कल मैंने लिखा था की कैसे भगवान् के नाम पर जागरण समितिया आपस में ही प्रतिस्पर्धा के चलते चंदे के नाम पर एकत्रित की गई धन राशी को फिजूल खर्जी में उड़ा देती है. मुझे बहुत से पाठको की मेल भी मिली तो कुछ ने फोन कर कहा की गोयल जी हर मुद्दे पर अच्छा लिख लेते हो लेकिन इस मुद्दे पर थोडा ही लिखा. जरा खुल कर लिखते तो अच्छा रहता. कल सोचा था की अब इस मुद्दे पर कुछ और नहीं लिखूंगा क्योंकि भगवान् के साथ सभी की अपनी-अपनी भावनाए होती है. मरता क्या ना करता सो आज गुफ्तगू की गई तो पता चला की कैसे और क्यों यह प्रतिस्पर्धा दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है. आज हर शहर में विभिन्न जागरण समितिया भगवान् का प्रचार करने में जुटी है. कोई हनुमान जी के नाम का प्रचार कर रहा है तो कोई खाटू वाले का जागरण करवा रहा है. जबकि माँ शेरावाली और भगवान् शिव को पूजने वालो की भी कमी नहीं है. मुद्दा यह नहीं की
जागरण होने की संख्या क्यों बढ़ रही है जबकि विषय यह है की अगर आज एक जागरण समिति ने जागरण में कुछ विशेष कर दिया तो दूसरी जागरण समिति उससे अधिक करने का प्रयास करती है. इसी आपाधापी में वो समिति कुछ काम ऐसे कर जाती है की फिजूल खर्जी स्पष्ट दिखने लगती है.
दिन-प्रतिदिन जागरण में आने वाले श्रोताओ की संख्या घट रही है. यह एक बहुत बड़ा कारण है की जागरण समिति इस संख्या को बढ़ाने के लिए हर दम कुछ नया करने की सोच रखती है. लेकिन जिस तरह से एक पडोसी को देख दूसरा पडोसी अतिक्रमण को बढ़ावा देता है ठीक उसी तरह यह प्रतिस्पर्धा आजकल जागरण समितियों में भी होने लगी है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब भगवान् के इन ठेकेदारों और जनता के बीच दूरी बढ़ जाएगी.
एक समय था जब यह कहा जाता था की भगवान् ही है जो अपने भक्तो को कभी भी और कैसे भी दर्शन दे देते है. उसके लिए सिर्फ जरुरत है तो श्रद्धा की. हो सकता है की भगवान् आपकी कभी परीक्षा लेना चाहे तो आपको लम्बी लाइनों में भी लगना पड़ सकता है. समय बदलता गया और आज मंदिरों में भगवान् सिर्फ पैसे वालो को ही दर्शन देते है जबकि आम जनता तो उनको मात्र देख सकती है. कहने का भाव यह है की जिस तरह जागरण में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है उसी तरह मंदिरों में भगवान् के दर्शनों की बोली के भाव आज आसमान छूने लगे है. यह सब देख तो ऐसा ही लगता है की बहुत जल्द ही भगवान् बिकने लगेंगे.
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तो एक दिन बिकने लगेंगे भगवान्
लेबल: जागरण, सभी, सामाजिक गुफ्तगू
तड़का मार के
* महिलायें गायब
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.
* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...
* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.
* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.
* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
आओ अब थोडा हँस लें
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2 आपकी गुफ्तगू:
आज भी तो यही हो रहा है!
सच्चे बिक रहे हैं,
झूठे खरीद रहे हैं।
होने ही लग गया है..
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