ग़लत परम्परा का निर्वाह या . . . . . . . .


भारत के गृहमंत्री पर जूता फैंक कर पत्रकार जरनैल सिंह ने ठीक किया या फिर उन्होंने एक बार फिर चौथे स्तम्भ का नाम धूमिल करने का काम किया है । इस बात का जवाब तो हम आगे ढूढेगे लेकिन इतना जरुर है की इराक में 15 दिसम्बर के बाद भारत में ऐसी ही घटना की पुनरावृति से ऐसा लगने लगाहै की कही अब एक ग़लत परम्परा की शुरुवात तो नही हो गई । पत्रकार के पास अपनी भावनाए जाहिर करने के इसके अतिरिक्त और कई रास्ते होते है । मैं यहाँ किसी को कोई परामर्श नही दे रहा हु लेकिन गुफ्तगू करना चाहता हु की अगर जरनैल सिंह पी चितंबरम के जवाब से संतुष्ट नही थे तो वो आप्पति दर्ज करवा सकते थे फिर भी अगर उन्हें जवाब नही मिलता तो वो कांफ्रेंस का बायकाट कर सकते थे । लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ लेकिन जो नही होना चाहिए था वो जरुर हो गया । वो शब्द के यहाँ कई मायने है ।
ऐसी उम्मीद नही थी
एक तो यह की ऐसी किसी को उम्मीद नही थी की जागरण के वरिष्ठ पत्रकार ऐसा कोई कदम उठा सकता है और दूसरा मायना यह की सीबीआई तो 2 दिन पूर्व ही जगदीश टाईटलर व् सज्जन सिंह को क्लीन चिट दे चुकी थी फिर सिख समाज जूता फैकने के बाद ही क्यो भड़का । क्या सिख समुदाय इस मामले पर कोई फ़ैसला नही ले पा रहा था या फिर कोई सर उठाने की हिम्मत नही कर पा रहा था । चलो जो भी हो वो उनका मामला है लेकिन इतना जरुर है इस घटना ने कांग्रेस को असमंजस में डाल दिया है । पत्रकार जगत भी असमंजस में है । इसका मुख्य कारण है की शिरोमणि अकाली दल ने जरनैल सिंह को 2 लाख रुपए और नौकरी की पेशकश की थी जिसको लेने से उन्होंने मना तो अवश्य कर दिया लेकिन कही यह ग़लत परम्परा का निर्वाह मात्र है ।
सिखों कि भावना से खिलवाड़

अब बारी है यह जानने की कि क्या जरनैल सिंह ने ऐसा कर ठीक किया या नही । इस मुद्दे पर भाजपा ने राजनीती करते हुए ना इस मामले को अच्छा बताया तो ना ही ग़लत । भाजपा ने कहा कि जरनैल सिंह का तरीका ग़लत था न कि भावना । ऐसा ही कुछ घटना के बाद गृह मंत्री ने कहा था । पी चितंबरम ने जरनैल सिंह को यह कहते हुए माफ़ कर दिया था कि उन्होंने भावना में बह कर यह कदम उठाया है । इसलिए वो कोई शिकायत दर्ज नही करवाएंगे । यहाँ सवाल तो भावना का ही है । गृहमंत्री उस समय यह क्यो भूल गए कि दोनों कांग्रेसी नेताओ को सीबीआई ने क्लीनचिट दे कर सिखों की भावना से ही तो खिलवाड़ किया है ।

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