हमने मनाई राजनीतिक दीवाली


गुफ्तगू की ओर से सभी पाठकों, नियमित पाठकों, समर्थकों व् मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं. 


भले ही हिसार उपचुनाव संपन्न हो चुका हो. चुनाव परिणाम भी आ चुका है. मुद्दा यह नहीं की इस चुनाव में कौन जीता कौन हारा. लेकिन इतना जरुर है की सब कुछ होने के पश्चात भी जनता है की हिसार उपचुनाव को भुला नहीं पा रही है. शायद यही कारण रहा की चुनाव के पश्चात वोटों की गिनती और उसके बाद दिवाली के कारण आज बहुत दिनों बाद आपसे गुफ्तगू कर रहा हूँ. क्या करूँ मैं भी आपकी ही तरह दीपों का पर्व दिवाली मनाने में व्यस्त था, तो साथ ही साथ इस बात पर भी मेरा विशेष ध्यान था की अभी कुछ दिनों पहले तक उपचुनाव को लेकर नेताओं द्वारा जो वादे जनता से किये जा रहे थे वो आज कहा काफूर हो गए. 
अब देखो ना आप ख़ुशी-ख़ुशी दीवाली मना रहे थे और मैं और मेरे शहर की जनता राजनीतिक दिवाली मनाने पर मजबूर थे. हमारा राजनीतिक दीवाली मनाने का मुख्य कारण था हिसार लोकसभा उपचुनाव के पश्चात हिसार में एकाएक हुई अपराधिक वारदाते. दिवाली के अवसर पर भी रह-रह कर वो हसीन पल याद आ रहे थे जो हमने चुनाव के दिनों में बिताये थे. चुनाव के दिनों में ना सिर्फ जनता को पूरा दिन बिजली मिली वहीँ कोई अपराधिक घटना होना तो दूर की बात है अपराधी भी ढूंढे से भी नहीं मिल रहे थे. मानो उन्हें या तो कोई काम मिल गया है या फिर जनता के वोट हथियाने की खातिर कोई और काम दे दिया गया है.
एक दिन वो थे जब हिसार के लिए ऐसा कोई दिन नहीं जाता था जब अपराधी कोई भी दिन ऐसा छोड़ते हो जिस दिन वो अपने मंसूबो को अंजाम नहीं देते हो. महिलाओं के लिए चैन स्नेचिंग जहाँ सिरदर्द बनी हुई थी वहीँ व्यापारियों के लिए आये दिन प्रतिष्ठानों के ताले टूटना जी का जंजाल बना हुआ था. हत्या, हत्या प्रयास, चोरी व् धमकी जहाँ आम बात हो गई थी वहीँ बिजली की आँख मिचौली से जनता परेशान थी. नेताओं द्वारा चुनाव के दिनों में दिखाए गए हसीन सपने लिए जैसे ही जनता दिवाली की खुमारी में अभी खोई ही थी की अपराधियों ने हिसार को फिर से अपने आगोश में ले लिया. 
चैन स्नेचिंग का मामला प्रकाश में आया तो एक युवक की हत्या कर दी गई. पुलिस अभी इस मामले को सुलझा पाती की दीवाली से एक दिन पूर्व एक जूते के शोरुम पर गोली चला बदमाश फिरौती की मांग कर गए. अभी दिवाली गई ही थी की शनिवार को आदमपुर के समीप एक युवक का पहले गला रेता फिर उस पर गोलियां दाग कर हत्या कर दी गई. चुनाव के दिनों में हर चौराहे पर दिखने वाली पुलिस भी अपराधियों का कोई सुराग नहीं लगा पा रही है. हद तो उस समय हो गई जब इतना सब कुछ होने के पश्चात भी चुनाव के दिनों में गली-गली दिखने वाला कोई नेता जनता के बीच नजर नहीं आया. कहीं-कहीं नजर आये तो सिर्फ उनके प्रतिनिधि.


धर्म का रिश्ता


- सुमन वर्मा -
मेरे जीवन का वह खौफनाक दिन जिसे मैं भुलाए नहीं भुलती। क्योंकि उस दिन शायद मैंने अपने पापा को खो दिया होता। रात की डयूटी देकर सुबह घर आते हुए पापा का एक्सीडेंट हो गया। दिमाग में अधिक चोट लगने के कारण डॉक्टर ने कुछ ऐसे टेस्ट करवाने को कहा जो शहर की बड़ी लैब में ही हो सकते थे। पापा बेहोशी की हालत में थे। मेरे साथ मेरा भाई और मम्मी थे। लेकिन पापा को उठा पाने में हम तीनों असमर्थ थे। हम अपने आपको बहुत अकेला महसूस कर रहे थे। ऐसी स्थिति में मैंने अपने धर्मभाई अशोक को फोन किया। फोन करते ही वह अस्पताल पहुंच गया और उस वक्त से लेकर पापा के बिल्कुल ठीक होने तक उसने जिस प्रकार अपना फर्ज निभाया। उसे देख मम्मी यह कहे बिना न रह सकीं कि मेरे बुरे वक्त में मेरा धर्म का बेटा बहुत काम आया। खबर मिलने के पश्चात भी पापा के भाई और बहन कोई भी पापा से मिलने नहीं आए। जबकि मौहल्लेवासी और रिश्तेदार सभी मिलने आए। यह सब देख मैंने महसूस किया कि उन खून के रिश्तों से तो यह धर्म के रिश्ते लाख दर्जें अच्छे हैं।


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तड़का मार के

* महिलायें गायब
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.

* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...

* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.

* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.

* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
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