स्थानीय देवी भवन में वृन्दावन से आये स्वामी विवेकानंद जी महाराज के सानिध्य में चल रहे विराट संत सम्मलेन के तीसरे दिन राग-द्वेष कैसे मिटे तथा कल्याण कैसे हो? इसके जवाब में स्वामी विवेकानंद जी ने जनता को संबोधित करते हुए कहा की नाम रूपात्मक पञ्चभूतो से निर्मित जगत ईश्वर का ही विराट शरीर है. मन तो संसार में कहीं ना कहीं जायेगा ही. "यत्र यत्र मनो याति " अर्थात जहा जहा मन जावे वही वही पर ऐसी भावना की जाये की वह वस्तु भी भगवान् के विराट शरीर का ही कोई अवयव है. इस प्रकार करने से मन अपनापन खो देगा और शरीर का अहंभाव भी जाता रहेगा. मन के तदरूप होते ही समभाव जागृत हो जायेगा. " सिया राममय सब जग जानी " यह भाव प्रकट होते ही " सिया राम देखत भए केही सन करिए विरोध " भाव जागृत हो जाता है. राग-दवेष समाप्त हो जाते है, और जीव का कल्याण हो जाता है.
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1 आपकी गुफ्तगू:
बहुत बढ़िया!
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