यात्रा के दौरान जिस तरह टी.टी., ट्रेन और टिकट का गहरा रिश्ता होता है उसी तरह आम आदमी की जिंदगी में आज समय और पैसे की अहम् भूमिका रह गई है. मतलब अगर यह कहा जाये की इंसान, समय और पैसे के रिश्ते को आज कोई तोड़ नहीं सकता तो गलत नहीं होगा. अब आप सोच रहे होंगे की यह तो ठीक है लेकिन टी.टी., ट्रेन और टिकट बीच में कहाँ से आ गई तो बात इतनी सी है की दिसंबर 2009 में मुझे तीन साल के लम्बे अंतराल के पश्चात दक्षिण भारत की यात्रा करने का अवसर मिला. रात के लगभग 9 बज रहे होंगे की ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी और कुछ यात्री ट्रेन में चढ़ गए. अभी ट्रेन चली ही थी की टी.टी. आगे-आगे और यात्री पीछे-पीछे. कुछ समय तक तो मुझे यह माजरा समझ में नहीं आया. तभी मेरी सीट से नीचे वाली सीट पर एक यात्री आया और अपने साथी को बताने लगा की अभी तो टी.टी. के पास समय नहीं है लेकिन जब वो अपनी टिकट चैक करने आएगा तब बात करेंगे की टिकट को कन्फर्म कर दे.
मामला समझ में आया तो पता चला की सभी को एक ही चाह थी की टी.टी. 100 - 200 रूपए ले ले और उन्हें सोने की जगह दे दे. लेकिन टी.टी. साहब थे की उनके पास समय ही नहीं था. कुछ ऐसा ही आजकल आम आदमी की जिंदगी में हो रहा है. पैसे के चक्कर में इंसान इस कदर खो गया है उसके पास कोई काम नहीं होते हुए भी वो व्यस्त है. उससे यह पूछा जाये की भैया क्या काम है तो जवाब मिलता है की काम तो कुछ नहीं है लेकिन पता ही नहीं समय कैसे गुजर जाता है. वो यह बताने में असमर्थ है की ऐसा क्या है की समय कैसे गुजर जाता है. यही कारण है की आज इंसान अपने घर-परिवार से दूर होता चला जा रहा है. घर पर अगर कोई काम कहा जाता है तो कहा जाता है की समय मिला तो हो जायेगा. सुना था की समय इंसान को बदल देता है लेकिन आजकल इंसान स्वयं समय के साथ बदल रहा है. कारण तो बहुत से है लेकिन जो मुख्य कारण है वो यह की एक तो इंसान समय से पीछे नहीं चलना चाहता और कुछ समय बलवान है. फिर चाहे समय इंसान को बदल दे या फिर इंसान स्वयं बदल जाये.
इसका एक कारण मुझे समझ में आता है जिसका जिक्र मैंने ऊपर भी किया है की इंसान, पैसे और समय के रिश्ते को आज कोई नहीं तोड़ सकता. आज जिसको देखो पैसे की और भागा ही चला जा रहा है. इसका अर्थ यह नहीं की अगर वह व्यापारी है तो व्यापार में व्यस्त है. या अफसर है तो उसको अपनी नौकरी का खतरा है. व्यापारी हो या अफसर या फिर आम इंसान. हर कोई आज व्यस्त है तो सिर्फ कंप्यूटर में. जिसे देखो जब देखो आँखे कंप्यूटर में और कान बाजार भाव में होते है. समझ गए होंगे की मैं क्या कहना चाह रहा हूँ. जो थोडा बहुत समय बचता है वो फोन पर बाते करते-करते गुजर जाता है. फिर भले ही व्यापार में नुकशान हो रहा हो या साहब को दफ्तर से छुट्टी लेनी पड़े लेकिन शेयर मार्केट और कोमोडिटी बाजार के भावो पर नजर रखनी जरुरी है. सोच यही की नौकरी और व्यापार में क्या रखा है. शेयर मार्केट और कोमोडिटी में आयेंगे तो झोली भर कर. अगर कभी गया भी तो उससे ज्यादा कमाया जा सकता है.
यही कारण है की आज हर किसी को पैसे कमाने का सबसे आसान तरीका नजर आता है शेयर मार्केट और कोमोडिटी बाजार. अब आप ही बताओ की इंसान खाली रहते हुए भी व्यस्त क्यों नहीं रहेगा. लेकिन बताने के नाम पर वो यह नहीं बता सकता की उसके पास समय क्यों नहीं है. अंत में यही कहूँगा की समय बलवान है इसलिए सब कुछ जायज है.
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क्योंकि समय बलवान है
लेबल: कोमोडिटी बाजार, शेयर मार्केट, सभी, सामाजिक गुफ्तगू
तड़का मार के
* महिलायें गायब
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
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1 आपकी गुफ्तगू:
Waqt ki har shai gulaam,waqt ka har shai pe raaj...
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