सभी जानते हैं कि मेरे देश की राजनीति सुबहान अल्ला है। आम कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष राजनेता तक राजनीति में इस कदर डूब गया है कि उसे देश दुनिया से कोई सरोकार नहीं है। अब अगर बात चुनाव की, की जाए तो नेता तो नेता आमआदमी भी चुनावी रंग में रंगा नजर आता है। यही कारण है कि आजकल चहुंओर चुनावी माहौल सा नजर आ रहा है। जिसके चलते हर आम-खास की जुबान चुनावी गुफ्तगु कर रही है तो नेताओं के क्रियाकलाप भी चुनावी-चुनावी से नजर आ रहे हैं। जनता की सोच आज चुनाव तक सिमित लग रही है तो नेताओं के भाषणों में भी चुनावी रस टपक रहा है।
बात देश के पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की हो या आदमपुर व रतिया विधानसभा उपचुनाव की। सभी चुनावों ने देश के माहौल को चुनावी सा कर दिया है. वहीँ हरियाणा के आदमपुर व् रतिया के दोनों उपचुनावों में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व भविष्य में मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए कुलदीप बिश्रोई एवं कैप्टन अभिमन्यु चुनाव जीतने हेतू रावण के जमाने के प्रसिद्ध फार्मूले साम-दाम-दंड-भेद का इस्तेमाल करने से गूरेज नहीं कर रहे हैं। कहने का भाव सिर्फ इतना सा है की जनता से लेकर नेता तक सब चुनावी हो गए है.
इस गुफ्तगू को उस समय और हवा मिली जब उत्तर प्रदेश के विकास का दावा करने वाली मुख्यमंत्री मायावती ने उत्तरप्रदेश के ही चार टुकड़े करने का मन बना लिया। परिणामस्वरूप एक प्रस्ताव पारित कर केन्द्र को भेज दिया गया। ऐसा ही कुछ हाल केन्द्र सरकार का भी है। केन्द्र भी इन चुनावों में जीत हासिल करने के लिए पूरी तरह से चुनावी रंग में रंगा हुआ है। यह शायद चुनावी असर ही है की क्रुड (कच्चा तेल) की कीमत्तें दिन-प्रतिदिन बढऩे के बावजूद केन्द्र ने या तो बीते लोकसभा चुनाव में जीत पाने के लिए तेल की कीमतों में कटौती की थी या फिर अब एक बार पुन: तेल के दामों में कटौती की है।
माना जा रहा है कि हिसार लोकसभा उपचुनाव में मात खाने के बाद केन्द्र ने पाँचों राज्यों सहित आदमपुर व रतिया उपचुनाव पर कब्जा जमाने के उद्देश्य से यह कटौती की है। बीते दिनों राज्यस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हैलीकॉप्टर की हिसार के सीमावर्ती गांव में आपात लैंडिंग के दौरान गरीब के घर चाय पीकर हजार रूपए का नोट देना चुनावी सा नजर आया. प्रदेश में बिजली को लेकर जहाँ हाहाकार मचा हुआ है वहीँ हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का हालिया ब्यान कि जनवरी से प्रदेश की जनता को नियमित बिजली मिलेगी भी यह दर्शाता है कि आज सबकुछ चुनावी-चुनावी सा हो गया है।
जहां उत्तरप्रदेश के हालात पर देश के युवराज राहुल गांधी को शर्म आना उनकी राजनीतिक मंसा को दर्शाता है वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की जनचेतना यात्रा भी किसी चुनावी फार्मूले से कम नहीं है।
Related Articles :
बात देश के पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की हो या आदमपुर व रतिया विधानसभा उपचुनाव की। सभी चुनावों ने देश के माहौल को चुनावी सा कर दिया है. वहीँ हरियाणा के आदमपुर व् रतिया के दोनों उपचुनावों में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व भविष्य में मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए कुलदीप बिश्रोई एवं कैप्टन अभिमन्यु चुनाव जीतने हेतू रावण के जमाने के प्रसिद्ध फार्मूले साम-दाम-दंड-भेद का इस्तेमाल करने से गूरेज नहीं कर रहे हैं। कहने का भाव सिर्फ इतना सा है की जनता से लेकर नेता तक सब चुनावी हो गए है.
इस गुफ्तगू को उस समय और हवा मिली जब उत्तर प्रदेश के विकास का दावा करने वाली मुख्यमंत्री मायावती ने उत्तरप्रदेश के ही चार टुकड़े करने का मन बना लिया। परिणामस्वरूप एक प्रस्ताव पारित कर केन्द्र को भेज दिया गया। ऐसा ही कुछ हाल केन्द्र सरकार का भी है। केन्द्र भी इन चुनावों में जीत हासिल करने के लिए पूरी तरह से चुनावी रंग में रंगा हुआ है। यह शायद चुनावी असर ही है की क्रुड (कच्चा तेल) की कीमत्तें दिन-प्रतिदिन बढऩे के बावजूद केन्द्र ने या तो बीते लोकसभा चुनाव में जीत पाने के लिए तेल की कीमतों में कटौती की थी या फिर अब एक बार पुन: तेल के दामों में कटौती की है।
माना जा रहा है कि हिसार लोकसभा उपचुनाव में मात खाने के बाद केन्द्र ने पाँचों राज्यों सहित आदमपुर व रतिया उपचुनाव पर कब्जा जमाने के उद्देश्य से यह कटौती की है। बीते दिनों राज्यस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हैलीकॉप्टर की हिसार के सीमावर्ती गांव में आपात लैंडिंग के दौरान गरीब के घर चाय पीकर हजार रूपए का नोट देना चुनावी सा नजर आया. प्रदेश में बिजली को लेकर जहाँ हाहाकार मचा हुआ है वहीँ हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का हालिया ब्यान कि जनवरी से प्रदेश की जनता को नियमित बिजली मिलेगी भी यह दर्शाता है कि आज सबकुछ चुनावी-चुनावी सा हो गया है।
जहां उत्तरप्रदेश के हालात पर देश के युवराज राहुल गांधी को शर्म आना उनकी राजनीतिक मंसा को दर्शाता है वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की जनचेतना यात्रा भी किसी चुनावी फार्मूले से कम नहीं है।
0 आपकी गुफ्तगू:
Post a Comment