नशा भी नशा होता है. जब चढ़ता है तो ऐसा चढ़ता है की उतरने का नाम ही नहीं लेता. यह कभी नशे के आदि लोगो पर चढ़ता है तो कभी पहली बार नशा करने वालो पर. तो कभी-कभी भगवान् शिव के भक्तो पर भी नशा सिर चढ़ कर बोलता है. जबकि आम आदमी पर भी विभिन्न प्रकार का नशा समय-समय पर चढ़ता रहता है. फर्क मात्र इतना है की नशा कई प्रकार का होता है. कोई शराब का नशा करता है तो कोई गैरकानूनी प्रदार्थो का. तो कोई भांग का नशा करता है. जो आदमी की बात की गई है उसमे जिद, पैसे, रुतबा व् लालच का नशा शामिल है. लेकिन इनमे से कोई भी नशा ऐसा नहीं है जिसका असर तीन-चार दिन तक रहे. नशा कुछ समय तक तो अपना असर दिखता है, जिस कारण इंसान लोटपोट नजर आता है. लेकिन उसके बाद वह मदहोश होकर सो जाता है.
अब देखो ना स्टार प्लस पर आज कल एक धारावाहिक आ रहा है ये रिश्ता क्या कहलाता है. इस नाटक की मुख्य भूमिका में नैतिक और अकसरा को
दिखाया गया है. तीन दिन पूर्व नाटक में दो परिवारों का होली मिलन समारोह दिखाया गया था. होली के अवसर पर भांग पीने का अपना अलग ही मजा होता है. बहुत से लोग होली पर भांग पीते होंगे लेकिन ना तो किसी के साथ ऐसा हुआ होगा और ना ही ऐसी कोई भांग होगी की जिसका असर तीन दिन तक आदमी में दिखे. सीधा-सीधा कहने का अर्थ यह है की इस नाटक में नैतिक व् अकसरा ने भांग पी वहा तक तो ठीक लेकिन उसका असर नाटक के तीसरे एपिसोड तक दिखाया गया है. अगर यह दो दिन और रहा तो शायद भांग पिने वाले स्टार प्लस से ही ना पूछ ले की भैया ऐसी भांग कहा से लाये थे जिसका असर तीन -चार दिनों तक रहता है.
इस गुफ्तगू के पीछे भाव यह है की अक्सर एक एपिसोड में दो से तीन दिन तक की कहानी को समेट दिया जाता है. जबकि यह भांग का नशा है की उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है. उधर कमरे के बाहर और ही नजारा है. दोनों परिवारों की बहु-बेटिया बाहर ही खड़ी दिखाई दे रही है. तो क्या कमरे के अन्दर भांग का नशा है और बाहर जिद का, की जब तक दोनों बाहर नहीं आ जाते हम कमरे बाहर ही खड़े रहेंगे. अब यह तो धारावाहिक बनाने वाले जाने या देखने वाले की आखिर दिखाने वाले क्या दिखाना चाहते है और देखने वाले क्या..... लेकिन इतना जरुर है की अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब लोग ऐसे धारावहिक देखना पसंद ही नहीं करेंगे. अब एकता कपूर को ही देख लो. लोगो ने उनके धारावाहिकों को किस कदर पसंद किया. लेकिन अंत में इन्ही कारणों के चलते जनता ने उब कर नाटको को देखना ही छोड़ दिया.
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नशा है की उतरता ही नहीं
तड़का मार के
* महिलायें गायब
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
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1 आपकी गुफ्तगू:
सुन्दर रहा,
यह आलेख!
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