सलाम करता हूँ ऐसी ममता को


आज मदर्स डे है । मेरे लिए सुखद अहसास का दिन । मेरेसाथ-साथ कई बच्चे ऐसे होंगे जिन्हें आज के दिन काइन्तजार होता है । सच बताऊ तो मैं रात से ही सोच रहाथा की आज के दिन पर क्या लिखूंगा । सोचता रहासोचता रहा । लेकिन किसी नतीजे पर नही पहुँचा । जबसुबह नहा-धो कर तैयार हुआ तो पता नही दिल में कहासे एक बात ने घर कर किया की आज अपनी माँ कोसलाम करू । सिर्फ़ इसलिए नही की उस माँ ने मुझेजन्म दिया बल्कि इसलिए की अगर आज मैं आप लोगोसे गुफ्तगू कर रहा हु तो यह भी उसी माँ की देन है । अक्सर सुना है की बच्चे अपनी माताओ के लिए कहते हैकी माँ ने सिर्फ़ जन्म दिया है । लालन-पालन तो उसका धर्म था । ग़लत है यह सब कुछ । मैं मानता हु की यहसब टीवी की करामात है । मैं यह तो नही कहूँगा की टीवी देखना बंद कर दिया जाए । लेकिन इतना जरुर है कीजो माँ अपने बच्चे के लिए करती है वो और कोई नही कर सकता । अब इस माँ को ही देख लो । भीख मांग करइसने अपने बच्चो के लिए क्या कुछ नही किया । सर पर अपाहिज पति का साया होते हुए न सिर्फ़ इसने अपनेबच्चो को उच्च शिक्षा दी बल्कि अच्छे घर में अपनी लड़की की शादी भी की । अगर अब बच्चे यह कहे की यहतो माँ का फर्ज था तो सिर्फ़ एक माँ के दिल पर क्या बीतेगी बल्कि हमारा भी खून खोल उठेगा ।
हर कदम पर थपेडे खाए उसने फिर भी .......
उसके पति को कुष्ठ रोग था । कही जा नही सकता था और न ही पत्नी के साथ भीख मांग सकता था । वह थी कीजिन्दगी से हार मान चुकी थी । फिर भी उसने हार नही मानी । क्योंकि उसको पता था की अगर उसने ऐसाकोई कदम उठाया तो लोग उसके बच्चो को जीने नही देंगे । जिन्दगी को अपने अंदाज से जीने की कसम खातेहुए उसने न सिर्फ़ अपने बेटे प्रेम को हिन्दी साहित्य में पी. एच. डी. करवाई बल्कि अपनी बेटी को एम्. बी. बी. एस. की डिग्री तक दिलवाई । भले ही वह मद्रास की रहने वाली हो लेकिन भीख मांग-मांग कर उसने अपनेबच्चो को इस लायक बनाया की आज जनता भी उससे प्रेरणा लेती है । 1988 को मद्रास से हिसार जिले केहांसी के आवासीय क्षेत्र से दूर वीराने में स्टेला यह सोच कर रहने लगी थी की पति के कुष्ठ रोग का किसी कोपता न लगे और वो भीख मांग कर अपने परिवार का पेट पाल लेगी ।
बच्चे अक्सर कहते थे पढ़ाई छोड़ने के लिए
दिन भर भीख मांग कर स्टेला 40 से 50 रुपए ही जुटा पाती थी । इस पर पिता की दवाई का बोझ । यह देखमद्रास में पढने वाले स्टेला के बच्चे बेटी कल्याणी और बेटा प्रेम अक्सर पढ़ाई छोड़ने की बात कहा करते ।लेकिन उसने हिम्मत नही हारी और बच्चो को उसने जो सिख दी उसको उन्होंने भी गले से लगा लिया और जबभी उनका पढ़ाई छोड़ने का दिल करता उस बात को याद कर वो दोबारा उत्साहित होकर पढ़ाई में जुट जाते ।और आज इसी का नतीजा है की जहा प्रेम आज पी. एच.
डी. है वही कल्याणी डाक्टर है । यह सब देख आजस्टेला अपने को कामयाब मान रही है । मैं ऐसी माँ को नमन करता हु ।
जब किस्मत को था कुछ और ही मंजूर
अभी वह भीख मांगने के लिए घर से निकली ही थी की घर में आग लग गई और घर में रखा सारा समान राखहो गया । अब आप सोच रहे होंगे की एक भिखारी के घर में क्या समान होगा । यहाँ आपको बताना चाहूँगा कीडाक्टर बनते-बनते जब कल्याणी की शादी की उम्र होने लगी थी तो भीख से जो पैसा बचता उससे स्टेलाकल्याणी की शादी के लिए समान जोड़ रही थी । लेकिन उसको क्या पता था की किस्मत को कुछ और हीमंजूर है । उसने फिर भी हिम्मत नही हारी और अपना घर दोबारा से खड़ा कर मोमबत्ती बनाने का काम शुरूकिया । बस फिर क्या था जैसे ही उसके पाँव बाज़ार में पड़े और लोगो को उसकी सोच का पता लगा तो जैसेउसकी किस्मत ही बदल गई । दानवीरों की एक लम्बी फहरिस्त उसके सामने थी ।
कल्याणी की कर दी गई शादी
अब वह माँ फूली नही समां रही है जब उसकी लड़की की शादी 5 सितारा होटल के एक मनेजर के साथ हो गई है। आज उसको लग रहा है की उसने अपना धर्म भी निभाया और कर्म भी किया । बावजूद इसके अगर आज वहबेटी और बेटा अपनी माँ की इज्जत न करे तो क्या आप दिल चुप बैठने को करेगा । बिल्कुल नही । फिर आजपरिवार क्यो बट रहे है । क्यो शादी होते ही बच्चो को अपने माँ-बाप बुरे लगने लगते है । क्या आज माँ सिर्फ़जन्म देने के लिए रह गई है या पिता अपना पेट काट-काट कर अपने बच्चो को खिलाने के लिए । नही ऐसानही है लेकिन जरुरत है तो सिर्फ़ अपनी सोच बदलने की ।

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