वोट बैंक है न,रोडवेज की गाड़ियों को इस्तेमाल किया जा सकता हैं पर पैसे कौन देगा?? सबसे अधिक आशचर्य तो कल टीवी पर सर्वशिक्षा अभियान का एड देख कर हुई जहाँ कोई ऊंट रेड पर बच्चों को ले जा रहा है लो कोई ट्रेक्टर में भर कर - वाह रे सरकार स्कूल वाहन का चलन काटते रह तो यह ही रास्ता बचेगा

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