अपनी डयूटी के पहले दिन जब मैं हस्पताल में रिसेप्शन पर बैठी अपना कार्य कर रही थी। तो क्योंकि पहला दिन था सब अनजान लग रहा था। फिर भी मैं अपना कार्य बखूबी कर रही थी। लंच टाईम में डॉक्टर साहब के जाने के बाद सभी स्टाफ सदस्य फ्री होकर बैठे थे। मुझे भी थोड़ा रेस्ट मिला। पहला दिन होने के कारण मैं उन सभी से अलग अपनी कुर्सी पर बैठी मैंगजीन पढ़ रही थी। उसी समय मेरे काऊंटर पर टक-टक की आवाज हुई। मैंने ऊपर देखा तो पाया कि एक मासूम लडक़ी, जिसके कपड़े बुरी तरह से फटे हुए हैं, पांव में चप्पलें भी नहीं है तथा जिसका एक हाथ बुरी तरह से झुलसा हुआ है। उसने मेरे आगे हाथ फैला दिया जिस पर नीली सयाही लगी हुई थी। वह भीख मांग रही थी। मैंने उससे पूछा कि कैसे जल गया तुम्हारा हाथ। उसने चेहरे से ऐसे भाव प्रकट किए कि वह बोल नहीं सकती। मैंने कहा चलो ठीक है पहले मैं तुम्हारी पट्टी करवा देती हूं। फिर तुम्हें पैसे दे दूंगी। मेरे इतने कहते ही वह जोर-जोर से रोने लगी। मैंने सोचा कि यह पट्टी के दौरान होने वाले दर्द से डर रही है। मैंने उसे पांच रूपए दे दिए और चाय वाले से कह कर उसे चाय भी पिलवा दी। वह चाय पीकर चली गई। मुझे उसके हालात पर दुख हुआ। यह सब स्टाफ के सदस्य देख रहे थे। लेकिन मैंने पुन: मैगजीन पढऩा शुरु किया। थोड़ी देर बाद एक स्टाफ सदस्य मेरे पास आए और बोले मैडम क्या आप दो मिनट के लिए बाहर आ सकती हैं, आपको कुछ दिखाना है। मैंने कहा क्यों नहीं सर चलिए और मैं बाहर आ गई। मैंने देखा कि वह मासूम लडक़ी हस्पताल की बिल्डिग़ में लगी टूंटी पर हाथ धो रही थी और देखते ही देखते उसके हाथ से मुलतानी मिट्टी और स्याही धुल गई। उसे देख मैं स्थिर रह गई और स्टाफ सदस्य ने मुझे बताया कि ये लडक़ी हर रोज ऐसे ही अनजान लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करती है।
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सटीक पोस्ट
बहुत दुःख होता है .....यह देख कर
always never happend same
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