क्या वाकई आज हमारे लिए प्रेम के दिन समाप्त हो गए है. आज हमारे पास समय नहीं है या फिर हम चाहते ही नहीं की हम किसी से प्रेम करे. आज के समय पर मेरे वरिष्ठ पत्रकार साथी कमलेश भारतीय की एक सार्थक कविता.
बहुत से सुनहरी दिन
हमने खो दिए
दूसरों से ईर्ष्या करते.
और बहुत सारे दिन
खो दिए आलू की तरह
गुस्से में उबलते हुए.
किसी ने पूछा
प्रेम के दिनों के बारे में
उँगलियों पर मुश्किल से
गिना पाए.
हाय!
कैसे हम अपना जीवन
अब तक बिता पाए ?
घोर आश्चर्य
हम अब तक
कैसे जी पाए ?
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हमने खो दिए
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खो दिए आलू की तरह
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किसी ने पूछा
प्रेम के दिनों के बारे में
उँगलियों पर मुश्किल से
गिना पाए.
हाय!
कैसे हम अपना जीवन
अब तक बिता पाए ?
घोर आश्चर्य
हम अब तक
कैसे जी पाए ?








































1 आपकी गुफ्तगू:
सूर्य गोयल जी को वैवाहिक वर्षगाँठ पर शुभकामनाएँ!
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