






पूरे विश्व में क्रिसमस का त्यौहार जोश और हर्षौल्लास के साथ मनाया गया. किसी ने चर्च में मोमबती जला कर इसे मनाया तो किसी ने प्रार्थना कर इस त्यौहार में अपनी आहुति दी. इसाई समाज के लोगो ने जहां क्रिसमस को अपने अंदाज में मनाया वहीँ हिन्दू संस्कृति के लोगो में इस त्यौहार के प्रति भेडचाल ही दिखाई दी. जिसमे युवाओं की संख्या अधिक देखने को मिली. बात हिसार की कि जाएँ तो यहाँ इस धर्म के कुछ ही परिवार रहते है लेकिन चर्च में जो नजारा देखने को मिला उसे देख यह ज्ञात होना स्वाभाविक ही था की आज का युवा भारतीय परम्परा और संस्कृति से ऊपर उठ कर कुछ नया करने और पाने की फिराक में है. इन युवाओं में जहां लड़कियों की अधिकता थी वहीँ लड़के भी इनके पीछे-पीछे नजर आये.
तो क्या यह मान लिया जाएँ कि आज युवा भारतीय संस्कृति कि रुढीवादिता से ऊपर उठाना चाहता है. सुबह से ही हिसार के सेंट थॉमस चर्च में भीड़ लगनी आरम्भ हो गई थी. इस भीड़ में जवानो और बुजुर्गो की संख्या नाम मात्र थी तो युवाओं कि भागीदारी उम्मीद से कहीं ज्यादा थी. युवाओं की यह संख्या कम होने कि बजाय सुबह से दोपहर, शाम और रात होने तक स्थिर ही रही जबकि शाम ढलते-ढलते कुछ सपरिवार लोग आते दिखाई दिए. कोई गुलाब का फूल भगवान् यीशु को चढ़ा रहा था तो कोई मोमबती जला कर प्रार्थना कर रहा था. कुछ युवा चर्च के किसी कोने खड़े होकर बतिया रहे थे तो कुछ लड़के-लड़कियां हाथ में हाथ डाल कर मोमबती जला रहे थे.
कुल मिला कर सब कुछ पश्चिमी लग रहा था. कुछ ऐसे भी थे कि गालो से गाल मिला कर एक दूसरे को क्रिसमस की बधाई दे रहे थे. ऐसा नहीं है की यह गुफ्तगू क्रिसमस के विरोध में है, लेकिन अपनी सभ्यता को भूल कर कोई अन्य त्यौहार मानना कहाँ कि संस्कृति है. जबकि मजे की बात यह थी की अक्सर मंदिरों में लगने वाली लाइनों में जहां धक्का-मुक्की देखी जाती है वही चर्च में लगने वाली लाइन शांतिप्रिय ढंग से आगे बढ़ रही थी. जूते उतारने पर भी कोई पाबन्दी नहीं थी, हाथ धोना भी कोई जरुरी नहीं था. सबकी अपनी-अपनी परम्परा और त्यौहार मनाने के तरीके है. भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा त्यौहार मनाये जाते है लेकिन आज हिन्दुओ का ध्यान ही इन त्यौहारों से उचट रहा है.
यहाँ यह सोचने की जरुरत है की ऐसी कौन सी बात हो गई या हमारे त्यौहारों में क्या कमी आ गई की आज की पीढ़ी इन्हें भूलती जा रही है. क्यों हर वर्ष क्रिसमस पर चर्च में हिन्दुओ की संख्या बढती जा रही है. क्यों आज का युवा इस त्यौहार के प्रति जागरूक दिखाई दे रहा है. हमको ही कुछ सोचना होगा और सोच कर कुछ करना होगा. और अगर सिर्फ यह भेडचाल है तो हमको इसे रोकना होगा.
1 आपकी गुफ्तगू:
आप खुद इसमें न शामिल हों अगर न चाहें तो। सहिष्णुता मानवता का अंतर्जात धर्म होना चाहिए। घृणा हमारे अपने व्यक्तित्व को मलिन कर देती है।
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