अपने पहले कार्यकाल में यूपीए सरकार ने कोई ढंग का काम किया होगा, तब ही जनता ने यूपीए को दूसरा मौका दिया। लगता है इसी बात से कांग्रेस का दिमाग खराब हो गया और दूसरे कार्यकाल में सरकार ने अनाप-शनाप काम करने शुरू कर दिए। भ्रष्टाचार और महंगाई से मुक्ति दिलाने में नाकाम केंद्र सरकार ने अन्ना के आंदोलन को दबाने का प्रयास करके अपनी सत्ता के पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। कांग्रेस इस वक्त केंद्र सरकार की कब्र खोदने का काम कर रही है।
यूपीए सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में रोजगार की गारंटी कानून लागू किया। खूब वाहवाही लूटी। दोबारा सरकार बनी। मगर, दूसरा कार्यकाल तो जैसे यूपीए सरकार के लिए मुसीबतों का टोकरा लिए हुए बैठा था। इस टोकरे में से कभी कॉमनवेल्थ घोटाला, कभी 2जी घोटाला, कभी मुम्बई में आदर्श सोसायटी घोटाला तो कभी काले धन का मामला या फिर महंगाई की रोकथाम में नाकामयाबी के बम निकलकर सरकार के ऊपर फूटते रहे। सरकार ने इन बमों से बचने के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन सरकार इन बमों के फटने से हुए गहरे गड्ढों में गिरती चली गई।
जनता महंगाई से पहले ही परेशान थी, भ्रष्टाचार मामलों ने जनता में आक्रोष फैला दिया। तब अन्ना हजारे के रूप में जनता को महात्मा गांधी की झलक नजर आई और अप्रैल में जनलोकपाल बिल की मांग को लेकर हुए आंदोलन में आम जनता जी-जान से जुड़ गई। अन्ना के आंदोलन से जनता की अदालत में खुद को हारा महसूस कर रही तिलमिलाई यूपीए सरकार ने काला धन वापस लाने की शांतिपूर्वक ढंग से मांग कर रहे बाबा रामदेव पर भी लाठियां बरसाने में परहेज नहीं किया।
अब अन्ना के आंदोलन की दूसरी कड़ी में सरकार ने अन्ना को गिरफ्तार करके अपनी तिलमिलाहट का एक और उदाहरण पेश किया। कांग्रेस के कुछ वजीर व प्यादे बचकाने ब्यान देकर अपनी झल्लाहट पहले ही दिखा चुके हैं। अब अन्ना हजारे को अनशन के लिए दिल्ली प्रशासन से अनुमति लेने के लिए आवेदन करना पड़ा और फिर भी अनुमति नहीं मिली। पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया। इसका मतलब ये हुआ कि छोटे-मोटे अनशन या धरने-प्रदेशन को तो सरकार कुछ समझती ही नहीं थी। पूरे देश की जनता अन्ना के साथ जुडऩे लगी तो कांग्रेस को कानून याद आ गया। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भट्टा पारसौल गए तो कांग्रेस ने कानून को किसी कोने में सडऩे के लिए छोड़ दिया। उस वक्त कहां थी अंबिका सोनी या कहां था अरुण तिवारी।
अब कांग्रेस से जनता जवाब मांग रही है। अन्ना को एक इंसान समझकर कांग्रेस ने बड़ी भूल की है। अन्ना तो एक विचार है, जो धीरे-धीरे जनता के दिल-ओ-दिमाग में घर करता जा रहा है। जिस दिन देश का सब्र का बांध टूट गया तो यह विचार एक तूफान बनकर आएगा और कांग्रेस सरकार का सफाया कर देगा। बात सिर्फ कांग्रेस सरकार की भी नहीं है, ये विचार सही ढंग से सफर करता रहा तो हर आने वाली सरकार को इस विचार से सावधान रहते हुए ईमानदारी से काम करना पड़ेगा।
यूपीए सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में रोजगार की गारंटी कानून लागू किया। खूब वाहवाही लूटी। दोबारा सरकार बनी। मगर, दूसरा कार्यकाल तो जैसे यूपीए सरकार के लिए मुसीबतों का टोकरा लिए हुए बैठा था। इस टोकरे में से कभी कॉमनवेल्थ घोटाला, कभी 2जी घोटाला, कभी मुम्बई में आदर्श सोसायटी घोटाला तो कभी काले धन का मामला या फिर महंगाई की रोकथाम में नाकामयाबी के बम निकलकर सरकार के ऊपर फूटते रहे। सरकार ने इन बमों से बचने के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन सरकार इन बमों के फटने से हुए गहरे गड्ढों में गिरती चली गई।
जनता महंगाई से पहले ही परेशान थी, भ्रष्टाचार मामलों ने जनता में आक्रोष फैला दिया। तब अन्ना हजारे के रूप में जनता को महात्मा गांधी की झलक नजर आई और अप्रैल में जनलोकपाल बिल की मांग को लेकर हुए आंदोलन में आम जनता जी-जान से जुड़ गई। अन्ना के आंदोलन से जनता की अदालत में खुद को हारा महसूस कर रही तिलमिलाई यूपीए सरकार ने काला धन वापस लाने की शांतिपूर्वक ढंग से मांग कर रहे बाबा रामदेव पर भी लाठियां बरसाने में परहेज नहीं किया।
अब अन्ना के आंदोलन की दूसरी कड़ी में सरकार ने अन्ना को गिरफ्तार करके अपनी तिलमिलाहट का एक और उदाहरण पेश किया। कांग्रेस के कुछ वजीर व प्यादे बचकाने ब्यान देकर अपनी झल्लाहट पहले ही दिखा चुके हैं। अब अन्ना हजारे को अनशन के लिए दिल्ली प्रशासन से अनुमति लेने के लिए आवेदन करना पड़ा और फिर भी अनुमति नहीं मिली। पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया। इसका मतलब ये हुआ कि छोटे-मोटे अनशन या धरने-प्रदेशन को तो सरकार कुछ समझती ही नहीं थी। पूरे देश की जनता अन्ना के साथ जुडऩे लगी तो कांग्रेस को कानून याद आ गया। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भट्टा पारसौल गए तो कांग्रेस ने कानून को किसी कोने में सडऩे के लिए छोड़ दिया। उस वक्त कहां थी अंबिका सोनी या कहां था अरुण तिवारी।
अब कांग्रेस से जनता जवाब मांग रही है। अन्ना को एक इंसान समझकर कांग्रेस ने बड़ी भूल की है। अन्ना तो एक विचार है, जो धीरे-धीरे जनता के दिल-ओ-दिमाग में घर करता जा रहा है। जिस दिन देश का सब्र का बांध टूट गया तो यह विचार एक तूफान बनकर आएगा और कांग्रेस सरकार का सफाया कर देगा। बात सिर्फ कांग्रेस सरकार की भी नहीं है, ये विचार सही ढंग से सफर करता रहा तो हर आने वाली सरकार को इस विचार से सावधान रहते हुए ईमानदारी से काम करना पड़ेगा।
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