- सुमन वर्मा -
मेरे जीवन का वह खौफनाक दिन जिसे मैं भुलाए नहीं भुलती। क्योंकि उस दिन शायद मैंने अपने पापा को खो दिया होता। रात की डयूटी देकर सुबह घर आते हुए पापा का एक्सीडेंट हो गया। दिमाग में अधिक चोट लगने के कारण डॉक्टर ने कुछ ऐसे टेस्ट करवाने को कहा जो शहर की बड़ी लैब में ही हो सकते थे। पापा बेहोशी की हालत में थे। मेरे साथ मेरा भाई और मम्मी थे। लेकिन पापा को उठा पाने में हम तीनों असमर्थ थे। हम अपने आपको बहुत अकेला महसूस कर रहे थे। ऐसी स्थिति में मैंने अपने धर्मभाई अशोक को फोन किया। फोन करते ही वह अस्पताल पहुंच गया और उस वक्त से लेकर पापा के बिल्कुल ठीक होने तक उसने जिस प्रकार अपना फर्ज निभाया। उसे देख मम्मी यह कहे बिना न रह सकीं कि मेरे बुरे वक्त में मेरा धर्म का बेटा बहुत काम आया। खबर मिलने के पश्चात भी पापा के भाई और बहन कोई भी पापा से मिलने नहीं आए। जबकि मौहल्लेवासी और रिश्तेदार सभी मिलने आए। यह सब देख मैंने महसूस किया कि उन खून के रिश्तों से तो यह धर्म के रिश्ते लाख दर्जें अच्छे हैं।
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