इस वक्त देश में भ्रष्टाचार का मुद्दा सबसे हावी है। केंद्र सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बुरी तरह से घिरी हुई है। चारों तरफ भ्रष्टाचार की ही चर्चा हो रही है। अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद से भ्रष्टाचार को मिटाने की जोर-शोर से मांग उठ रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आंदोलन को सबसे अधिक मीडिया का समर्थन मिला, मगर अब हिसार लोकसभा उपचुनाव में यही मीडिया खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। चुनाव के मद्देनजर कुछ मीडिया कंपनियों ने राजनीतिक विज्ञापन के रेट दो गुणा कर दिए हैं और जो नेता विज्ञापन नहीं देता, उसके समाचार प्रकाशित नहीं किये जाते हैं। अगर समाचार लगाये भी जाते हैं, तो महज खानापूर्ति की जाती है। कुछ मीडिया कंपनियों की तो दिल्ली व चंडीगढ़ से आई टीम ने हिसार में डेरा डाल दिया है। सिर्फ और सिर्फ चुनाव के मौके का फायदा उठाने के लिए। लोगों में गुफ्तगू हो रही है कि आजकल जनता को लूटने वाले नेताओं को मीडिया लूट रहा है।
सरकारी विभागों में रिश्वत लेने-देने के खेल के चलते पूरा देश भ्रष्टाचार में डूबा है। सरकारी अधिकारी या कर्मचारी के पास जनता के काम करने की ताकत होती है और वह अपनी इसी ताकत का फायदा उठाते हुए भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। नेता भी जनता की जरूरतों को पूरा करने के नाम पर भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। नेताओं और सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के पास रोजाना ऐसे मौके होते हैं, जिससे वह भ्रष्टाचार फैला सकें। ऐसे में चुनाव के दिनों में यह ताकत और मौका मीडिया के हाथ लग जाता है। चुनाव की घोषणा होते ही मीडिया कंपनियों की बांछें खिल जाती हैं। आ गया मौका कमाई करने का। हालांकि यह फायदा केवल बड़ी मीडिया कंपनियां ही उठाती हैं, क्योंकि उनके पास मीडिया की ताकत ज्यादा होती है। नेता भी बड़ी मीडिया कंपनियों के आगे नतमस्तक होते हैं।
जहां त्यौहारों के दिनों में समाचार पत्र और चैनल व्यवसायिक विज्ञापनों के लिए अपनी विज्ञापन दरों छूट देते हैं वहीं चुनाव के दिनों में विज्ञापन दरों को बढ़ा दिया जाता है। आखिर चुनाव रोजाना थोड़े ही होते हैं। अब ऐसी स्थिति में कोई कैसे देश से भ्रष्टाचार खत्म होने की बात कर सकता है। इस देश में मौका देखकर हर कोई फायदा उठाना चाहता है, चाहे वह गलत तरीके से ही क्यों नहीं हो। मीडिया भी इस बीमारी से अछूता नहीं है।
संयम जैन, स्वतंत्र पत्रकार
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सरकारी विभागों में रिश्वत लेने-देने के खेल के चलते पूरा देश भ्रष्टाचार में डूबा है। सरकारी अधिकारी या कर्मचारी के पास जनता के काम करने की ताकत होती है और वह अपनी इसी ताकत का फायदा उठाते हुए भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। नेता भी जनता की जरूरतों को पूरा करने के नाम पर भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। नेताओं और सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के पास रोजाना ऐसे मौके होते हैं, जिससे वह भ्रष्टाचार फैला सकें। ऐसे में चुनाव के दिनों में यह ताकत और मौका मीडिया के हाथ लग जाता है। चुनाव की घोषणा होते ही मीडिया कंपनियों की बांछें खिल जाती हैं। आ गया मौका कमाई करने का। हालांकि यह फायदा केवल बड़ी मीडिया कंपनियां ही उठाती हैं, क्योंकि उनके पास मीडिया की ताकत ज्यादा होती है। नेता भी बड़ी मीडिया कंपनियों के आगे नतमस्तक होते हैं।
जहां त्यौहारों के दिनों में समाचार पत्र और चैनल व्यवसायिक विज्ञापनों के लिए अपनी विज्ञापन दरों छूट देते हैं वहीं चुनाव के दिनों में विज्ञापन दरों को बढ़ा दिया जाता है। आखिर चुनाव रोजाना थोड़े ही होते हैं। अब ऐसी स्थिति में कोई कैसे देश से भ्रष्टाचार खत्म होने की बात कर सकता है। इस देश में मौका देखकर हर कोई फायदा उठाना चाहता है, चाहे वह गलत तरीके से ही क्यों नहीं हो। मीडिया भी इस बीमारी से अछूता नहीं है।
संयम जैन, स्वतंत्र पत्रकार
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