जैसा की मैंने आपको पिछले लेख में बताया था की सोमवार को मैं बहुत समय के बाद कंप्यूटर पर बैठा था.बैठा क्या था बस मौका ही मिल गया था. इस बहाने आपसे गुफ्तगू करने का अवसर मिल गया. जब मैं मेल पर पहुंचा तो कुछ दिनों पुरानी एक मेल मिली. मेल मेरे किसी गुफ्तगू के पाठक की थी. लेकिन जब मैंने मेल में आई कविता पढ़ी तो लगा की कविता दिल से लिखी गई है, साथ ही लेखक के भाव "मंजिलो को पाने की चाह" मेरे दिल को छु गए. साथ ही एक आशा की गई थी की अगर मुझे कविता अच्छी लगे तो गुफ्तगू में शामिल की जाये. इसलिए यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है.
अर्ज किया है
जब भी कोई अपनी रूह से रु-ब-रु होता है,
आँखों में नूर दिल में सुरूर होता है,
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अर्ज किया है
जब भी कोई अपनी रूह से रु-ब-रु होता है,
आँखों में नूर दिल में सुरूर होता है,
कर लेता है वो हर हाल में हासिल,
मुकाम चाहे जितना भी दूर होता है...........
जितेन्द्र जलवा मोहन
नाकाम होने पर भी गम न कीजे,
मिले चाहे गम तुम्हें पर तुम किसी को गम न दीजे,
सर्वप्रिये बनने का एक मात्र तरीका है ये,
कोई तुम्हारा बने न सही पर तुम हमेशा सबके बनके रहिजे...........
जितेन्द्र जलवा मोहन
किस्मत मुठ्ठी में बंद करके चलता हूँ मैं,
हौसलों के पंख फैला कर उड़ता हूँ मैं,
मंजिलों को पाने की चाह है मेरे दिल में,
इसलिए हर कदम मंजिलों की और रखता हूँ मैं ............
जितेन्द्र जलवा मोहन
2 आपकी गुफ्तगू:
उपयोगी और सार्थक लेखन के लिए बधाई!
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आज के चर्चा मंच पर भी तो आपकी कोई पोस्ट होनी चाहिए!
bahut khub , sundar vichaar
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