भाषण और उसकी मर्यादा


वाह रे राजनीति तेरे भी कैसे - कैसे रंग देखेगी जनतातू ही है जो कभी किसी बिछडे को मिला देती है तो कभी लंगोटिया यारो को भी जुदा कर देती है तेरे रंग का ही कमाल है की कभी-कभी तो रिश्तेदार भी तेरे लपेटे में कर अपनी रिश्तेदारी भुला देते हैएक समय था जब राजनेता समाजसेवा के लिए राजनीती में आते थे और जनता से कुछ करने का वादा करते थे और उसे पूरा भी करते थेवो नेता कुछ ऐसा कर जाते थे की आज भी जनता उनको याद कर-कर आज के नेताओ को कोसती हैउस समय नेता अपने भाषणों में जो बोलते थे जनता उनके उन बोलो को अपने जहन में उतार लेती थी और वो बोल ही होते थे की आज भी उन नेताओ की समय-समय पर याद ताज़ा करवाते रहते हैकहने का अर्थ यह है की भाषणों की भी एक मर्यादा होती थीलेकिन आज तो यह याद रहता है की कब किस नेता ने किसको बुरा भला कहा, कितनी बार कहाराजनीती की सच्चाई तो आज यह है की आज नेता अपने भाषणों में जनता से वादे कम और अपने विरोधियो पर कटाक्ष ज्यादा करते हैयही कारण है की आज जनता भी यही सब सुनने को उत्सुक रहती है
अब आप ही देख लो की कभी लाल कृष्ण आडवाणी काले धन के लिए बोलते है तो कभी वरुण गाँधी मुसलमानों केखिलाफहद तो उस समय होती है जब राबड़ी देवी नीतिश कुमार के खिलाफ बोलती है और मामला इतना बढ जाता है की एक जनसभा में लालू यादव को नीतिश कुमार अपने छोटे भाई के रूप में नज़र आने लगते हैइतना ही नही राजनीती फिर मोड़ लेती है और राबड़ी देवी कहती है की भले ही लालू यादव निभाते रहे अपनी रिश्तेदारी मुझे कोई फर्क नही पड़ताकहानी फिओर मोड़ लेती है और अब लालू जी भी राजनीती के फेर में घिरते नज़र रहे हैमामला टूल पकड़ता नज़र रहा हैभाजपा ने तो यहाँ तक कह दिया है की अब लालू पर भी रासुका लगनाचाहिएज्ञात रहे की लालू ने वरुण गाँधी के खिलाफ एक जनसभा में कहा था की अगर में देश का गृहमंत्री होता तोवरुण को बुलडोजर के निचे कुचल देताउनके इस बयां से जहा वरुण गाँधी मामला पुनः हरा भरा हो गया है वहीराज्निओती भी गरमा गई हैभले ही किशन गंज ठाणे में लालू के खिलाफ मामला दर्ज हो गया हो लेकिन यह तोजगजाहिर है की आज तक भारत में किसी मंत्री - सन्तरी का कुछ नही बिगडा तो लालू जी का क्या बिगड़ सकता हैलेकिन यहाँ पहलु यह है की क्या अब राजनेता अपने भाषणों की मर्यादा भूल गए है या ऐसे भाषण समय की जरुरतबन गए है

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