मंजिलो को पाने की चाह है दिल में


जैसा की मैंने आपको पिछले लेख में बताया था की सोमवार को मैं बहुत समय के बाद कंप्यूटर पर बैठा था.बैठा क्या था बस मौका ही मिल गया था. इस बहाने आपसे गुफ्तगू करने का अवसर मिल गया. जब मैं मेल पर पहुंचा तो कुछ दिनों पुरानी एक मेल मिली. मेल मेरे किसी गुफ्तगू के पाठक की थी. लेकिन जब मैंने मेल में आई कविता पढ़ी तो लगा की कविता दिल से लिखी गई है, साथ ही लेखक के भाव "मंजिलो को पाने की चाह" मेरे दिल को छु गए. साथ ही एक आशा की गई थी की अगर मुझे कविता अच्छी लगे तो गुफ्तगू में शामिल की जाये. इसलिए यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है.

अर्ज किया है
जब भी कोई अपनी रूह से रु-ब-रु होता है,
आँखों में नूर दिल में सुरूर होता है,
कर लेता है वो हर हाल में हासिल,
मुकाम चाहे जितना भी दूर होता है...........
जितेन्द्र जलवा मोहन 
नाकाम होने पर भी गम न कीजे,
मिले चाहे गम तुम्हें पर तुम किसी को गम न दीजे,
सर्वप्रिये बनने का एक मात्र तरीका है ये,
कोई तुम्हारा बने न सही पर तुम हमेशा सबके बनके रहिजे...........
जितेन्द्र जलवा मोहन
 
किस्मत मुठ्ठी में बंद करके चलता हूँ मैं,
हौसलों के पंख फैला कर उड़ता हूँ मैं,
मंजिलों को पाने की चाह है मेरे दिल में,
इसलिए हर कदम मंजिलों की और रखता हूँ मैं ............
जितेन्द्र जलवा मोहन

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2 आपकी गुफ्तगू:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

उपयोगी और सार्थक लेखन के लिए बधाई!
--

आज के चर्चा मंच पर भी तो आपकी कोई पोस्ट होनी चाहिए!

मनवा said...

bahut khub , sundar vichaar

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अंग्रेजी से हिन्दी में लिखिए

तड़का मार के

* महिलायें गायब
तीन दिन तक लगातार हुई रैलियों को तीन-तीन महिला नेत्रियों ने संबोधित किया. वोट की खातिर जहाँ आम जनता से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा वहीँ कमी रही तो महिलाओं से जुड़े मुद्दों की.

* शायद जनता बेवकूफ है
यह विडम्बना ही है की कोई किसी को भ्रष्ट बता रह है तो कोई दूसरे को भ्रष्टाचार का जनक. कोई अपने को पाक-साफ़ बता रहे है तो कोई कांग्रेस शासन को कुशासन ...

* जिंदगी के कुछ अच्छे पल
चुनाव की आड़ में जनता शुकून से सांस ले पा रही है. वो जनता जो बीते कुछ समय में नगर हुई चोरी, हत्याएं, हत्या प्रयास, गोलीबारी और तोड़फोड़ से सहमी हुई थी.

* अन्ना की क्लास में झूठों का जमावाडा
आज कल हर तरफ एक ही शोर सुनाई दे रहा है, हर कोई यही कह रहा है की मैं अन्ना के साथ हूँ या फिर मैं ही अन्ना हूँ. गलत, झूठ बोल रहे है सभी.

* अगड़म-तिगड़म... देख तमाशा...
भारत देश तमाशबीनों का देश है. जनता अन्ना के साथ इसलिए जुड़ी, क्योंकि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा तमाशा नजर आया.
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