लोकसभा चुनाव की घोषणा के पश्चात् जहा नेताओ और कार्यकर्ताओ के चेहरों पर खुशी छलक रही थी वही इनकी भीड़ से दूर कुछ लोग ऐसे भी थे जो चुनाव घोषित होने से फूले नही समां रहे थे । यह वो लोग थे जो अक्सर चुनावो के दिनों में अपने नेताओ का झंडा बुलंद करते है । वैसे तो नेताओ की भी इन दिनों में इनकी जरुरत होती है लेकिन अगर कोई चुनाव का इंतजार करता है तो वो यही लोग होते है । आगामी लोकसभा चुनावो की लेकर तो इनकी खुशी का ठिकाना ही नही था । इसका मुख्य कारण था की घोषणा होने के पश्चात् चुनावो का 1 . 5 माह बाद होना । इन्हे लगा जैसे अब इनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ तो हो गया । चुनावी कार्यालयों की हाजरी मारेंगे और नेताओ की चमचागिरी, हो जाएगा 1 . 5 महीने के खर्चा-पानी का जुगाड़ । लेकिन यह सियासत ही थी या इनके सपनो पर पानी फेरने की कवायत की पहले आप पहले आप करते - करते राजनितिक पार्टियों ने शुरू का आधा महिना तो प्रत्याशी घोषित करने में ही निकाल दिया । चुनाव कार्यालय खुलना और इनको नेताओ का दीदार होना तो दूर की बात थी । ऐसे में ये भी क्या करते । जैसे तैसे कर के आधा महिना तो इन्तजार में निकल ही दिया । अब फिलहाल हजंका को छोड़ हिसार में सियासी बिसाते बिछ चुकी है । बसपा से राम दयाल गोयल जहा सब से पहले चुनाव मैदान में डट चुके थे वही हरियाणा में पार्टी का जनाधार नही होने के कारण व् नए नेता होने से भी ऐसे लोग उनसे दुरी बनाये रहे जो अपने पेट के लिए किसी भी पार्टी का झंडा उठाते है । हाल ही में इनलो-भाजपा से संपत सिंह और 2 दिन पूर्व ही कांग्रेस से जयप्रकाश को टिकट मिलने से मायूस चेहरों पर मुस्कान दिखने लगी है । उल्लेखनीय है की इन लोगो को किसी भी पार्टी, नेता और चुनावो से कोई लेना देना नही होता । यह सिर्फ़ रैलियों और सभाओ में होने वाली भीड़ में शामिल होते है । ये सुबह किसी की रैली में तो शाम को किसी और के चुनावी कार्यालयों में हाजरी मारते दिखाई देते है । इनके लिए सिर्फ़ प्रत्याशी बदलता है कर्म नही । इनकी विस्तार से जानकारी के लिए पढ़े-
चुनाव है कुछ न कुछ तो मिलेगा
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